Muharram 2023: इस साल कब मनाया जाएगा मुहर्रम, जानें इसका इतिहास, महत्व व अन्य जरूरी बातें

Muharram 2023: मुहर्रम महीने की पहली तारीख 20 जुलाई या 21 जुलाई हो सकती है. 21 जुलाई को मु्हर्रम महीने की पहली तारीख होगी. लेकिन इसकी पुष्टि 19 जुलाई को ही हो पाएगी. यानी मुहर्रम का दसवां दिन 28 या 29 जुलाई को आशूरा हो सकता है.

By Shaurya Punj | July 8, 2023 7:20 AM

Muharram 2023:   इस्लाम धर्म का एक बहुत ख़ास त्यौहार मुहर्रम/मोहर्रम है इस त्यौहार को मातम का त्यौहार भी कहा जाता है गम/मातम इसलिए मनाया जाता है क्योंकि मुहर्रम के 10 तारीख को ही हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी अक्सर सवाल किया जाता है मुहर्रम कब है?

कब है मुहर्रम 2023 (Muharram 2023 Probable Date)

मुहर्रम महीने की पहली तारीख 20 जुलाई या 21 जुलाई हो सकती है. मुहर्रम महीने का चांद 19 जुलाई 2023 को देखा जाएगा. जु अल हज्जा महीना 29 का हुआ तो मोहर्रम का महीना 20 जुलाई से शुरू हो सकता है, वरना 21 जुलाई को मु्हर्रम महीने की पहली तारीख होगी. लेकिन इसकी पुष्टि 19  जुलाई को ही हो पाएगी. यानी मुहर्रम का दसवां दिन 28 या 29 जुलाई को आशूरा हो सकता है.  

मुहर्रम का इतिहास

मुहर्रम का इतिहास 662 ईस्वी पूर्व का है, जब मुहर्रम के पहले दिन पैगंबर मुहम्मद और उनके साथियों को मक्का से मदीना जाने के लिए मजबूर किया गया था. वहीं मान्यताओं के अनुसार मुहर्रम के महीने में 10वें दिन ही इस्लाम की रक्षा के लिए हजरत इमाम हुसैन ने अपनी जान कुर्बान कर दी थी. इसलिए मुहर्रम महीने के 10वें दिन मुहर्रम मनाया जाता है.

कौन थे हजरत इमाम हुसैन?

हजरत इमाम हुसैन पैगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे.इमाम हुसैन के वालिद यानी पिता का नाम मोहतरम ‘शेरे-खुदा’ अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे.इमाम हुसैन की मां बीबी फातिमा थीं.हजरत अली मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक और राजनीतिक मुथिया थे.उन्हें खलीफा बनाया गया था.कहा जाता है कि हजरत अली के निधन के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन हजरत अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा कर लिया.मुआविया के बाद उनके बेटे यजीद ने खिलाफत अपना ली.यजीद क्रूर शासक बना.उसे इमाम हुसैन का डर था.इंसानियत को बचाने के लिए यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन के कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए.

क्यों निकालते हैं ताज़िया

मुहर्रम के दिन मुस्लिम समुदाय के लोग ताज़िया निकालते हैं. इसे हजरत इमाम हुसैन के मकबरे का प्रतीक माना जाता है और लोग शोक व्यक्त करते हैं. लोग अपनी छाती पीटकर इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.

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