नयी किताब: नैतिक विवेक का साहस

मौलाना अबुल कलाम आजाद की किताब ‘कौल-ए-फैसल. उनके बौद्धिक और राजनीतिक व्यक्तित्व का परिचय तो देती ही है, साथ ही 1921 तक गांधी के नैतिक विवेक का असर किस कदर उस समय के हिंदुस्तानी समाज पर है, इसका पता भी देती चलती है. ऐसे दस्तावेजी महत्व की किताब को उर्दू से हिंदी अनुवाद करना एक उपलब्धि की तरह है.

By Prabhat Khabar News Desk | September 25, 2022 10:55 AM
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मौलाना अबुल कलाम आजाद की किताब ‘कौल-ए-फैसल. उनके बौद्धिक और राजनीतिक व्यक्तित्व का परिचय तो देती ही है, साथ ही 1921 तक गांधी के नैतिक विवेक का असर किस कदर उस समय के हिंदुस्तानी समाज पर है, इसका पता भी देती चलती है. ऐसे दस्तावेजी महत्व की किताब को उर्दू से हिंदी अनुवाद करना एक उपलब्धि की तरह है. इस अदालती तकरीर के एक हिस्से में मौलाना आजाद अपने शब्द इस तरह दर्ज करते हैं कि हिंदुस्तान की आजादी और मौजूदा जद्दोजहद के लिए महात्मा गांधी की तमाम दलीलों से सहमत हूं और उन दलीलों की सच्चाई पर पूरा यकीनमंद हूं. तभी महात्मा गांधी अपने अखबार यंग इंडिया में इस तकरीर पर अपनी प्रतिक्रिया देते हैं- मौलाना के बयान में बड़ी अदबी खूबसूरती है.

वह पर्याप्त रवानी के साथ पुरजोश भी है. वह निहायत दिलेराना भी है. इसका लहजा स्थिर और गैर-समझौतावादी है. मगर साथ में संजीदा और गंभीर भी है. गांधी तो इस तहरीक को लेकर यह सलाह तक देते हैं कि राष्ट्रवाद और खिलाफत को तफसील से समझना हो, तो मौलाना आज़ाद का कौल-ए-फैसल पढ़िये. यह बेशकीमती दस्तावेज अंग्रेज सरकार के खिलाफ कलकत्ता की अदालत में दिया गया लिखित बयान था. राजद्रोह के कानून के खिलाफ सौ साल से भी पहले दिये इस बयान की अहमियत इसलिए भी बढ़ जाती है कि वह कानून आज भी शासन का हिस्सा है. इस बयान को अपूर्वानंद एक नैतिक मार्गदर्शिका मानते हैं.

हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई किस आध्यात्मिक आभा और नैतिक साहस के साथ लड़ी गयी है, उस पर इकरारे-जुर्म का यह हिस्सा पर्याप्त रोशनी डालता है. मैं जानता हूं कि सरकार फरिश्ता की तरह मासूम होने का दावा रखती है, क्योंकि उसने खताओं के इकरार से हमेशा इनकार किया, लेकिन मुझे यह भी मालूम है कि उसने मसीह होने का भी दावा नहीं किया. फिर मैं क्यों उम्मीद करूं कि वह अपने विरोधियों को प्यार करेगी. हमें इस बात का भी फख्र होना चाहिए कि जिस अजीम शख्सियत ने गंगा-जमुनी कंपोजिट राष्ट्रवाद का तसव्वुर हमारे सामने रखा था, वह हमारे आजाद भारत का पहला शिक्षा मंत्री भी था.

कौल-ए-फैसल / भूमिका एवं पेशकशः मोहम्मद नौशाद / सेतु प्रकाशन, नोएडा( (उत्तर प्रदेश).

मनोज मोहन

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