Navratri 2022: शारदीय नवरात्रि शुरु होने वाली है और अधिकांश लोग नवरात्रि के इन विशेष दिनों उपवास रखते है. प्राचीन काल से लेकर अब तक आयुर्वेद और नवरात्रि के बीच बहुत ही गहरा संबंध है. नवरात्रि के पावन दिन 26 सितंबर से शुरू होने वाली हैं. नवरात्रि में मातारानी के नौ स्वरूपों की पूजा का विधान है. मां दुर्गा के इन नौ रूपों को बेहद शक्तिशाली माना जाता है. आज आयुर्वेद और नवरात्र के महत्व को जानेंगे.
1. प्रथम शैलपुत्री यानी हरड़ – यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है. इसकी तासीर गर्म होती है इसलिए सर्दियों में इसका सेवन कई रोगों से बचाने में मदद करता है. हरड़, हिमावती है. इससे पेट संबंधी समस्याएं नहीं होती और ये अल्सर में काफी फायदेमंद है.
यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है. ब्राह्मी में भरपूर मात्रा में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है जो शरीर में कैंसर सेल्स को बढ़ने से रोकता है. इसके साथ ही इसका नियमित सेवन पाचन क्रिया को भी दुरूस्त रखता है. यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और आयुर्वेद के चिकित्सक गैस एवं मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा के रूप में भी इसका उपयोग करते हैं. यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है.
इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है. मालवांचल में इसे आरिया के नाम से जाना जाता है. यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है. इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है. जब किसी बच्चे का कद नहीं बढ़ता तब इसका सेवन बहुत लाभकारी होता है. यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं. शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है. इसका प्रयोग प्रसूतावस्था में बहुत लाभदायक है, यह स्तनों में दूध को बढ़ाने में सहायक है. साथ ही यह काम यानी कि शरीर की ऊर्जा क्षमता को अत्यधिक बढ़ाने में भी सहायक है.
इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं . यह औषधि शरीर में सभी पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के साथ रक्तपित्त, रक्त विकार को दूर करती है. यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक, पेट को साफ करने में सहायक है. मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है. यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है. दूसरे अर्थों में कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है. रोजाना इसका सेवन मानसिक और दिल की बीमारियों से भी बचाता है.
यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं. इसमें एंटीऑक्सीडेंट्स भरपूर होता है. यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है. अलसी का सेवन कैंसर, डायबिटीज और हार्ट प्रॉब्लम का खतरा घटाता है. आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी रक्तशोधक, दुग्धवर्द्धक, ऋतुस्राव नियामक, चर्मविकारनाशक, सूजन एवं दरद निवारक, जलन मिटाने वाली औषधि है. यकृत, आमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करती है. बवासीर एवं पेट विकार दूर करती है. सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करती है. अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियम, मैग्नीशियम, कॉपर, लोहा, प्रोटीन, जिंक, पोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं. इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है. अलसी एनीमिया, जोड़ों के दर्द, तनाव, मोटापा घटाने में भी फायदेमंद है. इसके लिए श्लोक आयुर्वेद में है –
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा.
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:..
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी.
इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका. इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं. यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है. इसके अलावा यह औषधि कैंसर का खतरा भी घटाती है.
यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है. इसके सेवन से ब्रेन पावर बढ़ती है और तनाव, डिप्रेशन, ट्यूमर, अल्जाइमर जैसी समस्याएं दूर रहती हैं. सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है. यह मानव शरीर को ऊर्जा देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है. इसकी 2-3 पत्तियां काली मिर्च के साथ सुबह खाली पेट लेने से पाइल्स में फायदा मिलता है. साथ ही इसके पत्तों से सिंकाई करने पर फोड़े-फुंसी की समस्या भी दूर होती है.
नवदुर्गा का आंठवा रूप महागौरी को औषधि नाम तुलसी के रूप में भी जाना जाता है. सेहत के लिए भी यह रामबाण औषधि है. तुलसी का काढ़ा या चाय रोजाना पीने से खून साफ होता है. साथ ही इससे दिल के रोगों का खतरा भी कम होता है. यही नहीं, इससे कैंसर का खतरा भी कम होता है. तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है. इसके लिए आयुर्वेद में श्लोक आया है –
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी.
अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: .
तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् .
मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:.
इसे नारायणी या शतावरी कहते हैं. शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है. यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है. शतावर में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इन्फ्लामेट्री और घुलनशील फाइबर होता है, जो पेट को दुरूस्त रखने के साथ कई रोगों से बचाने में मददगार है. सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है, उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं. कुल मिलाकर यह स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए बेहतरीन औषधि है. यह रक्त विकार को दूर करने में मदद करती है. वहीं रोजाना इसका सेवन करने से शरीर में कैंसर कोशिकाएं नहीं पनपतीं.
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