Nag Panchami 2023: श्रावण मास में पड़ने वाला हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है नाग पंचमी. नाग पंचमी सावन माह की शुक्ल पक्ष के पंचमी के दिन मनाया जाता है. इसी माह में होने वाली हरितालिका तीज के एक दिन बाद नाग पंचमी का त्योहार पड़ता है. इस बार नाग पंचमी 21 अगस्त, मंगलवार को है. इस दिन नाग देवता की पूजा करने का विधान है. जानें नाग पंचमी के दिन क्यों की जाती है नाग की पूजा? क्या है पाैराणिक मान्यता -परंपरा और इस दिन कालसर्प दोष निवारण के लिए कौन से उपाय किये जा सकते हैं.
हिन्दू धर्म में बारिश की फुहारों और सावन माह के आगमन से साथ ही नागों की पूजा भी शुरू हो जाती है. नागों को देवताओं के रूप में पूजा जाता है. धर्म ग्रंथों में भगवान के कई अलग-अलग रूपों और नाग जाति का भी महत्वपूर्ण संबंध बताया गया है. इन्हीं मान्यताओं और परंपराओं के अनुसार नागपंचमी पर नाग देव की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि नागपंचमी के दिन नाग देव की पूजा से जीवन में धन, संपत्ति, सुख का आगमन होता है. शत्रुओं से छुटकारा मिलता है और सर्प दंश का डर भी समाप्त हो जाता है. नाग पंचमी के दिन क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए आगे पढ़ें…
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नाग पंचमी के दिन भूमि की खुदाई नहीं करनी चाहिए.
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नाग पूजा के लिए नाग देवता की मूर्ति या फिर मिट्टी या धातू से बनी प्रतिमा की पूजा की जाती है.
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दूध, धान, खीर और दूब चढ़ावे के रूप मे अर्पित की जाती है.
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सपेरों से किसी नाग को खरीदकर उन्हें मुक्त भी कराया जाता है.
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जीवित सर्प को दूध पिलाकर भी नागदेवता को प्रसन्न किया जाता है.
नाग पंचमी के दिन कुछ लोग काल सर्प दोष निवारण पूजा भी करवाते हैं. नाग पंचमी पर शेष नाग, तक्षक नाग और वासुकी नाग की पूजा की जाती है. वासुकी नाग को भगवान भोलेशंकर अपने गले में धारण करते हैं. मान्यता है कि नागों की पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं.
1. राहु तथा केतु स्तोत्र एवं मंत्रों का जाप करें.
2.सर्प मंत्र या सर्प गायत्री एवं नाग स्तोत्र का पाठ करें .
3. मनसा देवी के मन्त्र एवं स्तोत्र का पाठ करें.
4. महामृत्युंजय मंत्र का जप करें.
5. प्रदोष व्रत और रुद्राभिषेक करें.
नागों और भगवान शिव का संबंध सृष्टि के आरंभ से ही चला आ रहा है. नाग भगवान शिव के गले समेत कई अन्य अंगों पर भी लिपटे रहे हैं. इसलिए भी भगवान शिव के साथ-साथ नागों को देवता के रूप में पूजा की जाती है.
सृष्टि रचयिता ब्रह्रमा जी ने इस दिन अपनी कृपा से शेषनाग को अलंकृत किया था. शेषनाग द्वारा पृथ्वी का भार अपने सिर पर धारण करने के बाद लोगों ने नाग देवता की पूजा करनी शुरू कर दी, तभी से यह परंपरा चली आ रही है.
भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर क्षीर सागर में विराजमान रहते हैं. भगवान विष्णु और शेषनाग के मध्य बहुत ही घनिष्ठ संबंध है. वहीं दूसरी ओर शेषनाग पृथ्वी का भार अपने सिर पर भी धारण करते हैं. इसलिए भगवान विष्णु के साथ शेषनाग की पूजा की जाती है.
शास्त्रों में नाग पंचमी पर नागों की पूजा का एक प्रसंग भगवान कृष्ण से जुड़ा हुआ है. बालकृष्ण जब अपने दोस्तों के साथ यमुना नदी के किनारे खेल रहे थे तो उन्हें मारने के लिए कंस ने कालिया नामक नाग को यहां भेजा था. कालिया नाग के आतंक से लोग परेशान हो गए, इसके बाद वहां के लोग भयभीत रहने लगे.
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