Loading election data...

नेताजी सुभाष चंद्र बोस : हर भारतीय के हृदय में बसने वाले एक कालजयी नेता

Parakram Diwas: आज सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जन्म जयंती के अवसर पर मैं उस वीर को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने देशहित में अपने जीवन का सर्वस्व अर्पित करके, रक्त के कतरे-कतरे से इस देश को सिंचित किया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 22, 2021 10:08 PM
an image

अमित शाह, गृह मंत्री

आज सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जन्म जयंती के अवसर पर मैं उस वीर को प्रणाम करता हूं, जिन्होंने देशहित में अपने जीवन का सर्वस्व अर्पित करके, रक्त के कतरे-कतरे से इस देश को सिंचित किया है. मैं प्रणाम करता हूं, बंगजननी के उस गौरवशाली संतान को, जिसने समस्त भारत को अपना नेतृत्व दिया है, देश को स्वाधीन कराने के लिए उन्होंने पूरी दुनिया का भ्रमण किया.

जिनका जीवन कोलकाता में शुरू हुआ व कालांतर में वह भारतीय राजनीति के शिखर पर पहुंचे व उसके बाद बर्लिन से शुरू करके सिंगापुर तक भारत माता के संतानों को लेकर उन्होंने देशहित में वृहद अभियान चलाया. उनका जीवन दर्शन भारत के युवा समाज के लिए आदर्श है, उनके जीवन युवा समाज के तन-मन को राष्ट्रवादी भावना से भर देता है.

उस समय भारत मे सर्वाधिक जरूरत थी एक सटीक योजना लेकर देश को आगे ले जाने की, इस विचार के आधुनिक भारत के सर्वप्रथम प्रस्तावक थे सुभाषचंद्र. 1938 के फरवरी महीने में हरिपुर कांग्रेस में उन्होंने राष्ट्रीय योजना का मुद्दा उठाया था. दिसंबर 1936 में, पहली राष्ट्रीय योजना समिति का गठन किया गया था.

Also Read: सुभाष चंद्र के मन-मस्तिष्क में बसे थे विवेकानंद, सिंगापुर में रामकृष्ण मिशन से मंगवायी थी 108 रुद्राक्षों की जपमाला

उसी वर्ष सुभाष ने वैज्ञानिक मेघनाद साहा को एक साक्षात्कार में कहा : मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि यदि हमारी राष्ट्रीय सरकार बनती है, तो हमारा पहला काम राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन करना होगा. स्वातंत्र्योत्तर योजना आयोग उनकी विरासत है. यह विचार सुभाषचंद्र के दिमाग में अपने छात्र जीवन में आया.

वर्ष 1921 में उन्होंने देशबंधु चित्तरंजन दास को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने कहा था कि वह सरकारी नौकरी नहीं चाहते हैं, अपितु राजनीति में शामिल होकर अपना योगदान करना चाहते हैं. इसके साथ ही उन्होंने संक्षिप्त, लेकिन स्पष्ट रूप से लिखा कि वह कांग्रेस के कार्यों में योजनाबद्ध कदम देखना चाहते हैं. आज के युवाओं के लिए राष्ट्र निर्माण के कार्य में सुभाषचंद्र के ये विचार आज भी प्रासंगिक हैं.

आजकल बहिरागत बोलने की बात शुरू हुई है. बहिरागत का मतलब अब तक लोग किसी दूर देश के व्यक्ति अथवा किसी घुसपैठिया को समझते थे. लेकिन देश के भिन्न अंश के लोगों को बहिरागत अथवा बाहरी बोलने की संकीर्ण क्षेत्रवाद सुभाषचंद्र के राज्य में शुरू करना दुर्भाग्यपूर्ण है. जिस राज्य ने भारत के लोगों में राष्ट्रवाद के विचार को पुनर्जीवित किया है, उसे ‘वंदे मातरम’ और जन-गण-मन राष्ट्र गान दिया, उस राज्य में ऐसी सोच बहुत दुखद व खतरनाक है.

इस राज्य के लोगों के मुकुट में गहना, सुभाषचंद्र को तत्कालीन राष्ट्र की सबसे बड़ी संगठन इंडियन नेशनल कांग्रेस द्वारा अपना अध्यक्ष चुना गया था. लेकिन सुभाषचंद्र उनसे एक कदम आगे थे और अंतरराष्ट्रीय राजनीति से परिचित थे. दुनिया के विभिन्न देशों के मुक्ति संघर्षों के इतिहास का अध्ययन करते हुए, उन्होंने सोचा कि देश की स्वतंत्रता के हित में विदेशी गठबंधन की आवश्यकता हो सकती है. 1932 में नेताजी को इलाज के लिए वियना जाना पड़ा.

