नदिया हिंदू उच्च विद्यालय : जमीन देने वाले ने स्कूल के नाम में हिंदू लिखने की दी थी सलाह, पढ़ें पूरी कहानी
लोहरदगा का नदिया हिंदू हाई स्कूल इन दिनों चर्चा में है. इस स्कूल के नाम से सरकार ने हिंदू शब्द हटा दिया है. इस स्कूल में हिंदू शब्द क्यों जुड़ा, इसकी भी अपनी एक अलग कहानी है. स्कूल की स्थापना के पहले जमीन दान देने वाले राजा बलदेव दास बिरला ने क्या रखी थी शर्त, यहां पढ़ें.
झारखंड के लोहरदगा के नदिया हिंदू उच्च विद्यालय का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. जब भारत आजाद नहीं था. तब लोहरदगा नगरी में प्राथमिक एवं एकमात्र हिंदी मिडिल स्कूल थाना रोड में था. उच्च शिक्षा हेतु यहां एक भी उच्च विद्यालय नहीं था. अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए रांची भेजने की बाध्यता थी. रांची वही जा सकते थे, जो संपन्न परिवार के थे. सामान्य जन के लिए रांची में पढ़ाई का खर्च वहन करना उस समय संभव नहीं था.
इस तरह लोहरदगा में खुला पहला हाई स्कूल
इसकी वजह से कई मेधावी छात्र उच्च शिक्षा से वंचित रह जाते थे. वर्ष 1913 में बिहार ओडिशा के लोक शिक्षा निदेशक स्वर्गीय जयन लोहरदगा हिंदी मीडियम स्कूल का निरीक्षण करने आये थे. उस समय यहां के नागरिकों ने उच्च विद्यालय स्थापना के लिए एक निवेदन पत्र उन्हें सौंपा. लगभग 12 वर्षों के बाद सन् 1925 में स्वर्गीय योगेंद्र नाथ चटर्जी तत्कालीन विद्यालय निरीक्षक ने हिंदी मिडिल स्कूल में ही उच्च विद्यालय चलाने का निर्णय लिया.
राजा बलदेव दास बिरला ने नदिया में दी 8 एकड़ जमीन
परिणामस्वरूप 1927 में उन्हीं की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक आम सभा हुई, जिसमें निर्णय लिया गया कि विद्यालय में अतिरिक्त कमरों का निर्माण कर लोहरदगा के नदिया में उच्च विद्यालय खोल दिया जाये. इसके लिए एक निर्माण समिति गठित की गयी. समिति के सभापति गौरी दत्त मंडेलिया और मंत्री श्रीकृष्ण साहू, राजा बलदेव दास बिरला समेत कई सदस्य बनाये गये. शुरू में राजा बलदेव दास बिरला ने नदिया गांव में स्थित अपनी 8 एकड़ जमीन उच्च विद्यालय के लिए देने की घोषणा की.
स्कूल के नामकरण के लिए बिरला ने रखी थी शर्त
साथ ही 4 हजार रुपये नकदी भी इस शर्त पर दी कि उनके नाम की जगह इस स्कूल का नाम नदिया हिंदू उच्च विद्यालय रखा जायेगा. नामकरण के बाद 10 हजार रुपये विद्यालय निर्माण के लिए एकत्रित किया गया. भवन निर्माण में समय लगने लगा, तो 1931 में हिंदी मिडिल स्कूल में एक खपरैल कोठरी का निर्माण कराकर आठवां वर्ग मात्र 12 छात्रों के साथ खोला गया.
तीन क्लास को नये भवन में किया गया शिफ्ट
वर्ष 1932 में नवम वर्ग और वर्ष 1933 में दशम वर्ग की पढ़ाई शुरू हो गयी. 31 अक्टूबर 1932 को तत्कालीन शिक्षा सचिव स्वर्गीय बीके गोखले ने विद्यालय भवन का शिलान्यास किया. मारच 1934 में 5 कमरों का निर्माण होने के बाद 8वीं, 9वीं और 10वीं कक्षा को नवनिर्मित भवन में हिंदी मीडियम स्कूल से शिफ्ट कर दिया गया.
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नागरिकों ने 15 कमरे का कराया निर्माण
वर्ष 1935 में विद्यालय को सरकार की मान्यता मिल गयी. वर्ष 1936 में इस विद्यालय के विद्यार्थी पहली बार प्रवेशिका परीक्षा में सम्मिलित हुए. अभी विद्यालय का पुराना भवन मौजूद है. बाद में नागरिकों ने मिलकर कुल 15 कमरों का निर्माण कराया. सरकार ने 15,484 रुपये विद्यालय को अनुदान में दिया था.