Jharkhand News (निरभ किशोर, गोड्डा) : झारखंड के गोड्डा जिला अंतर्गत पहाड़ों से घिरे सुंदरपहाड़ी व जंगलों में रह रहे मोर का जान आफत में है. पहाड़ों पर बसे गांव के लोग ऐसे मोर- मोरनी का शिकार कर मांस को लोग खा रहे हैं. गांव के लोग राष्ट्रीय पक्षी का शिकार तीर-धनुष या किसी पारंपरिक हथियार से नहीं, बल्कि अनाज व चावल में कीटनाशक को मिलाकर प्रयोग कर रहे हैं. पहाड़ों पर ऐसे मोर का अब तक तकरीबन सैकड़ों की संख्या में शिकार कर ग्रामीण अपना निवाला बना चुके हैं. करीब 20 दिनों से मोर शिकार बनाया जा रहा है.
इस संबंध में पहाड़ों पर रह रहे ग्रामीण सूत्रों के अनुसार, पहाड़ों पर जैसे ही बारिश होती है, तो मोर घटा देखकर प्रफुल्लित होकर झुंड में पहाड़ों के जंगल से निकल कर आनंद लेते हैं. सर्वाधिक संख्या मोरनी की होती है जिसपर ग्रामीणों की नजर पड़ जाने के बाद कीटनाशी युक्त अनाज बिखेर कर पक्षी को अपना शिकार बनाते हैं.
पहाड़ों पर करीब एक सप्ताह के दौरान 150 से भी अधिक मोर का शिकार हुआ है. ग्रामीणों सूत्रों की माने, तो अबतक सैकड़ों मोर को मारा गया है. एक पक्षी का वजन करीब 5 से 6 किलोग्राम होता है. इससे एक परिवार के लिए दो दिनों का भोजन होता है. इस वर्ष पिछले कई वर्षों की तुलना में सबसे अधिक मोर व मोरनी देखे गये हैं. इनमें मोरनी की संख्या सबसे ज्यादा है. पहाड़ों के गांव में मुख्य रूप से जमाली, लीलधौनी, तामली गोढा, डूमर पालम, गादी बेड़ो, तेलविट्ठा, अंद्री पुड़िया, केरसोल, मंदगी बढ़ा, कौवा पहाड़ जैसे पहाड़ी गांव में मोर का लगातार शिकार हो रहा है.
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मोर का इस्तेमाल शिकार के रूप में करने के बाद इसके पंख को भी ग्रामीण ऊंची कीमतों में बेचते हैं. बताया जाता है कि शहर तथा अन्य बड़े शहरों में पंख का उपयोग कई सजावट समान के निर्माण के साथ-साथ गांव के लोग इसे बजाने वाले ढोल के ऊपर सजावट में इस्तेमाल करते हैं.
इस संबंध में डीएफओ पीआर नायडू से पूछे जाने पर उन्होंने मोर के शिकार की जानकारी से अनभिज्ञता जतायी. साथ ही कहा कि मामले की जानकारी ले रहा हूं. ऐसे मामले में शिकारियों के खिलाफ वर्ल्ड वाइड अधिनियम के तहत कार्रवाई आवश्यक रूप से की जायेगी.
Posted By : Samir Ranjan.