Also Read: Parakram Diwas: कोलकाता में नेशनल लाइब्रेरी में नेताजी की जयंती पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करेंगे पीएम मोदी

वहां उनकी मुलाकात एक अन्य वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विठ्ठल भाई पटेल से हुई. भारत के ये दो देशभक्त नेता विदेश में भी राष्ट्र को स्वाधीन करने की चर्चा में व्यस्त रहे. वहां चर्चाओं में, उन्होंने महसूस किया कि देश की स्वतंत्रता के लिए विदेशी सहायता की आवश्यकता थी. उस समय बहुत कम भारतीय नेताओं ने इस तरह की अंतर्राष्ट्रीय सोच व्यक्त की थी.

इसी अंतर्राष्ट्रीय सोच ने नेताजी सुभाष चंद्र को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर एक सशक्त कदम उठाने और सशस्त्र बलों के साथ देश को स्वतंत्र करने के लिए आगे बढ़ने की ताकत दी. नेताजी युवा समाज के एक वीर सैनिक थे. मन आज भी यह सोचकर प्रसन्न होता है कि एक उच्च शिक्षित सज्जन, ब्रिटिश सरकार की गिरफ्त से बचकर, ब्रिटिश पुलिस की नजरों से बचकर और पूरे भारत को पार करके अलग-अलग नामों से अफगानिस्तान पहुंचे और वहां से मध्य-पूर्व होते हुए यूरोप पहुंच गये.

भारत के युवाओं के मन में यह साहस, देशभक्ति हमेशा प्रज्ज्वलित रही है. केवल यह ही नहीं, कुछ साल बाद, जब उन्हें अहसास हुआ कि जर्मनी में बैठकर काम नहीं होगा, तो उन्होंने भारत के समीप दक्षिण-पूर्व एशिया जाना तय किया और इस क्रम में नेताजी ने एक और साहसिक अभियान चुना. तब द्वितीय विश्वयुद्ध का सबसे खूनी अध्याय चल रहा था.

तत्कालीन भारत के विशिष्ट नेता सुभाषचंद्र तीन महीने से लगातार पनडुब्बी में जर्मनी से सिंगापुर जा रहे थे. इस खतरनाक यात्रा का विवरण आज भी रोम-रोम पुलकित कर देता है. आज भी, मुझे यह सोचकर गर्व होता है कि भारत की स्वतंत्रता की घोषणा से बहुत पहले, नेताजी अंडमान द्वीप समूह में स्वतंत्रता का राष्ट्रीय ध्वज फहरा रहे थे. भारत की पूर्वी सीमा पर इंफाल में स्वतंत्रता का झंडा फहराया गया था.

आजाद हिंद फौज की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में लाल किले पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया था और भारत सरकार ने तय किया है कि अब से इस नायक को श्रद्धांजलि देने के लिए, सुभाषचंद्र का जन्मदिन 23 जनवरी को ‘पराक्रम दिवस’ के रूप में मनाया जायेगा. परंतु कांग्रेस और वामपंथी इस नायक के सम्मान पर ठेस पहुंचा रहे हैं. यह वे लोग हैं, जिन्होंने न नेताजी को तब सम्मान दिया और न ही आज देने के पक्षधर हैं. लेकिन नरेंद्र मोदी, सुभाष बाबू के सपनों और विचारोंवाला एक सशक्त व आत्मनिर्भर भारत बनाने के लिए संकल्पित हैं.

आज, सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती की उपलक्ष्य में, हम भारत मां के इस सुपुत्र के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धा व्यक्त करते हैं. बंगाल व समस्त भारत के लोग इस वीर सेनानी को सदैव याद रखेंगे. भारत के युवा आजाद हिंद फौज की वीरता से प्रेरित होंगे. नेताजी देश विरोधी ताकतों को खत्म करने के हमारे संघर्ष में सबसे आगे रहेंगे.

Also Read: Parakram Diwas: प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले कोलकाता किला में तब्दील

मैं अपनी श्रद्धा वाणी को कविगुरु के शब्दों में समाप्त करूंगा : ‘सुभाषचंद्र, …मैंने आपको राष्ट्र की साधना की शुरुआत से ही देखा है. आपने जो विचार प्रकाशित किये हैं, उसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है. आपकी शक्ति की कठिन परीक्षा, जेल, निर्वासन, अपार दुःख व गंभीर बीमारियों के मध्य हुई है, किसी भी कठिनाई ने आपको अपने पथ से नहीं हिलाया, अपितु आपके चिंतन को और विस्तृत किया है, आपकी दृष्टि को देश की सीमाओं से परे इतिहास के विस्तृत क्षेत्र तक ले जाने का काम किया है. आपने विपत्तियों को भी अवसर में बदला है. आपने बाधाओं को एक स्वाभाविक क्रम बना दिया. यह सब संभव हुआ है, क्योंकि आपने किसी भी हार को अपनी नियति नहीं मानी. आपकी इस चारित्रिक शक्ति को बंगाल के हृदय में संचारित करने की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है. आपके विचारों की शक्ति से ही हम प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में बंगाल को पुनः सोनार बांग्ला बनाने के लिए संकल्पित हैं.’

Posted By : Mithilesh Jha

Exit mobile version