रांची : आज मदर्स डे (mothers day) है. जन्मदातृ मांओं का विशेष दिन. यूं तो मांएं याद करने के लिए किसी दिन विशेष की मोहताज नहीं हैं. उनसे ही हम हैं, लेकिन आज उनकी सुरक्षा का संकल्प लेकर हम उन्हें सुरक्षित जिंदगी का बेहतर उपहार दे सकते हैं. घर-आंगन को गुलजार कर परिवार को आकार देकर खानदान की पीढ़ियों का निर्माण करने वाली मांओं की इस सुखद अनुभूति के पीछे एक असहनीय पीड़ा भी छिपी रहती है, जो कई बार उन्हें उम्रभर सालती रहती है. आप बहन-बेटियों को देवी सा सम्मान व स्वस्थ रखकर मदर्स डे का सर्वोत्तम उपहार भेंट कर सकते हैं. पढ़िए गुरुस्वरूप मिश्रा की रिपोर्ट.
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आप विद्या के लिए मां सरस्वती, धन के लिए मां लक्ष्मी और शक्ति के लिए मां दुर्गा की आराधना करते हैं, लेकिन खानदान की पीढ़ियों को रचनेवाली घर की मातृशक्ति मां, बहन व बेटियों के बेहतर स्वास्थ्य को लेकर शायद ही सजग रहते हैं. आंकड़े तो यही बताते हैं. गांव-गिरांव की स्थिति अब थोड़ी बहुत बदली है, नहीं तो पहले के हालात चिंताजनक थे. आधी आबादी की जान जोखिम में होती थी. वक्त के साथ मानसिकता बदली है. बेटे-बेटियों में फर्क में कमी आ रही है. इस बीच जरूरी है कि शिक्षित व स्वस्थ परिवार के लिए हम अपने घर की दुर्गा-लक्ष्मी व सरस्वती को स्वस्थ रखें और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्राथमिकता दें. आपको शायद भान भी न होगा कि आपकी छोटी सी गलती के कारण आपकी बिटिया मां बनने के दौरान कितनी बड़ी मुसीबत में फंस जाती है. कई बार जान भी गंवा देती है. आंकड़ों की मानें, तो पूरी जिंदगी तबाह हो जाती है. गर्भवती महिलाओं के निधन से ना केवल बच्चों से उनकी मां का आंचल छीन जाता है, बल्कि पूरा परिवार बिखर जाता है.
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सुरक्षित मातृत्व के लिए बाल विवाह हर हाल में रोकिए. बिटिया की शादी 18 के बाद और बेटे की शादी 21 के बाद ही करें. राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2005-06) यानी (एनएफएचएस-3) के अनुसार झारखंड में बाल विवाह की दर 63.20 फीसदी थी, जो राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) यानी एनएफएचएस-4 के अनुसार घटकर 38 फीसदी हो गयी है. इसके साथ ही झारखंड देश में तीसरे स्थान पर आ गया है. पहले स्थान पर बिहार (42.50 फीसदी) है. दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल (40.70 फीसदी) है.
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जिला बाल विवाह (प्रतिशत)
सिमडेगा 14.70
पश्चिमी सिंहभूम 21.30
गुमला 24.00
रांची 28.10
लोहरदगा 28.50
झारखंड में बाल विवाह की दर इन जिलों में है अधिक
जिला बाल विवाह (प्रतिशत)
गोड्डा 63.50
गढ़वा 58.80
देवघर 52.70
गिरिडीह 52.60
कोडरमा 50.80
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देश में 21 फीसदी लड़कियों का 18 वर्ष से कम उम्र में गर्भधारण करना चिंताजनक है. इस पर रोक लगाना बेहद जरूरी है. एनएफएचएस-3 के मुताबिक देश में बाल विवाह की दर 47.40 फीसदी थी, जबकि एनएफएचएस-4 के अनुसार इसमें कमी आयी और इसकी दर 26.80 प्रतिशत हो गयी. शहरों में बाल विवाह का औसत 6.9 फीसदी और गांवों में 14.1 फीसदी है.
