घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मो परवेज. पूर्वी सिंहभूम जिला के घाटशिला अनुमंडल से मजदूरों का पलायन सबसे बड़ी समस्या है. दुनिया के मजदूर एक हों का नारा बुलंद करनेवाले चुप क्यों हैं? यह अहम सवाल है. पहले मजदूर नेता मजदूरों के हक-अधिकार के लिए आवाज बुलंद करते थे. आज मजदूरों के हक के लिए आवाज उठाने वाला कोई नहीं. घाटशिला अनुमंडल से 10 हजार से अधिक मजदूर पलायन कर गये हैं, पर जिला श्रम विभाग के पास मात्र 1,700 प्रवासी मजदूरों का निबंधन है.
श्रम अधीक्षक अविनाश ठाकुर कहते हैं अधिकांश मजदूर बिना निबंधन के ही चले जाते हैं. जिन लोगों ने ऑनलाइन निबंधन कराया है, वैसे मजदूरों की संख्या मात्र 1,700 है. उन्होंने बताया कि पूर्वी सिंहभूम जिले के विभिन्न प्रखंडों में असंगठित और निर्माण क्षेत्र में करीब 3 लाख मजदूर श्रम विभाग में निबंधित हैं.
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उन्होंने बताया कि बाहर के प्रदेशों में काम करने जाने वालों का सही डाटा विभाग के पास उपलब्ध नहीं है. श्रम अधीक्षक कहते हैं कि कोरोना काल में जब मजदूर घर लौट रहे थे, तब करीब 10 हजार का डाटा था. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि जिले के करीब 10 हजार से अधिक मजदूर प्रवासी हैं, जो बाहर के प्रदेशों में काम कर रहे हैं.
श्रम अधीक्षक ने बताया कि मजदूरों का दो तरह का श्रम कार्ड विभाग से बनता है. एक हरा और दूसरा लाल. ठेकेदार के माध्यम से जो मजदूर बाहर काम करने जाते हैं, उनका हरा कार्ड बनता है. जो स्वयं निबंधन कराकर काम करने जाते हैं, उनका लाल कार्ड बनता है. अगर मजदूर निबंधित है और बाहर काम के दौरान किसी दुर्घटना में मौत हो जाती है, तो उसका शव लाने का खर्च श्रम विभाग देता है.
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उन्होंने कहा कि ऐसे श्रमिकों के आश्रित को मुआवजा के रूप में 2 लाख रुपये देने का सरकारी प्रावधान है. बिना निबंधन कराये अगर कोई मजदूर बाहर चला जाता है और उसके साथ कोई दुर्घटना हो जाती है, तो भी उसे विभाग से डेढ़ लाख रुपये मुआवजा देने का प्रावधान है. इसके अलावा मुख्यमंत्री अंतरराष्ट्रीय श्रमिक योजना के तहत जिनकी आय 72 हजार से कम है, और वे विदेश काम के लिए गये हैं और कुछ हो जाता है, तो आश्रित को पांच लाख तक मुआवजा देने का प्रावधान है.
श्रम अधीक्षक ने बताया कि मजदूरों में जागरूकता का अभाव है. वे निबंधन इसलिए भी नहीं कराते कि कोई उन्हें बाहर जाने से रोक लेगा. इसके अलावा दलाल मजदूरों को बहला-फुसलाकर बिना निबंधन के बाहर ले जाते हैं. इससे श्रम विभाग के पास बाहर जाने वाले मजदूरों का सही आंकड़ा नहीं आ पाता. जब कोई घटना घटती है, तब मामला प्रकाश में आता है.
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पलायन करने वाले मजदूरों की पीड़ा के साथ उनके परिजनों का दर्द भी छलकता है. घाटशिला की झांटीझरना पंचायत से कई मजदूर बाहर के प्रदेशों में गये हैं. उनके परिजन परेशान रहते हैं. कई मजदूर कई वर्ष हो गये, लौटकर नहीं आये. न बात होती है. कई सबर मजदूर लापता हो गये. इसमें घाटशिला के हलुदबनी के सबर मजदूर शामिल हैं. कमोबेश ऐसी कहानी हर प्रखंड में मिल जायेगी.
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रोजगार का संकट, एक फसली खेती का होना.
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खदान का लगातार बंद होना, स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलना.
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अधिकांश गरीब तबकों के पास खेती लायक जमीन का नहीं होना.
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बीहड़ गांवों के अधिकांश लोग जंगल पर आश्रित, रोजगार नहीं मिलता.
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युवा वर्ग में बाहर के प्रदेशों में जाने की ललक भी पलायन का बड़ा कारण है.