Manoj Bajpai interview : अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpai) ने अब तक कई यादगार किरदारों को परदे पर उतारा है. जल्द ही वे ज़ी फाइव की फ़िल्म साइलेंस.. कैन यू हियर इट में अपने अभिनय का एक और अलहदा रंग प्रस्तुत करने वाले हैं. उनकी इस फ़िल्म, हालिया मिले राष्टीय पुरस्कार सम्मान पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…
फ़िल्म भोंसले के लिए बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड यह अवार्ड कितना खास है. किस तरह से इस जीत को सेलिब्रेट करने की तैयारी है?
सच कहूं तो मुझे पता भी नहीं था कि अवार्ड घोषित होने वाला है. मै कोविड संक्रमित हूं. मैं सो रहा था. सोकर उठा तो लोगों के मैसेज और कॉल आने शुरू हुए तो पता चला कि ऐसा कुछ हुआ. फिलहाल मैं इतना ही कह सकता हूं कि यह सम्मान सिर्फ मुझे नहीं बल्कि हर उस शख्स को है, जिसने भोंसले फ़िल्म को सपोर्ट किया.
फ़िल्म भोंसले के लिए आपने दर्शकों, क्रिटिक्स के साथ साथ इंटरनेशनल फ़िल्म फेस्टिवल्स में भी काफी तारीफें बटोरी थी. क्या आपको फ़िल्म की पूरी जर्नी के दौरान लगा था कि ये फ़िल्म आपको बेस्ट एक्टर का नेशनल अवार्ड दिला सकती है?
कभी किसी अवार्ड की आशा या अपेक्षा कर ही नहीं कर सकते हैं क्योंकि वो दी जाती है कुछ खास ज्यूरी मेंबर द्वारा. वो उनके बीच की बात होती है. वो किस तरह से किसी भी फ़िल्म या अभिनय को देखते हैं इसलिए किसी को अंदाज़ा नहीं हो सकता कि उन्हें इस फ़िल्म के लिए नेशनल अवार्ड मिलेगा या नहीं. अवार्ड मिलने पर सर झुकाकर धन्यवाद कहना चाहिए और उसके बाद अपने अगले काम पर लगना पड़ता है क्योंकि अगला काम अगली चुनौती को लेकर आता है.
ज़ी 5 पर आपकी फ़िल्म साइलेंस कैन यू हियर इट रिलीज होने वाली हैं, आप अपने किरदारों को किस तरह से चुनते हैं. क्या जेहन में होता है. यह फ़िल्म आपको क्या खास करने का मौका दे रही है?
मैं कोई भी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं तो एक पाठक के तौर पर पढ़ता हूं. खुले दिल से पढ़ता हूं, फिर देखता हूं कि कुछ नया कह रही है. निर्देशक का विजन क्या है. ये सब देखना पड़ता है. अफसर का किरदार आप नहीं निभा रहे होते हैं लेकिन हर पदवी, हर यूनिफार्म के पीछे एक चरित्र है. जिसने उसे संभाला है तो हम एक्टर्स चरित्र को निभाते हैं यूनिफार्म को नहीं. फैमिली मैन में भी मैं अफसर हूं लेकिन साइलेंस के किरदार या किसी दूसरे किरदार से उसकी तुलना नहीं की जा सकती है. हर चरित्र अलग है.
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आप अपने किरदारों में पूरी तरह से रच बस जाते हैं. इस फ़िल्म के किरदार के लिए एक एक्टर के तौर पर आपका क्या समर्पण था?
बहुत सारी रीडिंग की ज़रूरत थी क्योंकि मर्डर मिस्ट्री में बहुत सारे ताने बाने होते हैं. छोटी छोटी चीज़ें होती हैं. जिन्हें ध्यान में रखना होता है. निर्देशक के साथ बैठकर आठ से दस दिन रीडिंग चलती रहती है और किरदार के हर पक्ष पर बात होती है. कुछ एक रिहर्सल्स होते हैं. हर किरदार की तैयारी अलग होती है.