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बाल विवाह, अशिक्षा, जागरूकता का अभाव और बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं के घोर अभाव के कारण कई बार गर्भवती महिलाओं के लिए मातृत्व सुख मौत की सजा बन जाता है. कभी-कभी तो जच्चा-बच्चा दोनों की जान चली जाती है. झारखंड में पहले से बेहतर होती स्वास्थ्य सेवाओं और महिलाओं में जागरूकता के कारण अब सुरक्षित संस्थागत प्रसव हो रहे हैं. इससे मातृ-शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आयी है.
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वर्ष 2000 में जब झारखंड बना, तो बाल विवाह, स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव और अशिक्षा के कारण असुरक्षित प्रसव से प्रति लाख 400 महिलाओं की जान चली जाती थी. प्रसव पूर्व स्वास्थ्य जांच को लेकर उस वक्त उतनी गंभीरता नहीं थी. संस्थागत प्रसव भी कम होते थे. अक्सर घरों में ही प्रसव कराये जाते थे, जो काफी असुरक्षित थे. 108 जैसी एंबुलेंस सेवाएं भी कोसों दूर थीं. गांव-जवारों में तो आप कल्पना भी नहीं कर सकते थे. प्रसव पीड़ा की जटिलता के कारण कई बार मां बनने वाली महिलाएं, तो कई बार जच्चा-बच्चा दोनों दम तोड़ देते थे. आज हालात बदले हैं. बेहतर स्वास्थ्य योजनाओं से इसमें तेजी से बदलाव आया है, लेकिन प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मौत को रोकने की चुनौती अभी भी बरकरार है.
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देश के पांच ही राज्य ऐसे हैं जहां संस्थागत प्रसव की दर झारखंड से अधिक है. स्वास्थ्य के क्षेत्र में संपूर्ण प्रदर्शन में राज्य 14वें स्थान पर है. नीति आयोग के राज्य सूचकांक में इंक्रीमेंटल ग्रोथ के लिए झारखंड को तीसरा स्थान मिला है. संस्थागत प्रसव 13.50 प्रतिशत से बढ़कर 88.2 प्रतिशत हो गया है.
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झारखंड में स्वास्थ्य सूचकांकों में हुआ काफी सुधार
सूचकांक 2015-16 2017-18
नवजात मृत्यु दर (प्रति एक हजार जन्म पर) 23 21
पांच वर्ष के बच्चों की मृत्यु दर (प्रति एक हजार जन्म पर)39 33
टोटल फर्टिलिटी रेट 2.7 2.6
कम वजन के शिशुओं का जन्म (प्रतिशत) 7.4 7.1
लिंगानुपात (एक हजार पुरुष पर महिलाओं की संख्या) 902 918
पूर्ण टीकाकरण (प्रतिशत) 88.1 100
संस्थागत प्रसव (प्रतिशत) 64.4 88.2
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108 एंबुलेंस सेवा गर्भवती महिलाओं के लिए वरदान साबित हुई है. गांव के सुदूरवर्ती इलाकों में जहां सड़कें नहीं हैं, वहां भी मुख्य सड़क तक खटिया या अन्य माध्यमों से गर्भवती महिलाओं को लाकर एंबुलेंस से उन्हें अस्पताल पहुंचाया जा रहा है. यह काफी कारगर साबित हो रहा है.
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झारखंड में वर्ष 2000 में मातृ मृत्यु दर 400 प्रति लाख थी, जो घटकर 76 प्रति लाख हो गई है.
वर्ष मातृ मृत्यु दर
2004-06 312
2007-09 261
2010-12 219
2011-13 208
2014-16 165
2015-17 76
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नीति आयोग के अनुसार बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के कारण प्रति वर्ष करीब 2000 अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं की जान देश में बचाई जा रही है. संयुक्त राष्ट्र ने 2030 तक मातृ मृत्यु दर को प्रति एक लाख जन्म पर 70 से कम करने का लक्ष्य रखा है. देश में प्रति एक लाख जीवित जन्म पर मातृ मृत्यु दर इस प्रकार है-
2004-06- 254
2007-09- 212
2010-12- 178
2011-13- 167
2014-16- 130
2015-17- 122
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मातृत्व सुरक्षा के क्षेत्र में बेहतर कार्य के लिए वर्ष 2018 में झारखंड को प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अवार्ड दिया गया. वर्ष 2017 में सबसे निचले पायदान पर रहने वाला झारखंड मृत्यु दर कम करने के मामले में 9वें स्थान पर आ गया है.
