Narendra Singh News: बिहार सरकार के पूर्व स्वास्थ्य एवं कृषि मंत्री तथा लंबे समय तक विधानसभा में चकाई का प्रतिनिधित्व करने वाले नरेंद्र सिंह के निधन के साथ ही राजनीति के एक युग का समापन हो गया. वे लगभग 30 वर्षों तक न केवल चकाई अपितु सम्पूर्ण जिले की राजनीति के केन्द्र बिंदू बने रहे.
नरेंद्र सिंह ने राजनीति की शुरुआत ही बेहद मजबूत अंदाज में की और चकाई में उनकी पकड़ कुछ ऐसी थी कि उनके बेटे सुमित सिंह को यहां से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत मिली.
चकाई विधानसभा के लोग आज भी इस बात को मजबूती से कहते हैं कि यहां नरेंद्र सिंह ने जात नहीं बल्कि जमात की राजनीति को तवज्जो दिया. यही कारण है कि चकाई का हर व्यक्ति अपने आप को उनसे जुड़ा हुआ पाता था.
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पटना विश्वविद्यालय की छात्र राजनीति एवं जेपी आंदोलन में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के बाद 1985 में पहली बार वे कांग्रेस पार्टी के टिकट पर चकाई से विधायक चुने गए थे. तब से अंतिम क्षण तक वे चकाई से जुड़े रहे.
चकाई के घर-घर से उनका जुड़ाव था. उनके जुड़ाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चकाई के हजारों लोगों को वे उनके नाम से पुकार लेते थे. उनके इस स्मरणशक्ति को देख लोग अचंभित हो जाते थे. सन 2000 के विधानसभा चुनाव मे वे जमुई एवं चकाई दोनों विधानसभा से चुनावी रण में उतरे. लोकप्रियता का ये आलम कि दोनों विस की जनता ने उन्हें सर आंखों पर बिठाया. ऐसे मे लोगों को लगा कि वे दोनों जगहों में से जमुई का ही चयन करेंगे. लेकिन सब की उम्मीदों से परे जमुई विधानसभा से त्यागपत्र देकर उन्होंने सबको चौंका दिया
जमुई विधानसभा से त्यागपत्र देते समय उन्होंने कहा था कि चकाई के लोगों से मिलने वाले प्यार से मैं अपने आप को दूर नहीं करना चाहता. यही कारण है कि अपने शुभचिंतकों के हर छोटे-बड़े कार्यक्रमों में वे जरूर शामिल होते थे. इसी प्रेम का परिणाम है कि है कि वे अपने बाद अपने पुत्र एवं विधायक सुमित सिंह को स्थापित करने में सफल रहे.
उनके निकटतम सहयोगी एवं प्रत्येक चुनावों में उनका प्रस्तावक रहे राजीव रंजन पांडेय बाताते हैं कि भले ही वे महान समाजवादी नेता श्रीकृष्ण सिंह के पुत्र थे, लेकिन राजनीति में अपना साम्राज्य उन्होंने अपनी काबिलियत के बल पर खड़ा किया था. सुमीत सिंह इस बार चकाई से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर जीते और वर्तमान में बिहार सरकार के मंत्री हैं.
Published By: Thakur Shaktilochan