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झारखंड: मानसून की बेरुखी से सुखाड़ की ओर बढ़ रहा लोहरदगा, 15 फीसदी हुई रोपाई, किसानों में मायूसी

जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में स्थिति खेती-किसानी से जुड़े किसानों के लिए भयावह है. कम वर्षा के कारण खेतों में लगे धान के बिचड़े बर्बाद हो रहे हैं. महंगे बीज लेकर बिचड़ा लगाने वाले किसान बेचैन हैं. किसान रोज बारिश की आस में आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं.

लोहरदगा: मानसून की बेरुखी के कारण लोहरदगा जिला तेजी से सुखाड़ की ओर बढ़ रहा है. अल्प बारिश व मानसून की दगाबाजी ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी है. मौसम की बेरुखी ने किसानों की कमरतोड़ दी है अब किसान अपने सूखे पड़े खेतों को देख मायूस हो रहे हैं. किसान अब अपनी श्रमशक्ति के साथ खेती में लगायी गयी पूंजी डूबने की आशंका से भयाक्रांत हैं. उल्लेखनीय हो कि जुलाई महीने में लोहरदगा जिले में जुलाई महीने में औसतन 305 मिमी वर्षापात होती है, परंतु इस वर्ष अब तक महज वास्तविक वर्षा 26.91 प्रतिशत हुई है.

किसानों की उम्मीदों पर फिरा पानी

जुलाई महीने के अंतिम सप्ताह में स्थिति खेती-किसानी से जुड़े किसानों के लिए भयावह है. कम वर्षा के कारण खेतों में लगे धान के बिचड़े बर्बाद हो रहे हैं. महंगे बीज लेकर बिचड़ा लगाने वाले किसान बेचैन हैं. किसान रोज बारिश की आस में आसमान की ओर टकटकी लगाए हैं. कभी-कभार आसमान में घने बादल भी छा रहे हैं, परंतु हल्की रिमझिम बारिश बाद आसमान साफ हो जा रहा है तथा सूर्य की चमकती किरणें किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर रही है.

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ग्रामीण कर रहे पूजा-पाठ

धान की रोपाई का समय बीतने को है, परंतु 15 प्रतिशत ही रोपाई हो पायी है. जिले में लगभग 47 हजार हेक्टेयर धान की रोपाई का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन अबतक महज तक मात्र 1486 हेक्टेयर क्षेत्र में ही धान रोपा जा सका है. यानी लक्ष्य के अनुरूप मात्र 3.16 प्रतिशत ही धान की रोपाई हो पायी है. इधर, वर्षा के लिए ग्रामीण कई प्रकार के पूजा-पाठ तथा टोटका कर रहे हैं. मंदिरों में जलाभिषेक किया जा रहा है तो कहीं पीपल के जड़ में पूजा-पाठ की जा रही है. इसके बावजूद जिले में सुखाड़ की स्थिति से किसानों को निजात नहीं मिली है. मायूस किसान अब पलायन का भी मन बना रहे हैं.

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जुगाड़ के पानी से हो रही रोपाई

बिचड़े बर्बाद होता देख किसान परेशान हैं. खेतों में पानी की व्यवस्था के लिए कई तरह का जुगाड़ हो रहा है. पानी के लिए रोज किचकिच होता है. कई किसान रात भर जागकर नालों तथा तालाबों से अपने खेतों तक पानी पहुंचा रहे हैं. जिन किसानों का खेत निचली दोन में है वहां थोड़ा-बहुत पानी पहुंच पा रहा है, परंतु वैसे किसान जिनके खेत दो नंबर दोन है वे मायूस हैं. कई गांवों में तालाब उपलब्ध है, परंतु प्रचंड गर्मी के कारण तालाबों का पानी सूख गया है, वही साधन सम्पन्न किसान अपनी कुंआ से मशीनों के माध्यम सिंचाई कर थोड़ी-बहुत धान की रोपाई कर पाए हैं, परंतु गरीब किसान प्रकृति के क्रूर मजाक का शिकार हो गए हैं.

श्रीविधि फ्लॉप, मडुवा की तरह हो रही धान की रोपाई

पानी के अभाव में जिले में श्रीविधि से धान की खेती बुरी तरह प्रभावित हुई है. इस विधि में 10 से 14 दिनों के भीतर बिचड़े की रोपाई हो जानी चाहिए, परंतु पानी के अभाव में कई जगहों पर बिचड़े सूख गये हैं, तो कई जगहों पर बिचड़े बूढ़े हो गये हैं. जिनकी रोपाई कर पाना संभव नहीं है. पानी के अभाव में मडुवा की तरह किसान धान की रोपाई कर रहे हैं. किसानों को उम्मीद है कि बरसात होने पर फसल सुधर जायेगा, परंतु आसमान में खिली धूप से रोपे गए धान की फसल भी बर्बाद हो रही है.

लोहरदगा तथा किस्को प्रखंड में सबसे कम बारिश

जिले के सभी प्रखंड में कम वर्षा से प्रभावित हैं, परंतु लोहरदगा व किस्को प्रखंड की स्थिति सबसे अधिक खराब है. जुलाई महीने में अब तक लोहरदगा प्रखंड में 46.2 मिमी तथा किस्को प्रखंड में 30.0 मिमी ही बारिस हुई हैं. जबकि सेन्हा प्रखंड में 106.8 मिमी बारिश हुई. कुडू प्रखंड में 58.0 मिमी, कैरो प्रखंड में 174.5 मिमी तथा पेशरार प्रखंड में 68.4 मिमी बारिश हुई है.

वैकल्पिक खेती अपनायें किसान

कृषि वैज्ञानिक डॉ हेमंत पांडेय का कहना है कि कम वर्षा से खेती प्रभावित हुई है. जुलाई माह के अंत तक हर हाल में धान की रोपाई का कार्य समाप्त हो जाना चाहिए, परंतु वर्षा की वर्तमान स्थिति को देखते हुए ऐसा संभव नहीं लगता. अब किसानों को उरद, कुर्थी, मूंग, मसूर आदि की वैकल्पिक खेती की ओर ध्यान देना चाहिए. किसान सब्जी की खेती कर भी घाटे की भरपाई कर सकते हैं.

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