दिलों पर है हुकूमत हुसैन की

इस्लाम के अंतिम पैगंबर मुहम्मद (स) ने हिजाज (अरब के मध्य भाग) की पहाड़ियों, बंजर चट्टाने और शुष्क इलाके से इस्लाम को फैलाया. कबीलों में विभाजित अरब जातियों को पैगंबर (स) ने एक सुसंगठित राज्य में तब्दील कर दिया

By Prabhat Khabar News Desk | July 29, 2023 8:27 AM

डॉ शाहनवाज कुरैशी :

विश्व इतिहास में सत्ता के लिए संघर्ष और कत्लेआम सामान्य बात है, लेकिन अत्याचारी के विरुद्ध परिवार के मासूम बच्चों तक के प्राणों की आहूति देकर भी सिद्धांतों से समझौता नहीं करने की अद्भुत मिसाल सिर्फ कर्बला में मिलती है. पैगंबर मुहम्मद (स) के नवासे, चहेती पुत्री फातिमा व हजरत अली के पुत्र हजरत हुसैन (अ) ने उमैया वंश के क्रूर, अय्याश, अत्याचारी, भ्रष्ट और अधर्मी खलीफा यजीद को अस्वीकार्य कर 10 मुहर्रम 61 हिजरी (680 ई.) को वर्तमान इराक के कर्बला में बहादुरी से लड़ते हुए शहादत पायी.

इस्लाम के अंतिम पैगंबर मुहम्मद (स) ने हिजाज (अरब के मध्य भाग) की पहाड़ियों, बंजर चट्टाने और शुष्क इलाके से इस्लाम को फैलाया. कबीलों में विभाजित अरब जातियों को पैगंबर (स) ने एक सुसंगठित राज्य में तब्दील कर दिया. 632 ई. में पैगंबर (स) के निधन के बाद आधी सदी में इस्लाम का परचम अनेक देशों में लहराने लगा था. प्रथम चार खलीफा हजरत अबू बकर सिद्दीक, हजरत उमर, हजरत उस्मान व हजरत अली (रजि) के बाद हजरत मुआविया ने 661 से 680 ई. तक खिलाफत की.

उन्होंने अपने बेटे यजीद को उत्तराधिकारी मनोनीत कर वंशागत उत्तराधिकार की अवधारणा मजबूत की. इससे पूर्व किसी भी अन्य खलीफा ने अपना उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था और आम सहमति से खलीफा का चयन होता रहा था. यजीद ने अपनी सत्ता को सुदृढ़ करने के लिए हजरत हुसैन का समर्थन (बैत) प्राप्त करने की इच्छा जतायी, लेकिन हजरत हुसैन (अ) ने अनेक बुराइयों में लिप्त यजीद का समर्थन करने से स्पष्ट इनकार कर दिया.

हजरत हुसैन के बड़े भाई हजरत हसन (रजि) ने हजरत मुआविया के पक्ष में खिलाफत छोड़ दी थी ताकि मुसलमानों का आपस में युद्ध न हो. 669 ई. में हजरत हसन (रजि) की वफात हो गयी. यजीद को भय था कि हजरत हुसैन (रजि) खिलाफत की दावेदारी पेश कर सकते हैं. पैगंबर (स) के परिवार से होने के कारण उन्हें व्यापक जनसमर्थन भी मिल जाता. अनेक प्रयास के बावजूद यजीद को अपने उद्देश्य में सफलता नहीं मिली.

सत्ता के नशे में चूर यजीद किसी भी कीमत पर समर्थन हासिल करना चाहता था. पैगंबर मुहम्मद (स) के चहेते हजरत हुसैन (अ) एक अत्याचारी, शराबी, क्रूर व शरीयत के नियमों का खुलेआम अवहेलना करनेवाले व्यक्ति का समर्थन भला कैसे कर सकते थे? हजरत हुसैन (अ) पैगंबर के अत्यंत प्रिय थे. पैगंबर (स) ने एक अवसर पर कहा था-हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं. बचपन में उन्हें कांधे पर बैठा कर घुमाया करते थे. नमाज के दौरान सजदे की हालत में हुसैन (अ)पीठ पर बैठ जाते, तो पैगंबर (स) सजदा लम्बा कर दिया करते थे.

