सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते॥
पुराणों में मां महागौरी की महिमा का प्रचुर व्याख्यान मिलता है. ये मनुष्य की वृत्तियों को सत् की ओर प्रेरित करके असत् का विनाश करती हैं. हमें निष्काम भाव से सदैव इनका शरणागत बनना चाहिए.
एक पौराणिक कथानुसार, एक बार भगवान भोलेनाथ बातों ही बातों में मां पार्वती को देख कुछ ऐसा कह बैठे, जिससे देवी का मन आहत होता है और पार्वती जी तपस्या में लीन हो जाती हैं. वर्षों तक कठोर तपस्या करने पर जब पार्वती नहीं आतीं, तो उन्हें ढूंढ़ते हुए महादेव उनके पास पहुंचते हैं. वहां पार्वती को देख कर आश्चर्यचकित रह जाते हैं. उनका रंग अत्यंत ओजपूर्ण होता है, उनकी छटा चांदनी के सामन श्वेत और कुंद के फूल के समान धवल दिखाई पड़ती है, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न होकर देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान देते हैं.
एक अन्य कथानुसार, भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी, जिससे इनका शरीर काला पड़ गया. देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धो देते हैं.
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तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं. तभी से इनका नाम गौरी पड़ा. महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं. देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं.
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करूणामयी मां महागौरी को प्रसन्न करना बहुत आसान है. प्रसन्न होकर वो सहज अपने आशीर्वाद से सबकी झोली भर देती हैं. हर अहं भाव त्याग कर पूरी श्रद्धा के साथ मां महिषासुर मर्दिनी का वंदन करें कि संकट से उबरने की मां हमें शक्ति प्रदान करें.
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यथाश्वमेधः क्रतुराड् देवानां च यथा हरिः।
स्तवानामपि सर्वेषां तथा सप्तशतीस्तवः।।
यों तो पराम्बा का आराधन सार्वकालिक और सार्वदेशिक दैहिक, दैविक, भौतिक एवं सांसार्गिक तापों का शमन करनेवाला है, परंतु आश्विन तथा चैत्र के नवरात्रों में इनकी उपासना सहित ‘दुर्गासप्तशती’ का पाठ विशेष फलदायी है.
Posted by : Pritish Sahay