Shardiya Navaratri 2024 में दुर्गासप्त्शी के पाठ के सिद्धिकुंजिका स्त्रोत करने से होगा शत्रु का नाश
Navaratri 2023 siddhikunjika stotra of durgasaptshi: नवरात्रि का पर्व श्रद्धालु अपने मनोकामना के पूर्ति के लिए माता को प्रसन्न करने के लिए अलग -अलग तरीके तथा उपाय करते है. क्योंकि माता प्रसन्न होकर उनके उपर बने सभी मनोकामना को पूर्ण कर दे. इसी उपाय में कई तरीके अपनाते है.
- नवरात्रि नवरात्रि का पर्व श्रद्धालु अपने मनोकामना के पूर्ति के लिए उपाय करते हैं
- दुर्गासप्त्शी का पाठ अत्यंत गुप्त तथा देवी के प्रसन्न करने के लिए बहुत ही दुर्लभ पाठ है
Shardiya Navaratri 2024: 9 दिन तक चलने वाला नवरात्रि का पर्व श्रद्धालु अपने मनोकामना के पूर्ति के लिए एवं माता को प्रसन्न करने के लिए अलग -अलग तरीके तथा उपाय करते हैं. क्योंकि माता प्रसन्न होकर उनके उपर बने सभी मनोकामना को पूर्ण कर दे. इसी उपाय में कई तरीके अपनाते है.
इसी उपाय में बहुत ही अत्यंत गोपनीय रहस्य के बारे में आपको बता रहा हु जो गुप्त रहस्य को भगवान शंकर ने माता पार्वती को इस उतम रहस्य के बारे में बताया है. वह उत्तम रहस्य है दुर्गासप्त्शी के पाठ में एक स्त्रोत है जिसका नाम सिद्धिकुंजिका स्त्रोत है.इसके प्रभाव से देवी के पाठ का फल ,तथा जप सफल होता है.जो लोग कवच ,अर्गला, कीलक, रहस्य,सुक्त ध्यान,अर्चन में कोई त्रुटी हो रही है या दुर्गा पाठ को करने में असमर्थ है केवल सिद्धिकुंजिका के पाठ करने से उसी से देवी पाठ का फल प्राप्त होता है.
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यह पाठ बहुत ही गुप्त तथा देवी के प्रसन्न करने के लिए बहुत ही दुर्लभ पाठ है. अगर कोई श्रद्धालु दुर्गा का पाठ करते है सिद्धिकुंजिका का पाठ नहीं करे तो आपको दुर्गा के पाठ करने से कोई लाभ नहीं मिलता है.उनको कई तरह से परेशानी होती है.जैसे पारिवारिक सुख में कमी ,विवाह में देर होना ,पुत्री के विवाह में देर होना.नौकरी में परेशानी बन जाता है.
क्या है सिद्धिकुंजिक स्त्रोत
॥ सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम् ॥
शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्.
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥1॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्.
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥2॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्.
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥3॥
गोपनीयं प्रयत्नेनस्वयोनिरिव पार्वति.
मारणं मोहनं वश्यंस्तम्भनोच्चाटनादिकम्.
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत्कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥4॥
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॥ अथ मन्त्रः ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लींचामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालयज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वलहं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥ इति मन्त्रः ॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि.
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥1॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि.
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे॥2॥
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका.
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते॥3॥
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी.
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥4॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी.
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥5॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी.
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥6॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं.
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥7॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा.
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥8॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रंमन्त्रजागर्तिहेतवे.
अभक्ते नैव दातव्यंगोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देविहीनां सप्तशतीं पठेत्.
न तस्य जायतेसिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
॥ इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
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