Jharia Action Plan News: भूमिगत आग से प्रभावित और भू-धंसान के दायरे में रहने वाले बीसीसीएल कर्मियों को सुरक्षित स्थान पर बसाने की जरूरत है. लगभग नौ हजार कोल कर्मी ऐसे हैं, जिन्हें तत्काल प्रभाव से शिफ्ट कराने की जरूरत है. ये बातें झरिया मास्टर प्लान की रिव्यू के दौरान कोयला सचिव अनिल कुमार जैन ने कही. झरिया मास्टर प्लान के तहत प्रभावित क्षेत्र में बसे लोगों को पुर्नवासित करने की जरूरत है. लोगों को दूसरे जगह बने आवास में बसाने की प्रक्रिया भी चल रही है. प्रभावित लोगों में बीसीसीएल के कर्मियों की संख्या अधिक है.
झरिया मास्टर प्लान के तहत प्रभावित लोगों को बसाने के लिए विशेष रूप से बीसीसीएल आवास निर्माण करा रही है. कंपनी की ओर से 15713 आवास बनाया जा रहा है. इनमें से 8000 आवास जेआरडीए को हैंडओवर किया जा रहा है, जबकि 7713 आवासों में बीसीसीएल कर्मियों की शिफ्टिंग की प्रक्रिया जारी है. पुनर्वास के लिए तैयार 6603 आवासों में अबतक 4205 कोलकर्मियों की शिफ्टिंग हो चुकी है. 2398 बीसीसीएल कर्मियों की शिफ्टिंग बचा हुआ है.
प्रभावित क्षेत्रों में स्थित बीसीसीएल के कुल 25000 आवासों को तोड़ना (ध्वस्त) है. अबतक 8956 आवास ध्वस्त किये जा चुके हैं. शेष 16044 फेजवाइज करने पर जोर दिया जा रहा है. कंपनी के करीब 7036 आवासों पर अवैध कब्जा है. इनमें से 6800 कब्जेधारियों को नोटिस जारी कर दिया गया है, जबकि जिला प्रशासन की मदद से कब्जा मुक्त कराने का प्रयास जारी है.
झरिया कोलफील्ड में धधक रही भूमिगत आग को बुझाने के लिए आइआइटी आइएसएम सहयोग करेगा. संस्थान ने इस बाबत जेआरडीए को एक प्रस्ताव दिया है. यह प्रस्ताव सीएमपीडीआइएल और बीसीसीएल की मदद से तैयार किया गया है. ये दोनों कंपनियां भी संस्थान को भूमिगत आग बुझाने में सहयोग करेंगी. यह जानकारी आइआइटी आइएसएम के निदेशक प्रो राजीव शेखर ने दी. उन्होंने कहा कि झरिया की भूमिगत आग बुझाने के लिए अभी तक पूरी तरह से वैज्ञानिक तरीके से प्रयास नहीं किया गया है. संस्थान के विशेषज्ञ आग को काबू में करने के लिए एक विस्तृत मॉडल पर काम कर रहे हैं.
प्रो राजीव शेखर ने बताया कि पहले चरण में संस्थान का एप्लाइड जियोलॉजी विभाग झरिया की भूमिगत आग का विस्तृत मॉडल बनायेगा. मॉडल में इस बात का आकलन होगा कि आग कितनी गहराई में मौजूद है. इसकी तीव्रता कितनी है. इस जानकारी को कंप्यूटर में अपलोड किया जायेगा. फिर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसी की मदद से अलग-अलग स्थानों पर कितनी तीव्रता और कितनी मात्रा में नाइट्रोजन फोम डाला जाये, यह पता लगाया जायेगा. इस आधार पर तय स्थानों पर नाइड्रोजन फोमिंग की जायेगी. उन्होंने बताया कि अगर उनके प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है, तो फौरन ही काम शुरू कर दिया जायेगा.
आइआइटी आइएसएम भविष्य की ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में शोध को बढ़ावा देगा. इसके लिए संस्थान अपने निरसा कैंपस में कोल गैसिफिकेशन प्लांट लगायेगा. इस प्लांट को इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (आइओसीएल) के सहयोग से तैयार किया जायेगा. इस प्लांट से प्रति दिन दो टन हाइड्रोजन गैस का उत्पादन होगा. इसके साथ ही इस गैसिफिकेशन प्लांट से निकलने वाले कार्बन ऑक्साइड गैस को वातावरण में जाने से रोक कर स्टोर किया जायेगा. फिर कार्बन डाइ-ऑक्साइड से अलग उत्पाद तैयार किया जायेगा. इस प्लांट से पूरी तरह ग्रीन एनर्जी का उत्पादन होगा. साथ ही यहां आर्टिफिशियल भूमिगत खदान बनाया जायेगा. इससे शोध कार्य होगा.