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Navratri 2023 5th Day: मोक्ष का द्वार खोलने वाली देवी हैं मां स्कंदमाता, जानें शुभ मुहूर्त-पूजा विधि और आरती

Navratri 2023 5th Day: मां स्कंदमाता सिंह पर सवार हैं. मां स्कंदमाता की उपासना से मनुष्य सभी प्रकार के पापों से मुक्ति पा लेते है, ज्ञान का प्रकाश मिलता है तथा पारिवारिक कलह एवं अशांति से छुटकारा मिलता है. देवी स्कंदमाता के पूजन से त्रिदोष भी दूर होते हैं.

By Radheshyam Kushwaha | October 19, 2023 6:14 AM

Maa Skandmata ki Puja Vidhi: नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पंचम स्वरूप स्कंदमाता की पूजा की जाती है. मां स्कंदमाता का स्वरूप मन को मोह लेने वाला है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिससे वो दो हाथों में कमल का फूल थामे दिखती है. एक हाथ में स्कंदजी (कार्तिकेय का दूसरा नाम) बालरूप में बैठे हैं और दूसरे से माता तीर को संभाले हैं. मां स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती है. इसीलिए इन्हें पद्मासना देवी के नाम से भी जाना जाता है. मां का वाहन सिंह है. कहा जाता है कि सिंह पर सवार होकर माता दुर्गा अपने पांचवें स्वरुप स्कन्दमाता के रूप में भक्तजनों के कल्याण के लिए सदैव तत्पर रहती हैं. ये अपनी गोद में कुमार कार्तिकेय को लिए हुए हैं. कार्तिकेय का एक नाम स्कंद भी है, इसी कारण ये स्कंद माता कहलाती हैं. मां स्कंदमाता की उपासना करने से मनुष्य सभी प्रकार के पापों से मुक्ति पा लेते है, ज्ञान का प्रकाश मिलता है तथा पारिवारिक कलह एवं अशांति से छुटकारा मिलता है. देवी स्कंदमाता के पूजन से त्रिदोष भी दूर होते हैं.


मां स्कंदमाता पूजा विधि

ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि सबसे पहले प्रात: काल उठकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें, इसके बाद मां का पूजन आरंभ करें एवं मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें. मां के श्रृंगार के लिए खूबसूरत रंगों का ‘इस्तेमाल करें. पूरी विनम्रता के साथ पूजन करें. कुमकुम, अक्षत, पुष्प, फल आदि से पूजा करें. चंदन लगाएं, माता के सामने घी का दीपक जलाएं. मां को केले का भोग लगाएं और प्रसाद वितरित करें. इसके बाद फूल चढ़ाएं व भोग लगाएं. मां की आरती उतारें तथा इस मंत्र का जाप करें.

स्कंदमाता का भोग और प्रसाद

नवरात्रि के पंचमी तिथि की देवी मां स्कंदमाता को प्रसाद के रूप में केला पसंद है. इसीलिए इस दिन पूजा करके उनके सामने केले का भोग लगाएं. चाहें तो दूसरे फल भी अर्पित कर सकते हैं. इसके बाद प्रसाद को ब्राह्मण को दे देना चाहिए. कहा जाता है कि ऐसा करने से मां प्रसन्न होकर घर भर की सेहत और धन धान्य में वृद्धि करती हैं.

स्कंदमाता की पूजा करने पर संतान सुख की होती है प्राप्ति

मोक्ष के द्वार खोलने वाली यह माता परम सुखदायी है. मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं. नवरात्रि में पूरे दिन देवी का मंदिर खुला रहता है. बताया जाता है कि जिन्हें संतान सुख नहीं होता, स्कंदमाता के दर्शन और पूजन से उनकी मनोकामना पूरी होती है. ये भी कहा जाता है कि बच्चों और युवाओं की शिक्षा में आने वाली बाधा को भी माता रानी दूर करती हैं. इसके साथ ही जिनके जीवन में पितु दोष की समस्या चल रहा होता है या लम्बें समय से बीमार रहता हो वे लोग सच्चे मन से माता की पूजा अर्चना करते है तो वह सभी प्रकार के समस्याओं से मुक्ति प्राप्त कर लेते है.

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पारिवारिक कलह एवं अशांति से मिलती है छुटकारा

देवी स्कंदमाता का पूर्ण श्रद्धा भाव से किया गया पूजन मोक्ष प्रदान करने वाला माना गया है. मां भगवती की भक्ति और कृपा प्राप्त करने के लिए आप “या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः” मंत्र का जप किया जाता है. कहा जाता है कि नवरात्रि के पांचवें दिन जो भक्त देवी स्कंदमाता को विशुद्ध हृदय से पूजा अर्चना करके प्रसन्न करते हैं, उनके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, ज्ञान का प्रकाश मिलता है तथा पारिवारिक कलह एवं अशांति से छुटकारा मिलता है. देवी स्कंदमाता के पूजन से त्रिदोष भी दूर होते हैं.

स्कंदमाता की आरती

जब तेरी हो स्कंद माता। पांचवां नाम तुम्हारा आता।

सब के मन की जान हारी। जग जननी सब की महतारी।

तेरी ज्योत जलाता रहू में हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं ।

कई नामो से तुझे पुकारा। मुझे एक है तेरा सहारा।

कही पहाड़ो पर है डेरा। कई शहरों में तेरा बसेरा हर मंदिर में तेरे नजारे।

गुण गाए तेरे भगत प्यारे। भक्ति अपनी मुझे दिला दो।

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो। इंद्र आदि देवता मिल सारे।

करे पुकार तुम्हारे द्वारे। दुष्ट दैत्य जब चढ़ कर आए।

तुम ही खंडा हाथ उठाए। दास को सदा बचाने आई।

‘चमन’ की आस पुराने आई।

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मां स्कंदमाता का पूजन मंत्र और कथा

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी ॥

पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, नवरात्रि के पांचवें दिन देवताओं के सेनापति कुमार कार्तिकेय की माता की पूजा होती है. मान्यता है कि जब अत्याचारी दानवों का अत्याचार बढ़ता है तब माता संतों की रक्षा के लिए सिंह पर सवार होकर दुष्टों का अंत करती हैं. कहते हैं कि एक तारकासुर नामक एक राक्षस था. जिसकी मृत्यु केवल शिव पुत्र से ही संभव थी. तब मां पार्वती ने अपने पुत्र भगवान स्कन्द (कार्तिकेय का दूसरा नाम) को युद्ध के लिए प्रशिक्षित करने हेतु स्कन्द माता का रूप लिया और उन्होंने भगवान स्कन्द को युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था. स्कंदमाता से युद्ध प्रशिक्षिण लेने के पश्चात् भगवान स्कन्द ने तारकासुर का वध किया. तब से ही नवरात्रि के पांचवे दिन माता के इस रूप का पूजा किया जाता है. कहा जाता है कि साधक सच्चे मन माता की पूजा करते है तो उनके सभी कष्ट दूर हो जाते है और मृत्यु उपरांत वह मोक्ष को प्राप्त हो जाते है.

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