पं. श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिष व धर्मशास्त्र विशेषज्ञ
मां दुर्गा का आठवां स्वरूप हैं- महागौरी (Mahagauri) दुर्गापूजा (Durga Puja) के आठवें दिन इन्हीं की पूजा-उपासना का विधान है. इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है. इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्वसंचित पाप भी विनष्ट हो जाते हैं. भविष्य में पाप-संताप, दैन्य-दुःख उसके पास कभी नहीं जाते. वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है. मां महागौरी का ध्यान, स्मरण, पूजन-आराधना भक्तों के लिए सर्वविध कल्याणकारी है. इनकी कृपा से अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति होती है. हमें मन को अनन्य भाव से एकनिष्ठ कर मनुष्य को सदैव इनके ही पादारविन्दों का ध्यान करना चाहिए.
मान्यता है कि महागौरी गौर वर्ण की हैं. इनके तेज से संपूर्ण सृष्टि प्रकाशमान है. इनकी चार भुजाएं हैं. वाहन वृषभ है. इनके ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे दाहिने हाथ में त्रिशूल है. ऊपरवाले बायें हाथ में डमरू और नीचे के बायें हाथ में वर-मुद्रा धारण हैं. इनकी मुद्रा अत्यंत शांत है. इनकी आयु आठ वर्ष की मानी गयी है- ‘अष्टवर्षा भवेद् गौरी।’ इनके समस्त वस्त्र एवं आभूषण आदि भी श्वेत हैं, इसलिए उन्हें श्वेताम्बरधरा भी कहा जाता है.
कथानुसार, दुर्गा सप्तशती में शुभ-निशुम्भ से पराजित होकर गंगा के तट पर जिस देवी की प्रार्थना देवतागण कर रहे थे, वह महागौरी ही हैं. देवी गौरी के अंश से ही कौशिकी का जन्म हुआ, जिसने शुम्भ-निशुम्भ के प्रकोप से देवताओं को मुक्त कराया. यह देवी गौरी शिव की पत्नी हैं, यही शिवा और शाम्भवी के नाम से पूजी जाती हैं. अष्टमी पूजन से तमाम दुख दूर होते हैं और सुखों की प्राप्ति होती है.
महागौरी भक्तों का कष्ट अवश्य ही दूर करती हैं. इनकी उपासना से आर्तजनों के असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं. अतः इनके चरणों की शरण पाने के लिए हमें सर्वविध प्रयत्न करने चाहिए. अष्टमी तिथि साधना-उपासना का महापर्व है.
तिथि और शुभ मुहूर्त हृषिकेश पंचांग के अनुसार : अष्टमी को नारियल दान में देने का विधान है. मान्यता है कि मां को नारियल का भोग लगाने से नि:संतानों की मनोकामना पूरी होती है. अष्टमी को विविध प्रकार से भगवती जगदंबा का पूजन कर रात्रि को जागरण करते हुए भजन, कीर्तन करें तथा नवमी को विधिपूर्वक पूजा-हवन कर 9 कन्याओं को भोजन कराना चाहिए.
Posted by: Pritish Sahay