बेटियां किसी भी मामले में बेटों से कम नहीं हैं. वह भी अब हर क्षेत्र में अपने मां-बाप के साथ देश का नाम रोशन कर रही हैं. उन्हीं में से एक हैं रेसलर अंतिम पंघाल, जिन्होंने महज 17 साल की उम्र में ही अंडर-20 विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल कर देश का मान बढ़ाया है. 34 साल के इतिहास में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला रेसलर का गौरव हासिल करने वाली अंतिम का यह सफर बेहद संघर्षपूर्ण रहा है, जो दूसरी बेटियों के लिए काफी प्रेरणादायी है.
भारत की पहली महिला पहलावान बनी अंतिम पंघाल
बीते दिनों बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर हरियाण की बेटी अंतिम पंघाल ने इतिहास रच दिया. इस तरह वह इस विश्व स्तरीय प्रतियोगिता में स्वर्ण जीतने वाली भारत की पहली महिला पहलावान बन गयीं. पंघल ने 53 किलो फाइनल में कजाकिस्तान की एटलिन शगायेवा को 8-0 से हराया. चैंपियनशिप के 34 साल के इतिहास में पहली बार एक भारतीय महिला खिलाड़ी ने पोडियम के टॉप पर फिनिश किया. लेकिन, इस मुकाम तक पहुंचना अंतिम के लिए इतना आसान नहीं था. इसके लिए उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा.
बेटी की प्रैक्टिस न रुके, इसलिए पिता को बेचनी पड़ी जमीन-ट्रक
शुरुआत में अंतिम अपनी मां के साथ पांच हजार रुपए के किराये के कमरे में आकर रहने लगी, लेकिन जब गांव और हिसार, दो-दो जगह परिवार का काम चलना मुश्किल होने लगा, तो पिता रामनिवास ने हिसार शिफ्ट होने का फैसला कर लिया. वे रोजाना खेती के लिए हिसार से गांव जाते थे. बहुत से लोगों ने इस फैसले को गलत बताया, पर उन्होंने किसी की एक न सुनी. कुछ दिनों तक किराये के मकान के रहने के बाद उनके पिता को अहसास हुआ कि अगर बेटी को एक बेहतरीन खिलाड़ी बनाना है, तो उसके लिए अच्छी डायट जरूरी है. लिहाजा, किराये के घर में भैंस पालना संभव नहीं था. तब उन्होंने अपनी बेटी के करियर के लिए हिसार में अपना मकान बना लिया और घर के एक हिस्से में तीन भैंस और गाय भी रख लिया, ताकि अंतिम समेत उनकी बेटियों को दूध की कोई कमी न रहे. इस दौरान काफी आर्थिक तंगी का भी सामना करना पड़ा. बेटी की प्रैक्टिस में रुकावट ना आये, इसलिए राम निवास को अपने दोस्तों से उधार भी लेना पड़ा. बेटी को बुलंदियों तक पहुंचाने के लिए रामनिवास ने अपनी ढाई एकड़ जमीन, ट्रक, टेंपो और ट्रैक्टर तक बेच दिया.
12 साल की उम्र में अंतिम ने कुश्ती शुरू की
वर्ष 2004 में हिसार (हरियाणा) के एक गांव भगाना में जन्मीं अंतिम पंघाल का कुश्ती से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं था. उनकी तीनों बड़ी बहनें सरिता, मीनू और निशा पढ़ने जाती थीं, जबकि अंतिम को अपनी मां के साथ डेढ़ एकड़ खेत जोतने वाले पिता के लिए खाना लेकर जाना पड़ता था. वह रास्ते में गांव के अखाड़े में अक्सर पहलवानों को अभ्यास करते देखती थीं. यही से कुश्ती के प्रति उनकी रुचि पैदा हुई. इसके बाद महज 12 वर्ष की आयु में अंतिम ने कुश्ती शुरू कर दी. शुरुआती दिनों में उन्होंने गांव के ही अखाड़े में गुरु पवन कुमार से कुश्ती के दांव-पेंच सीखना शुरू किया, लेकिन दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद ही पवन का निधन हो गया. कुश्ती के प्रति अंतिम की दिलचस्पी और लगाव को देखकर उनके माता-पिता ने उन्हें प्रोफेशनल ट्रेनिंग दिलाने के लिए गांव से करीब 25 किलोमीटर दूर हिसार में बाबा लाल दास कुश्ती एकेडमी में दाखिला करा दिया.