कभी किसी के साइलेंस ने आपको बहुत प्रभावित किया हो?
श्री अमिताभ बच्चन जी का. मैं उनके साथ फ़िल्म अस्क कर रहा था. उन्होंने शॉट देने के बाद मुझे देखा औऱ कहा कि कैसा लगा. मैंने उनकी तरफ देखा और कहा कि सर एक और टेक करते हैं. उसके बाद जो उनकी चुप्पी थी और जिस तरह से वो मुझे देख रहे थे ( हंसते हुए) मैं बयान नहीं कर सकता हूं. उन्होंने थोड़ी देर में पूछा क्या खामी लग रही है. मैंने बस बोला सर एक टेक लेते हैं. उनकी चुप्पी फिर आ गयी.
आप अपनी फिल्मों और परफॉरमेंस को क्या क्रिटिक की तरह देखते हैं?
मैं इतना बड़ा क्रिटिक हूं कि मैं अपना काम नहीं देखता क्योंकि मैं फिर उसी के बारे में सोचता रहता हूं कि इतना बकवास काम किया. उस डायलॉग को थोड़ा ब्रेक क्यों नहीं किया. डायलॉग बोलते हुए उधर क्यों देख रहा था. मेरी अपनी बुराई मुझसे ज़्यादा कोई नहीं कर सकता है यही वजह है कि क्रिटिक्स की प्रसंशा या बुराई मेरे लिए मायने नहीं रखती है. नए एक्टर्स को देखता हूं तो उनसे बहुत कुछ सीखने का मन होता है. कोरोना की वजह से मैं होम क्वारन्टीन हूं तो इस दौरान मैंने कई ब्रिटिश एक्टर्स की फ़िल्में देखी. देखकर लगा कि ये मुझे भी अपने परफॉरमेंस में लाना चाहिए. ये फिल्में तीस साल पहले की है. एक एक्टर के तौर जब आप खुद को बेहतर बनाने में प्रत्यनशील रहते हैं तो आपको आपका मौजूदा काम पसंद नहीं आता है.
ओटीटी प्लेटफार्म के इस दौर को किस तरह से देखते हैं ,क्या एक एक्टर के तौर पर यह आपको ज़्यादा मौके परफॉर्म करने के लिए दे रहा है?
ओटीटी की सबसे अच्छी बात है कि यहां अलग अलग तरह की कहानियों को कहने का मौका मिल रहा है. अलग किरदार गढ़े जा रहे हैं. सिनेमा हमारे हिंदुस्तान में कहीं ना कहीं बॉक्स आफिस से बहुत कंट्रोल होता है. जिसकी वजह से लोग बहुत ही घिसे पिटे तरीके से अपनी फिल्मों को बनाते हैं किरदार को गढ़ते हैं. ओटीटी बहुत ही प्रजातांत्रिक माध्यम है. लेखकों को उड़ान भरने का मौका देता है, जिससे अच्छी कहानियां लिखी जा रही हैं.
थिएटर में फिल्में रिलीज होती हैं तो 100 करोड़ क्लब उनकी सफलता का पैमाना हुआ करता है ओटीटी पर आपके लिए सफलता का पैमाना क्या है?
मेरे लिए 100 करोड़ या 300 करोड़ कोई मायने नहीं रखता है. मुझे फ़िल्म अच्छी लगी या नहीं ये मायने ज़्यादा रखता है. मुझे लगता है कि इसी पैमाने पर किसी फिल्म को मापा जाना चाहिए. 100 और 200 करोड़ प्रोड्यूसर और डिस्ट्रीब्यूटर के लिए होता है. सिनेमा क्वालिटी पर निर्भर करता है. अगर क्वालिटी नहीं होगी तो धीरे धीरे खत्म हो जाएगा तो सिनेमा को उसकी खूबियों पर आंके. ओटीटी पर कमाई आंकना मुश्किल है क्योंकि उसपर फ़िल्म और सीरीज सालों साल तक रहती है.