इराक स्थित कूफा के लोगों ने हजरत हुसैन (अ) से पत्राचार कर उन्हें कूफा आमंत्रित किया. हजरत हुसैन ने अपने प्रतिनिधि के रूप में मुस्लिम बिन अकील को कूफा भेजा, जहां उनका स्वागत गर्मजोशी से किया गया. चालीस हजार लोगों ने समर्थन का वादा किया. हजरत हुसैन (अ) सपरिवार कूफा के लिए रवाना हुए. कई शुभचिंतकों ने यात्रा नहीं करने का सुझाव दिया.

इधर यजीदी अत्याचार से विवश होकर कूफा के लोगों ने यजीद का समर्थन कर दिया. मुस्लिम बिन अकील की हत्या भी कर दी. रास्ते में सूचना मिलने के बावजूद हजरत हुसैन ने सफर जारी रखा. कर्बला नामक स्थान पर यजीदी लश्कर ने हजरत हुसैन के 72 साथियों के छोटे से काफिले को रोक दिया. हजरत हुसैन ने दोहराया कि वह खून-खराबा नहीं चाहते, लेकिन किसी भी परिस्थिति में अत्याचारी व्यक्ति का समर्थन नहीं किया जा सकता.

वे युद्ध की नीयत से सफर में रवाना भी नहीं हुए थे. उनके काफिले में मासूम बच्चें और औरतें शामिल थी. युद्ध उद्देश्य होता तो बच्चों और औरतों को लेकर नहीं जाते. यजीदी लश्कर ने दबाव बनाने के लिए सात मुहर्रम से फरात नदी का पानी भी हुसैन (अ) के काफिले के लिए रोक दिया.10 मुहर्रम को तीन दिन तक भूखे-प्यासे होकर भी यजीद की अधीनता स्वीकार नहीं की. एक शायर ने इस परिस्थिति पर लिखा.

सुन लो यजीदीयों, तड़पा नहीं हुसैन मेरा, पानी के लिए

दरिया जरूर महरूम था, लब-ए-हुसैन को छूने के लिए

हजरत हुसैन ने यजीदी लश्कर के समक्ष यह प्रस्ताव रखा था कि उन्हें दमिश्क में यजीद के पास या हिन्दुस्तान की ओर जाने दिया जाए, लेकिन लश्कर ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया. निर्णायक युद्ध से पहले हजरत हुसैन (अ) ने एक-एक व्यक्ति का नाम पुकार कर पूछा कि क्या तुम लोगों ने खत लिखकर नहीं बुलाया? भयभीत कूफियों ने खत लिखने की बात से साफ इनकार कर दिया. तब भी हजारों के लश्कर का हजरत हुसैन व उनके साथियों ने अत्यंत बहादुरी से मुकाबला किया.

युद्ध के दौरान नमाज पढ़ते समय सजदे की हालत में यजीदी सिपाही ने हजरत हुसैन (अ) को शहीद कर दिया. इस शहादत ने इस्लाम को नयी ऊर्जा प्रदान की. कर्बला की घटना के बाद यजीद के संक्षिप्त शासनकाल में अनेक विद्रोह हुए. उसने मदीना और मक्का पर भी आक्रमण कर पवित्र स्थानों का अपमान किया. फिर भी यजीद को स्थिर होने का मौका नहीं मिला और 683 में इसकी दर्दनाक मौत हो गयी. कवि के शब्दों में

सजदे से कर्बला को बंदगी मिल गयी

सब्र से उम्मत को जिंदगी मिल गयी

एक चमन फातिमा का उजड़ा, मगर

सारे इस्लाम को जिंदगी मिल गयी.

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