Jharkhand News: नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द कराने के लिए केन्द्रीय जनसंघर्ष समिति लातेहार एवं गुमला ने 21 अप्रैल से टूटूवापानी गुमला (नेतरहाट के नजदीक) से 25 अप्रैल तक रांची स्थित राजभवन तक पदयात्रा करने का निर्णय लिया है. पदयात्रा को आन्दोलन के सबसे बुजुर्ग साथी एमान्वेल (95 वर्ष), मगदली कुजूर, दोमनिका मिंज, मो. खाजोमुदीन खान, बलराम प्रसाद साहू, रामेश प्रसाद जायसवाल झंडा दिखा कर रवाना करेंगे. 21 अप्रैल को पदयात्रा सुबह 7 बजे शुरू होगी. 25 अप्रैल को राजभवन के समक्ष धरना दिया जाएगा और राज्यपाल को ज्ञापन दिया जायेगा.
नेतरहाट फील्ड फायरिंग रेंज रद्द करने की मांग
पदयात्रा में प्रभावित क्षेत्र के करीब 200 से अधिक महिला व पुरुष-साथी शामिल होंगे. पदयात्रा टूटूवापानी, बनारी, विशुनपुर, आदर, घाघरा, टोटाम्बी, गुमला, सिसई, भरनो, बेडो, गुटुवा तालाब, कठहरमोड़, पिस्का मोड़, रातू रोड होते हुए राज भवन पहुंचेगी. आपको बता दें कि एकीकृत बिहार के समय में 1954 में मैनूवर्स फील्ड फायरिंग आर्टिलरी प्रैटिक्स एक्ट, 1938 की धारा 9 के तहत नेतरहाट पठार के 7 राजस्व ग्राम को तोपाभ्यास (तोप से गोले दागने का अभ्यास) के लिए अधिसूचित किया गया था. 1991 और 1992 में फायरिंग रेंज अवधि का विस्तार करते हुए 1992 से 2002 तक कर दिया गया. केवल अवधि विस्तार ही नहीं हुआ, बल्कि क्षेत्र का भी विस्तार करते हुए 7 गांव से बढ़ाकर 245 गांव को अधिसूचित किया गया. 22 मार्च 1994 को फायरिंग अभ्यास के लिए आई सेना को महिलाओं की अगुवाई में बिना अभ्यास के वापस जाने पर मजबूर कर दिया गया था. People’s Union for Democratic Rights (दिल्ली, अक्टूबर 1994) की रिपोर्ट से मालूम हुआ था कि सरकार की मंशा पायलट प्रोजेक्ट के तहत स्थाई विस्थापन एवं भूमि-अर्जन की योजना को आधार दिया जाना था.
ग्राम सभाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें
जन संघर्ष समिति के केन्द्रीय सचिव जेरोम जेराल्ड कुजूर ने कहा 1991-1992 की अधिसूचना के समाप्त होने के पूर्व ही तत्कालीन बिहार सरकार ने 1999 में अधिसूचना जारी कर 1991-92 की अधिसूचना अवधि का विस्तार कर दिया था, जिसके आधार पर ये क्षेत्र 11 मई 2022 तक प्रभावित हैं. आज हमें डर है कि कहीं राज्य सरकार अवधि का विस्तार न कर दे क्योंकि अभी तक नेतरहाट फील्ड फायरिग रेंज को रद्द करने की अधिसूचना राज्य सरकार द्वारा जारी नहीं की गई है. इलाका भारतीय संविधान के पांचवीं अनुसूची अंतर्गत आता है और यहां पेसा एक्ट 1996 भी लागू है, जिस कारण ग्राम सभाओं को अपने क्षेत्र सामुदायिक संसाधन-जंगल, ज़मीन, नदी-नाले और अपने विकास के बारे में हर तरह के निर्णय लेने का अधिकार है. प्रभावित क्षेत्र की ग्रामसभा ने ग्रामसभा कर अपनी ज़मीन नहीं देने का जो निर्णय लिया है. उसकी कॉपी राज्यपाल को समर्पित करते हुए विनम्र आग्रह करेंगे कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करें और उनके निर्णय का सम्मान करते हुए उचित कार्यवाही करें.
रिपोर्ट: वसीम अख्तर