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झारखंड : जर्जर होता जा रहा नेतरहाट का ऐतिहासिक शैले हाउस, अंग्रेज अफसर यहां आकर करते थे आराम

सन 1919 में अंग्रेज अफसर एडवर्ड गेट लेफ्टिनेंट जो ओडिशा बिहार के गवर्नर थे, उसने अपने कार्यकाल के दौरान शैले हाउस (लकड़ी का घर) का निर्माण फार्म हाउस के रूप करवाया था. कहा जाता है गर्मी मौसम में कई अंग्रेज अफसर नेतरहाट आकर आराम फरमाते थे.

लातेहार, वसीम अख्तर : क्विन ऑफ झारखंड नेतरहाट पहाड़ियों के बीच बसा हुआ झारखंड का हिल स्टेशन कहा जाता है. नेतरहाट समुद्री तल से 3700 फीट की ऊंचाई में स्थित है. इसकी प्राकृतिक सुंदरता देशभर में चर्चित है. यहां देश-विदेशी के पर्यटक नेतरहाट घूमने आते हैं, और इसके रमणीक दृश्य के आनंद में खो जाते हैं. नेतरहाट सूर्योदय-सूर्यास्त के साथ जंगल के बीच अनेक जलप्रपात और अपने शुद्ध वातावरण के लिए पर्यटको में प्रसिद्ध है.

अंग्रेज अफसरों का पसंदीदा जगह नेतरहाट

आजादी से पूर्व से नेतरहाट अंग्रेज अफसरों का पसंदीदा जगह रहा है. नेतरहाट में साल वृक्षों के बीच जगह-जगह में जो चीड़ के पेड़ एवं चीड़ अभयारण्य नजर आता है, इसे अंग्रेज अफसर ने लाकर नेतरहाट में लगवाये थे, सन 1919 में अंग्रेज अफसर एडवर्ड गेट लेफ्टिनेंट जो ओडिशा बिहार के गवर्नर थे, उसने अपने कार्यकाल के दौरान शैले हाउस (लकड़ी का घर) का निर्माण फार्म हाउस के रूप करवाया था. कहा जाता है गर्मी मौसम में कई अंग्रेज अफसर नेतरहाट आकर आराम फरमाते थे.

जर्जर होता जा रहा शैले हाउस

झारखंड गठन के बाद शैले हाउस को लातेहार जिला प्रशासन द्वारा संरक्षित धरोहर के रूप में रखा गया है. इस हाउस के रख-रखाव के लिए कर्मी भी रखे गए है, लेकिन लंबे समय से शैले हाउस की मरम्मती नहीं हुई है. इस कारण जर्जर होता जा रहा है. कहा जाता है निर्माण के बाद शैले हाउस में अनेको सुविधाएं मौजूद थी. गुप्त रास्ते, टेनिस स्काउट ग्राउंड, फ्रूट बागान, दर्जी रूम, टी पार्टी गार्डन और परिसर मैदान में चीड़ के अनेको पेड़ लगाये गए. इसके साथ एक फांसी घर भी बनाया गया था, आज भी प्रांगण में सभी चीड़ के पेड़ मौजूद है. शैले हाउस निर्माण में चारों ओर पीलर के जगह लकड़ी का खंभा लगाया गया है. बीच में पांच इंच का दीवार खड़ा किया गया है. रेलिंग और छत एवं अन्य चीजों का निर्माण भी लकड़ी से ही किया गया है, लेकिन समय के साथ इसकी सुंदरता खोती जा रही है.

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शैले हाउस आने वाले पर्यटक मायूस होकर जाते हैं

शैले हाउस अपने कार्यकाल में बहुत कम मरम्मत हुआ है. झारखंड राज्य बनने के बाद अब तक मात्र तीन बार ही शैले हाउस की मरम्मती की गई है. जहां पहली बार तत्कालीन लातेहार डीसी रहे केके सोन एवं दूसरी बार उपायुक्त आराधना पटनायक और तीसरी बार भी दोबारा केके सोन जब भवन निर्माण के सेक्रेटरी थे, तब शैले हाउस मरम्मत कराया गया. फिर इसके बाद लंबे समय से शैले हाउस की मरम्मती नहीं कि गई है. आज पर्यटक शैले हाउस देखने पहुंचते हैं, तब निराश होकर लौटते है, ऐसा लगता है कि इसके रख-रखाव पर जिला प्रशासन ध्यान नहीं दे रही है.

मरम्मती नहीं होने के कारण जर्जर स्थिति में शैली हाउस

सैकड़ों साल पुरानी शैले हाउस की मरम्मत समय-समय पर नहीं होने से इस ट्री हाउस की स्थिति बहुत दयनीय होती जा रही है. संरक्षित इस हाउस के दीवार में सीलन नजर आता है, दीवार धीरे-धीरे टूट रही है, लकड़ी वाली फ्लोर की स्थिति जर्जर है, फ्लोर ऊंचा-नीचा नजर आने लगा है. पर्यटक को फ्लोर में जाना मना है. फ्लोर हिलता महसूस होता है. अगर आधा दर्जन लोग फ्लोर पर खड़े हो तो टूट सकता है. रेलिंग की स्थिति भी जर्जर है. रेलिंग को कर्मीयों के द्वारा बांस के सहारे टेककर रखा गया है. मरम्मत के अभाव में आगे से पीछे देखेंगे पर आगे खंभे, पीछे खंभे से लगभग डेढ़ से दो फीट का अंतर हैं, सामने का कॉरिडोर जर्जर हो चुका है. गार्डन भी कुछ अच्छा नहीं रहा. जल्द-से-जल्द प्रशासन शैले हाउस की ओर ध्यान नही देता है तो धीरे-धीरे ये संरक्षित धरोहर समाप्ति की ओर प्रस्थान कर जाएगा.

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