रामपुर तिराहा कांड: सीबीआई गवाहों से कराएगी आरोपियों की शिनाख्त, 28 साल बाद भी अधूरी है न्याय की लड़ाई
Muzaffarnagar: रामपुर तिराहा कांड में 28 साल से ज्यादा वक्त गुजरने के बाद भी न्याय की लड़ाई अंजाम तक नहीं पहुंच सकी है. उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने के दौरान इस कांड में पुलिस पर आंदोलनकारियों के साथ बर्बरता करने से लेकर रेप के आरोप हैं. मुजफ्फरनगर की कोर्ट में भी मामला चल रहा है.
Muzaffarnagar: उत्तर प्रदेश के बहुचर्चित रामपुर तिराहा कांड के मामले में अब सीबीआई गवाहों से आरोपियों की शिनाख्त करा सकेगी. कोर्ट के आदेश के बाद इस संबंध में रास्ता साफ हो गया है. बचाव पक्ष इसका विरोध कर रहा था. लेकिन, कोर्ट ने इस पर अपनी मुहर लगा दी है.
रामपुर तिराहा कांड में सीबीआई के प्रार्थना पत्र पर बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने आपत्ति जाहिर की थी. मुजफ्फरनगर कोर्ट ने मामले में विधिक व्यवस्था दी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने बचाव पक्ष का प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया.
उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के थाना छपार क्षेत्र में 1 अक्टूबर 1994 की रात को लोग आज भी नहीं भूले हैं. पृथक उत्तराखंड राज्य के गठन की मांग को लेकर देहरादून से दिल्ली जा रहे आंदोलनकारियों को पुलिस ने रामपुर तिराहा पर बैरिकेडिंग लगाकर रोक लिया था. दरअसल 1994 में गांधी जयंती पर दिल्ली के रामलीला मैदान में पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर रैली प्रस्तावित थी.
रात के समय आंदोलन उग्र होने पर पुलिस ने फायरिंग कर दी थी, जिसमें सात आंदोलनकारी की मौत हो गई थी. मामले में कई महिलाओं के साथ रेप के आरोप भी पुलिस पर लगे थे. सीबीआई ने विवेचना के बाद कोर्ट में चार्जशीट दाखिल की.
सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता परविंदर सिंह ने बताया कि मामले में सीबीआई की तरफ से न्यायालय में प्रार्थना पत्र दाखिल किया गया है. इसमें रामपुर तिराहा कांड के गवाहों से आरोपियों की शिनाख्त कराने की मांग की गई है. अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोर्ट संख्या 7 शक्ति सिंह की कोर्ट में बचाव पक्ष के अधिवक्ताओं ने सीबीआई की इस मांग का विरोध किया.
इसमें उन्होंने तर्क दिया कि गवाह कोर्ट में आरोपी की पहचान नहीं कर सकता. वहीं विवेचना के दौरान सीबीआई ने आरोपी की पहचान नहीं कराई थी. ऐसे में दोनों पक्ष की बहस सुनने के बाद कोर्ट ने बचाव पक्ष के अधिवक्ता की ओर से दीया गया प्रार्थना पत्र खारिज कर दिया.
एडीजीसी परविंदर सिंह ने बताया कि दरअसल किसी गवाह द्वारा अदालत में आरोपी की पहचान उसके साक्ष्य से कराएं जाने पर कोई कानूनी अवरोध नहीं है. ऐसे में कोर्ट के आदेश से सीबीआई के लिए गवाहों के जरिए आरोपियों की पहचान कराए जाने का रास्ता खुल गया है. कोर्ट ने सभी दस्तावेजों के संबंध में स्थिति स्पष्ट करने के लिए सीबीआई के पुलिस अधीक्षक को 8 जून तक का समय दिया है. इसके बाद आगे की प्रक्रिया पूरी होगी.
उत्तराखंड के गठन के बाद आज भी रामपुर तिराहा कांड की यादें लोगों के जहन में हैं. आंदोलनकारी और अन्य संगठन हर वर्ष इसकी याद में कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं. इस प्रकरण में पुलिस फायरिंग में लोगों की मौत से लेकर महिलाओं से बदसलूकी के कारण उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुलायम सिंह यादव सरकार की काफी आलोचना हुई थी. कहा जाता है कि इस कांड का ही असर है कि समाजवादी पार्टी आज तक उत्तराखंड में पैर नहीं जमा पाई.
सरकार ने 1994 में ही इस मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. सीबीआई ने सात मामलों में अदालत में चार्जशीट दायर की थी. इनमें मुजफ्फरनगर के तत्कालीन जिलाधिकारी अनंत कुमार सिंह और पुलिस अधीक्षक आरपी सिंह को आरोपी बनाया गया था. इन सात मामलों में से तीन मामले अलग-अलग कारणों से खत्म हो चुके हैं. चार मामले अभी भी मुजफ्फरनगर की अदालतों में लंबित हैं.
इस बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश को बांटकर उत्तरांचल के नाम से अलग राज्य बना दिया. उत्तरांचल सरकार ने दिसंबर 2006 में राज्य का नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया. स्थापना के बाद से अब तक 28 साल से ज्यादा वक्त गुजर गया है. लेकिन, रामपुर तिराहा कांड के पीड़ितों का इंसाफ का इंतजार खत्म नहीं हुआ है.