Maa Kalratri Puja Vidhi: सनातन धर्म में नवरात्रि का अपना एक अलग महत्व होता है. नवरात्रि की शुरुआत 15 अक्टूबर से ही हो चुकी है और आज शारदीय नवरात्रि का सातवां दिन है. आज मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं. मां कालरात्रि का स्वरूप बहुत ही विकराल और डरावना है. उनका वर्ण काला है. वह शत्रुओं में भय पैदा कर देने वाली देवी हैं यानी कहें तो शत्रुओं का काल हैं. इस वजह से उनको कालरात्रि कहा जाता है. नवरात्रि के सातवें दिन माता के पूजन के बाद इस आरती को करने से माता अपने भक्तों पर विशेष कृपा प्रदान करती है. इस देवी की आराधना से अकाल मृत्यु का डर भी समाप्त हो जाता है. इसके साथ ही मनुष्य सभी प्रकार के रोग और दोष से मुक्ति भी पा लेता है. ऐसे आइए जानते है ज्योतिषाचार्य वेद प्रकाश शास्त्री से कि माता कालरात्रि की पूजा और आरती कैसे और कब करनी चाहिए.
कालरात्रि जय जय महाकाली।
काल के मुंह से बचाने वाली
दुष्ट संहारिणी नाम तुम्हारा।
महा चंडी तेरा अवतारा।
पृथ्वी और आकाश पर सारा ।
महाकाली है तेरा पसारा ।
खंडा खप्पर रखने वाली।
दुष्टों का लहू चखने वाली।
कलकत्ता स्थान तुम्हारा।
सब जगह देखूं तेरा नजारा।
सभी देवता सब नर नारी गावे सभी तुम्हारी।
रक्तदंता और अन्नपूर्णा ।
कृपा करें तो कोई भी दुःख ना-
ना कोई चिंता रहे ना बीमारी ।
ना कोई गम ना संकट भारी-
उस पर कभी कष्ट ना आवे ।
महाकाली मां जिसे बचावे तू भी
‘भक्त’ प्रेम से कह कालरात्रि मां तेरी जय ।
मां कालरात्रि की आरती करने से सभी तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है. मां कालरात्रि की कृपा से बुरी शक्तियों का प्रभाव समाप्त हो जाता है. मां कालरात्रि दुष्टों और शत्रुओं का संहार करने वाली हैं. मान्यता है कि जो लोग काफी तनाव में रहते है, उन्हें माता रानी के इस आरती का पाठ जरूर करनी चाहिए है. कहा जाता है कि ऐसा करने से मनुष्य को मानसिक व शारीरिक तनाव से मुक्ति मिलती है और उनके जीवन में खुशियां बनी रहती है.
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मां कालरात्रि की पूजा नवरात्रि के सातवें दिन होती है. इस स्वरूप में माता का वर्ण काजल के समान काला बताया गया है. पौराणिक कथा के अनुसार, शुंभ-निशुंभ को देखकर मां को भयंकर क्रोध आया और इसके कारण माता का वर्ण श्यामल हो गया. इसके बाद देवी कालरात्रि का प्राकट्य हुआ. माता कालरात्रि की उपासना से शत्रु को नाश, नकारात्मक शक्तियां भयभीत होती हैं. मां कालरात्रि ममतामयी रूप में अपने भक्तों पर कृपा लुटाती हैं. मां कालरात्रि की चार भुजाएं हैं.
ऊपर की दाहिनी भुजा से माता भक्तों को वर प्रदान करती हैं और नीचली दायीं भुजा से अभय वर प्रदान करती हैं जबकि बायीं भुजाओं में माता खड्ग और कंटीला मूसल धरण करती हैं. कहीं-कहीं माता के हाथों में खड्ग और कटोरी भी बताया जाता है. माता कालरात्रि के बाल खुले हुए हैं और गले में विद्युत की माला शोभा पा रही है, जिसकी चमक से ऐसे प्रतीत होता है कि बिजली चमक रही हो. क्रोध में माता की नासिका से अग्नि धधकती है. माता कालरात्रि का वाहन गर्दभ यानी गधा को बताया गया है.