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Nandigram Election Petition: ममता बनर्जी मामले में जज बदलने की मांग, जस्टिस कौशिक चंद की निष्पक्षता पर उठाये सवाल

कलकत्ता हाइकोर्ट में 18 जून को ममता बनर्जी की नंदीग्राम से जुड़ी याचिका पर सुनवाई तो नहीं हुई, जज बदलने की मांग शुरू हो गयी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2021 5:40 PM

कोलकाताः कलकत्ता हाइकोर्ट में शुक्रवार (18 जून) को ममता बनर्जी की याचिका पर सुनवाई तो नहीं हुई, अलबत्ता याचिका की सुनवाई करने वाले जज की निष्पक्षता पर सवाल खड़े किये जाने लगे हैं. वकीलों के एक वर्ग ने जस्टिस कौशिक चंद की बेंच में ममता बनर्जी की याचिका पर सुनवाई का विरोध किया है और इस केस को किसी और बेंच में ट्रांसफर करने की मांग की है.

पूर्वी मेदिनीपुर जिला के नंदीग्राम विधानसभा क्षेत्र से शुभेंदु अधिकारी के निर्वाचन को चुनौती देने वाली पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की याचिका पर जिस जज की बेंच में सुनवाई होनी है, उनके खिलाफ कलकत्ता हाइकोर्ट के वकील लामबंद हो गये. वकीलों ने काला मास्क लगाकर और पोस्टर-बैनर हाथों में लेकर हाइकोर्ट परिसर में ही जस्टिस कौशिक चंद के खिलाफ प्रदर्शन किया.

वकीलों के हाथ में जो पोस्टर-बैनर थे, उस पर लिखा था- न्याय व्यवस्था के साथ राजनीति न करें. हालांकि, इस मामले की सुनवाई शुक्रवार (18 जून) को नहीं हुई. जस्टिस कौशिक चंद ने कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को खुद इस मामले में कोर्ट में हाजिर होना होगा, क्योंकि ऐसे मामलों में याचिकाकर्ता को खुद कोर्ट में उपस्थित होना होता है. इसलिए केस की सुनवाई एक सप्ताह के लिए गुरुवार (24 जून) तक टाल दी गयी.

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सुनवाई टलने के बावजूद वकीलों का विरोध प्रदर्शन नहीं थमा. विरोध प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले अचिंत्य कुमार बंद्योपाध्याय ने कहा कि जस्टिस कौशिक चंद कभी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सक्रिय सदस्य थे. इतने महत्वपूर्ण राजनीतिक मामले की सुनवाई अगर उनके एकल बेंच में होगी, तो इससे लोगों के मन में न्याय व्यवस्था को लेकर कई सवाल खड़े होंगे. उन्होंने मांग की कि इस मामले को सुनवाई के लिए किसी और बेंच में भेजा जाये.

विरोध करने वाले वकीलों ने सवाल किया कि मामले के राजनीतिक महत्व को जानते हुए जस्टिस कौशिक चंद की बेंच में इस मामले को क्यों भेजा गया? तृणमूल कांग्रेस के राज्य महासचिव कुणाल घोष और तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सांसद डेरेक ओब्रायन ने भी इस पर सवाल खड़े किये हैं. दोनों ने ट्वीट करके सवाल पूछा है, जबकि बीजेपी की ओर से अब तक इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है.

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हालांकि, बंगाल भाजपा के नेताओं ने स्वीकार किया है कि कुछ समय तक कौशिक चंद बीजेपी लीगल सेल से जुड़े रहे थे. हालांकि, वह पार्टी में कभी किसी पद पर नहीं रहे. दूसरी तरफ, कोर्ट के सूत्रों ने बताया है कि जस्टिस कौशिक चंद कलकत्ता हाइकोर्ट में केंद्र सरकार के एडीशनल सॉलिसिटर जनरल रह चुके हैं. सीबीआई और केंद्र सरकार की तरफ से कई मामलों में वह वकील के रूप में कोर्ट में पेश हुए.

ममता सरकार के खिलाफ केस लड़ चुके हैं कौशिक चंद

जानकारों की मानें, तो ममता बनर्जी की सरकार के खिलाफ कौशिक चंद कई केस लड़ चुके हैं. ममता बनर्जी सरकार ने जब इमामों को भत्ता देने की घोषणा की, तो उस मामले में बीजेपी के वकील एसके कपूर थे और कौशिक चंद उनके जूनियर थे. इतना ही नहीं, अमित शाह की धर्मतल्ला के विक्टोरिया हाउस के सामने होने वाली एक जनसभा की अनुमति देने से पुलिस प्रशासन ने इनकार कर दिया, तो मामले कोर्ट पहुंचा था. इस मामले में बीजेपी के वकील कौशिक चंद थे.

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उपरोक्त दोनों ही केस में फैसला भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में हुआ था. राज्य बीजेपी के सूत्रों का कहना है कि इन्हीं मामलों की सुनवाई के दौरान भाजपा के तत्कालीन महासचिव राहुल सिन्हा से उनकी निकटता बढ़ी. कई लोगों का यहां तक कहना है कि वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी की सरकार केंद्र में बनी, तो राहुल सिन्हा की सिफारिश पर ही केंद्र सरकार के पैनल में कौशिक चंद का नाम शामिल हुआ. कई मामलों में कौशिक चंद ने बंगाल सरकार पर कोर्ट में सवाल उठाये थे.

उधर, वकीलों का एक वर्ग ऐसा भी है, जो मानता है कि जस्टिस कौशिक चंद पर ऐसे आरोप लगाना गलत है. पेशेवर वकीलल के रूप में वह किसी मुवक्किल के लिए काम करने को स्वतंत्र हैं. वकालत के दौरान किसी भी मुवक्किल से उनकी नजदीकी होती है, तो इसमें कुछ भी गलत या अस्वाभाविक नहीं है. लेकिन, न्यायाधीश के पद पर बैठने के बाद उन पर किसी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा.

जज को कोई प्रभावित नहीं कर सकता

वकीलों ने कहा कि जस्टिस कौशिक चंद ही क्यों, किसी भी जज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, न कभी आगे पड़ेगा. जाने-माने राजनीतिज्ञ और वरिष्ठ वकील अरुणाभ घोष ने जस्टिस कौशिक चंद के बारे में कहा कि जहां तक मैं जानता हूं, वे कभी भी बीजेपी के सदस्य नहीं रहे. हां, बीजेपी के लिए कुछ मामलों में उन्होंने वकालत की और सुर्खियां बटोरी. क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि वे बीजेपी के हो गये!

श्री घोष ने कहा कि विकास भट्टाचार्य सीपीएम के सांसद और पेशेवर वकील हैं. वह कमजोर वर्ग के लोगों का केस मुफ्त में लड़ते हैं. उनके मुवक्किलों में कई राजनीतिक दलों के कार्यकर्ता और नेता भी होते हैं. जब वह किसी और दल के नेता का केस लड़ते हैं, तो क्या हम यह मान लेंगे कि विकास भट्टाचार्य उस पार्टी के हो गये!

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Posted By: Mithilesh Jha

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