Monica O My Darling Movie Review: दमदार परफॉर्मेंस से सजी, मजेदार है यह मर्डर मिस्ट्री फिल्म
मोनिका ओ माय डार्लिंग हिंदी सिनेमा को नयी दिशा दे सकती है. ये मर्डर मिस्ट्री आपको पूरी तरह से बांध कर रखती है. इस सस्पेंस थ्रिलर में आपके जेहन में यह सवाल आता रहता है कि आखिर कातिल कौन है, लेकिन यह फिल्म पूरे समय आपको पूरे समय हंसाती भी रहती है.
फ़िल्म- मोनिका ओ माय डार्लिंग
निर्माता- मैचबॉक्स
निर्देशक- वासन बाला
कलाकार- राजकुमार राव, हुमा कुरैशी, राधिका आप्टे, सिकन्दर खेर, बक्स, आकांक्षा रंजन कपूर, सुकान्त गोयल, जायन मारी खान और अन्य
प्लेटफार्म- नेटफ्लिक्स
रेटिंग- तीन
पिछले कुछ समय से रीमेक फिल्मों को लेकर लगातार बहस हो रही है कि हिंदी सिनेमा को रीमेक फिल्मों से खुद को बचाने की जरुरत है, लेकिन मोनिका ओ माय डार्लिंग जैसी फिल्में हिंदी सिनेमा को नयी दिशा दे सकती है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई मोनिका ओ में डार्लिंग को देखकर यह बात शिद्दत से महसूस होती है. फिल्म जापानी लघु फिल्म का हिंदी रीमेक है.
बदले की है कहानी
फिल्म की शुरुआत में ही एक मर्डर हो जाता है और कहानी छह महीने आगे बढ़ जाती है. रोबोटिक्स की एक बड़ी कम्पनी जयंत (राजकुमार राव) को अपना शेयर होल्डर घोषित करती है. जिससे कंपनी के प्रमुख के बेटे (सिकन्दर खेर) से लेकर दूसरे सभी कर्मचारियों को उससे ईर्ष्या होती है, लेकिन छोटे से गांव अगोला से आए जयंत की पूरी जिंदगी सेट है. इस कंपनी का शेयर होल्डर बनने के साथ-साथ वह कंपनी के मालिक का दामाद भी जल्द बनने वाला है. इसी बीच कंपनी की एक कर्मचारी मोनिका (हुमा कुरैशी) जयंत को ब्लैकमेल करने लगती है कि वह उसके बच्चे की मां बनने वाली है. जयंत अपनी सफलता को किसी कीमत पर खोना नहीं चाहता है फिर उसके लिए उसे मोनिका को ठिकाने ही क्यों ना लगाना पड़े. क्या मोनिका को वह ठिकाने लगा पाएगा या खुद वो किसी जाल में फंसने वाला है. इसके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.
ये पहलू रहे हैं खास
यह मर्डर मिस्ट्री आपको पूरी तरह से बांध कर रखती है. इस सस्पेंस थ्रिलर में आपके जेहन में यह सवाल आता रहता है कि आखिर कातिल कौन है, लेकिन यह फिल्म पूरे समय आपको पूरे समय हंसाती भी रहती है. फिल्म का ट्रीटमेंट कमाल का है. एक बाद एक ट्विस्ट एंड टर्न है. हर किरदार ग्रे है, एक के बाद एक मर्डर हो रहे हैं, लेकिन फिल्म कहीं भी भारी नहीं लगती है. फिल्म के संवादों को कमाल के पंचेस के साथ जोड़ा गया है. निर्देशक वासम बाला ने फिल्म में अपनी छाप छोड़ी है.
यहां हुई है चूक
खामियों की बात करें तो जेहन में ये बात भी आती है कि यह फिल्म रोबोटिक्स कंपनी में काम कर रहे लोगों के इर्द-गिर्द बुनी गयी है. एक छोटी सी घड़ी बड़े से मशीन को कंट्रोल कर रही है, लेकिन एक के बाद एक आसानी से हो रहे मर्डर्स को रोकने के लिए कोई उपाय नहीं है. सीसीटीवी जैसी मामूली सी चीज नहीं है. सेकेंड हाफ में कहानी की पकड़ थोड़ी ढीली हुई है. फिल्म के कई दृश्य और सीक्वेंस दूसरी फिल्मों की याद भी दिलाते हैं.
म्यूजिक है शानदार
फिल्म के ट्रीटमेंट के साथ साथ फ़िल्म को खास इसका रेट्रो फील वाला म्यूजिक भी बनाता है. जिसके लिए गीत-संगीत से जुड़ी पूरी टीम की जबरदस्त सराहना बनती है. फिल्म के गीत संगीत फ़िल्म की कहानी को साथ साथ लेकर बखूबी आगे बढ़ते हैं, जो बहुत कम फिल्मों में देखने को मिलता है. इसके लिए संगीतकार अंचित कौर, गीतकार वरुण धवन और गायिका अनुपमा चक्रवर्ती बधाई के पात्र हैं.
अभिनय भी है दमदार
फिल्म की कास्टिंग जबरदस्त है. कहानी का अहम चेहरा राजकुमार राव है और उन्होंने इसे बखूबी निभाया है. कहानी जैसे-जैसे ऊंचाई को छूती है, वैसे-वैसे राजकुमार का परफॉरमेंस भी. हुमा कुरैशी ने भी शानदार परफॉरमेंस दी है. सिकन्दर खेर की भूमिका छोटी जरूर है, लेकिन उनके अभिनय का प्रभाव गहरा है. अपनी बॉडी लैंग्वेज और संवादों से उन्होंने अपने किरदार को दिलचस्प बनाया है. राधिका आप्टे एक अलग अंदाज में इस फिल्म में नजर आयी है, उनकी सहजता उनके अभिनय को खास बना गयी है. बक्स, आकांक्षा, सुकान्त सहित बाकी के किरदारों ने भी अपने अभिनय से कहानी के साथ न्याय किया है.
देखें या ना देखें
अगर सिनेमा के रटे रटाए पॉपुलर फॉर्मूले से अलग कुछ देखना चाहते हैं, तो यह फिल्म बेहतरीन ऑप्शन है.