छोटे से गांव से यूं तय किया वर्ल्ड चैंपियनशिप का सफर
सबसे पहले कोच रौशनी देवी के नेतृत्व में अंतिम ने रेसलिंग करनी शुरू की. जिला और राज्य स्तर पर बेहतरीन प्रदर्शन करने के बाद वह राष्ट्रीय स्तर की प्रतिस्पर्धाओं में भी हिस्सा लेने लगीं. साल 2018 में पटना में हुए अंडर 15 नेशनल चैंपियनशिप में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया. इसके बाद अगले ही साल 2019 में कटक में आयोजित सब-जूनियर नेशनल में कैडेट अंडर 17 नेशनल टाइटल का जीता. फिर वर्ष 2020 में एक बार फिर पटना में आयोजित कैडेट अंडर 17 नेशनल टाइटल में गोल्ड मेडल हासिल किया. वर्ष 2021 में उन्होंने कैडेट वर्ल्ड चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज मेडल और 2022 में जापान में आयोजित एशियन जूनियर चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया. इतना ही नहीं, इसी साल अंडर 23 एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल अपने नाम किया. अब महज 17 साल की उम्र में अंतिम ने अंडर-20 वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड जीतकर भारत के लिए इतिहास रच दिया है.
पिता चाहते थे कबड्डी खिलाड़ी बने, बहन ने बनाया पहलवान
रामनिवास कबड्डी खिलाड़ी रह चुके थे और उनकी बड़ी बेटी सरिता भी राष्ट्रीय स्तर की कबड्डी खिलाड़ी थी. वह चाहते थे कि अंतिम भी वही खेले, लेकिन सरिता ने कहा कि अंतिम कबड्डी खिलाड़ी नहीं, बल्कि पहलवान बनेगी. उसकी जिद के कारण अंतिम ने 12 साल की उम्र से पहलवानी का अभ्यास करना शुरू कर दिया.
परिवार में चौथी लड़की होने पर नाम रख दिया ‘अंतिम’
अंतिम पंघल के नाम के पीछे भी एक बेहद दिलचस्प कहानी है,जिसे सुनकर कोई भी भावुक हुए बिना नहीं रह सकता. रामनिवास पंघाल और कृष्णा कुमारी की चौथी संतान के रूप में अंतिम का जन्म हुआ था. तीन लड़कियों के बाद अंतिम के पिता चाहते थे कि उनके यहां बेटा हो, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और तीन बेटियों के बाद अगस्त, 2004 में अंतिम का जन्म हुआ. इसके बाद रामनिवास ने सोच लिया कि अब उन्हें बेटा नहीं चाहिए और यह उनकी अंतिम बच्ची होगी. इसलिए इस बच्ची का नाम ही उन्होंने अंतिम रख दिया. हालांकि, रामनिवास ने अपनी बेटियों को पूरा सपोर्ट किया. अंतिम को खिलाड़ी बनाने का सपना भी उनके पिता ने ही दिखाया था. उन्होंने अपनी सबसे छोटी बेटी को खिलाड़ी बनाने के लिए अपना गांव तक छोड़ दिया. आज अपनी बेटी के इस कीर्तिमान के बाद अंतिम की इस उपलब्धि पर पूरे देश को गर्व है.
अब ओलंपिक में मेडल जीतने की ख्वाहिश रखती हैं अंतिम
वर्ल्ड चैंपियन अंतिम रोहतक की रहने वाली पहलवान निर्मला बूरा को अपना रोल मॉडल मानती हैं. हरियाणा पुलिस में बतौर इंस्पेक्टर कार्यरत निर्मला करीब 30 से भी अधिक नेशनल और इंटरनेशनल मेडल्स अपने नाम कर चुकी हैं. यहां तक कि लॉकडाउन के दौरान अपने घर में मैट लगाकर अभ्यास करने के लिए भी वह काफी चर्चित हुई थीं. निर्मल को प्रेरणा मानने वाली अंतिम ने भी अपने खेल को मजबूत बनाये रखने के लिए सुबह-शाम चार-चार घंटे प्रैक्टिस की. अंतिम अब ओलंपिक में मेडल जीतना चाहती हैं. ऐसे में वह अपनी ट्रेनिंग में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखना चाहती हैं.