इस साल 15 नवंबर को झारखंड को अलग राज्य बने 20 साल हो जायेंगे. इन 20 सालों में राज्य में खेल और खिलाड़ियों के विकास को लेकर सिर्फ घोषणाएं ही हुईं हैं, उन्हें धरातल पर नहीं उतारा जा सका है. इन 20 सालों में 20 खिलाड़ियों को भी नौकरी नसीब नहीं हुई है. इसके पीछे का मुख्य कारण खेल नीति पर गंभीरता से विचार नहीं किया जाना है. इस कारण खिलाड़ियों को नौकरी नहीं मिल रही है. पहली बार 2007 में खेल नीति बनी, जिसमें सरकारी नौकरियों में दो फीसदी आरक्षण का प्रावधान था.
20 सालों में सिर्फ पांच खिलाड़ियों को नौकरी : राज्य गठन के 20 साल के बाद भी सिर्फ पांच खिलाड़ियों को ही राज्य सरकार ने नौकरी दी है. सभी पांचों खिलाड़ियों को नौकरी सिर्फ पुलिस विभाग में मिली है. अन्य किसी भी विभाग में किसी भी खिलाड़ी को नौकरी नहीं दी गयी है. राज्य सरकार द्वारा निकलने वाले सरकारी नौकरी के विज्ञापन में भी पॉलिसी के तहत दिये जाने वाले दो प्रतिशत आरक्षण का भी जिक्र नहीं होता और न ही लाभ मिल पाता है.
इस बार नयी खेल नीति का जो ड्राफ्ट तैयार किया गया है, वह बहुत बढ़िया है. तैयार नीति से राज्य में खेल और खिलाड़ियों का विकास होगा. जिस दिन यह लागू हो जायेगा, वह दिन राज्य के लिए सुनहरा दिन होगा.
भोलानाथ सिंह, अध्यक्ष, हॉकी झारखंड
राज्य में पहले तीन बार खेल नीति बन चुकी है, लेकिन लागू नहीं हो पायी है. इस बार वर्तमान हेमंत सोरेन सरकार इसे लेकर ज्यादा गंभीर लग रही है. यह सरकार स्पोर्ट्स के प्रति अन्य सरकारों से ज्यादा जागरूक है.
जय कुमार सिन्हा, महासचिव, टेबल टेनिस संघ
खेल विभाग ने करीब आठ राज्यों की खेलनीति का अध्ययन करके नयी खेल नीति तैयार की है. इसमें खिलाड़ियों और खेल संघों के लिए कई प्रावधान किये गये हैं. राज्य में अब खेल व खिलाड़ी का विकास होगा.
अनिल कुमार सिंह, खेल निदेशक
Post by : Pritish Sahay