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Navratri 2022 5th Day, Skandamata Devi Puja: नवरात्रि का पांचवां दिन आज, ऐसे करें स्कंदमाता की पूजा

Navratri 2022 5th Day, Skandamata Devi Puja: शारदीय नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता को समर्पित होता है. आइए जानते हैं कि माँ दुर्गा के इस स्वरूप का क्या महत्व है तथा स्कंदमाता को प्रसन्न करने की पूजा विधि क्या है.

Navratri 2022 5th Day, Skandamata Devi Puja: भारत में 26 सितंबर, 2022 से शारदीय नवरात्रि का त्योहार शुरू हो चुका है जिसमें माँ दुर्गा के 9 दिव्य रूपों की विधिविधान से पूजा-अर्चना की जाती है. शारदीय नवरात्रि का पांचवां दिन स्कंदमाता को समर्पित होता है. आइए जानते हैं कि माँ दुर्गा के इस स्वरूप का क्या महत्व है तथा स्कंदमाता को प्रसन्न करने की पूजा विधि क्या है.

नवरात्र की पंचमी तिथि का शुभ मुहूर्त

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि आरंभ- सुबह 12 बजकर 10 मिनट से शुरू

आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि समाप्त- रात 10 बजकर 34 मिनट तक

अभिजीत मुहूर्त- सुबह 11 बजकर 47 मिनट से 12 बजकर 35 मिनट तक

राहुकाल- सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक दोपहर 12 बजकर 11 मिनट तक

मां स्कंदमाता का स्वरूप

सिंह यानी शेर पर सवारी करने वाली माँ स्कंदमाता की 4 भुजाएं होती हैं. गोद में बालक स्कन्द अर्थात कार्तिकेय विराजमान होते हैं. एक भुजा में कमल का फूल होता है. इनकी बायीं तरफ़ की ऊपर वाली भुजा को वरमुद्रा कहा जाता है और नीचे सफेद रंग का दूसरा कमल का फूल होता है. कमल के फूल पर आसन होने के कारण इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है. मान्यता है कि स्कंदमाता की सच्चे दिल से पूजा करने से ज्ञान बढ़ता है. यही वजह है कि इन्हें विद्यावाहिनी दुर्गा के नाम से भी जाना जाता है.

स्कंदमाता की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, तारकासुर नाम का एक राक्षस था, जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी. तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया. उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था. कहा जाता है कि स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षण लेने के पश्चात भगवान स्कंद ने तारकासुर का वध किया.

स्कंदमाता बीज मंत्र

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

स्कन्दमाता माता के मंत्र

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः

रदव्यसिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

महाबले महोत्साहे महाभय विनाशिनी।

त्राहिमाम स्कन्दमाते शत्रुनाम भयवर्धिनि।

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