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शुभ योग व संयोगों से इस बार नवरात्र विशेष फलदायी

सनातन मान्यता के अनुसार, चैत्र नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था. उनके आदेश पर ही जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था. नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा का विधान है.

सनातन मान्यता के अनुसार, चैत्र नवरात्र के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था. उनके आदेश पर ही जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था. नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों- क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री देवी की पूजा का विधान है.

इस बार नवरात्र पर चार सर्वार्थसिद्धि योग, एक अमृतसिद्धि योग और एक रवियोग है, जिसमें पूजा-अर्चना करना विशेष फलदायी रहेगा. माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शांति करना विशेष लाभ देता है. दुर्गा सप्तशती के पाठ व मंत्र जप से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्र में उपवास का विशेष महत्व है. जो गृहस्थ संपूर्ण नवरात्र उपवास न कर सकें, वे सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तिथियों को उपवास करें.

क्या करें प्रतिपदा के दिन : नववर्ष के प्रथम दिन तेल-उबटन लगा कर स्नान करके नया वस्त्र धारण कर, घर के ऊपर ध्वजारोहण करें. ब्राह्मण से पंचांग का फल श्रवण कर पंचांग का दान करें. इस दिन मिसरी, काली मिर्च एवं नीम के पत्तों का सेवन करना त्रिदोषघ्न को दूर करनेवाला व चर्म रोगनिवारक है.

कलश स्थापना मुहूर्त : चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ कलश स्थापना से हो जाता है. प्रतिपदा के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें. फिर मिट्टी की वेदी बनाकर जौ बोया जाता है. इसी वेदी पर कलश स्थापित करना चाहिए.

प्रतिपदा तिथि 24 मार्च को दोपहर 2:57 बजे से शुरू हो रही है और 25 मार्च को शाम 5:26 बजे तक रहेगी. 24 तारीख को दोपहर में प्रतिपदा शुरू होने की वजह से नवरात्र के पहले दिन की पूजा अगले दिन यानी 25 तारीख की सुबह उदया तिथि में की जायेगी. कलश स्थापना 25 को सुबह 6:23 बजे से लेकर 7:14 बजे के बीच करें. इसके पश्चात अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापना की जा सकती है.

2 अप्रैल को नवमी के साथ समापन : 25 मार्च को प्रतिपदा के दिन कलश स्थापना और मां शैलपुत्री की पूजा होगी. 26 को द्वितीया तिथि में मां ब्रह्मचारिणी, 27 को तृतीया तिथि में मां चंद्रघंटा, 28 को चतुर्थी तिथि में मां कूष्मांडा, 29 को पंचमी तिथि में मां स्कंदमाता, 30 को षष्ठी तिथि में मां कात्यायनी की पूजा होगी. 31 को सप्तमी तिथि में मां कालरात्रि और 1 अप्रैल को अष्टमी तिथि में मां महागौरी की पूजा होगी. 2 अप्रैल को नवमी तिथि पर मां सिद्धिदात्रि की पूजा होगी. पूजा-हवनादि के पश्चात अपराह्न में महाबलिदान का कृत्य होगा. उसी दिन रामनवमी भी रहेगी.

चैती छठ पूजन : इस बार चैती छठ का आरंभ शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (28 मार्च, शनिवार) को नहाय खाय के साथ हो रहा है. वहीं, खरना 29 को, शाम का अर्घ्य 30 को तथा प्रात: अर्घ्य एवं पारण 31 मार्च को होगा.

हिंदू नववर्ष की शुरुआत चैत्र शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से होती है, जो इस इस बार 25 मार्च को पड़ रही है. इसी दिन से विक्रम संवत् 2077 का शुभारंभ होगा. साथ ही शुरू होगा नवरात्र, जो देवी आराधना का पर्व है. ‘दुर्गादुर्गति नाशिनी’ यानी देवी दुर्गा सभी दुर्गतियों का नाश करनेवाली हैं.

माता का आगमन : चैत्र नवरात्र में इस बार मां का आगमन बुधवार (25 मार्च, 2020) को हो रहा है. देवीभागवत पुराण में बताया गया है कि नवरात्र का आरंभ बुधवार को होगा, तो देवी नौका पर यानी नाव पर चढ़ कर आयेंगी. इसका अर्थ यह है कि वे भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धि देती हैं.

माता की विदाई : नवरात्र का समापन शुक्रवार (3 अप्रैल, 2020) को रहा है. पुराण में कहा गया है कि अगर शुक्रवार को माता विदा होती हैं, तो उनका वाहन हाथी होता है. हाथी वाहन होना इस बात का सूचक है कि अच्छी वर्षा होगी. अच्छी उपज से किसान उत्साहित रहेंगे.

पूजन ऐसे करें : चैत्र नवरात्र के अवसर पर नौ दिनों तक माता की पूजा नियमित करें और हर दिन कवच, कीलक अर्गलास्तोत्र का पाठ करते हुए हो सके तो हर दिन एक कन्या को भोजन करवाएं और दशमी तिथि को कन्या को वस्त्र और दक्षिणा सहित विदा करें. हर दिन माता को पूजा करते समय एक लवंग जरूर चढ़ाएं और इसे प्रसाद रूप में ग्रहण करें.

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