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1. प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान-देश की तीन करोड़ से अधिक गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व देखभाल की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए इस अभियान को शुरू किया गया है. इसके तहत लाभुकों को हर महीने की नौ तारीख को प्रसव पूर्व देखभाल सेवाओं (जांच और दवाओं सहित) का लाभ दिया जाता है.
2. प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना- गर्भवती महिलाओं को तीन किस्तों में पांच हजार रुपये की सहायता राशि सीधे लाभुक के बैंक खाते में दी जाती है. पहली किस्त में एक हजार रुपये गर्भधारण के 150 दिनों के अंदर, दूसरी किस्त में दो हजार रुपये 180 दिनों के अंदर व तीसरी किस्त में दो हजार रुपये प्रसव के बाद व शिशु के प्रथम टीकाकरण चक्र पूरा होने पर मिलते हैं.
3. गर्भवती महिलाओं को वित्तीय सहायता- 31 दिसंबर 2016 को महिलाओं के लिए नई योजनाओं की घोषणा की गई, इसमें गर्भावस्था सहायता योजना भी शामिल थी.
4. मातृत्व अवकाश- कामकाजी महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश को 12 सप्ताह से बढ़ाकर 26 सप्ताह कर दिया गया है.
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प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन दोनों योजनाओं से पहली बार गर्भवती होने वाली ग्रामीण महिला के खाते में कुल 6400 रुपये व शहरी गर्भवती के खाते में कुल छह हजार रुपये मिलते हैं.
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पानी ढोने वाली बेहद गरीब घर की महिलाएं और लड़कियों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है. यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंजिला ने अंतरराष्ट्रीय शोध में पाया है कि इससे न सिर्फ प्रसव पूर्व देखभाल में कमी हो जाती है बल्कि उसके पांच वर्ष से छोटे बच्चों को भी अकेले कई घंटे रहना पड़ता है. इससे बच्चों के साथ अनहोनी की आशंका कई गुना बढ़ जाती है. ऐसी प्रसूति महिलाएं समय पर स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं पहुंच पाती हैं, जिससे इनके कुपोषण का दुष्प्रभाव बच्चे पर पड़ता है.
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महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के तहत आंगनबाड़ी केंद्र, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना, किशोरियों के लिए योजनाएं, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के तहत जननी सुरक्षा योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, जल शक्ति मंत्रालय के तहत स्वच्छ भारत मिशन और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण तथा उपभोक्ता मामले के तहत पोषण कार्यक्रमों की सफलता के कारण स्वास्थ्य सूचकांक में काफी सुधार आया है.
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मिट्टी के करकटपोस छोटे से घर से भी बड़े सपने पूरे हो सकते हैं. आप यकीन नहीं करेंगे, लेकिन रांची के सुकुरहुट्टू की सहिया लीलावती देवी ने उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू से दिल्ली में राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल कर इसे साबित कर दिया. राज्य की 40 हजार से अधिक सहिया में वह इकलौती थीं, जिन्हें वर्ष 2017-18 में 23 संस्थागत प्रसव, 8 कॉपर टी, 8 बंध्याकरण और 1 पुरुष नसबंदी कराने के सराहनीय कार्य के कारण राष्ट्रीय सम्मान से सम्मानित किया गया. इससे पहले भी इन्हें जिला स्तर पर बेहतर कार्य के लिए पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने सम्मानित किया था. साधारण किसान परिवार के घर की लीलावती के पति फुलेश्वर महतो मजदूरी करते हैं. इनकी दो संतान (पुत्र-पुत्री) हैं.
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डॉ सुमन दुबे कहती हैं कि सुरक्षित मातृत्व के लिए कई बातों का ख्याल रखना जरूरी है. लड़की की उम्र 18 साल से कम और 35 से ज्यादा न हो, दो प्रसव के बीच 2 वर्ष या इससे कम का अंतर न हो, गर्भवती महिला कुपोषित या एनीमिया से पीड़ित न हो और महिला का वजन बहुत कम न हो. राज्य की 65 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं. बाल विवाह व कुपोषण के कारण 40 फीसदी महिलाओं को प्रसव व शिशु स्वास्थ्य में दिक्कत होती है. प्रसव के दौरान 2200 महिलाओं की मौत हो जाती है, जो चिंताजनक है.
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