बिहार में जितिया का निर्जला व्रत कल, शनिवार को साढ़े 10 बजे दिन के बाद होगा पारण, यहां जानें पूरी जानकारी

jitiya vrat 2023: मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार नहाय खाय गुरुवार एवं ओठघन गुरुवार को रात्रि अंत 4.23 सुबह तक है. वहीं माताएं 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को निर्जला उपवास रखकर संतान की लंबी उम्री की कामना करेंगी.

By Radheshyam Kushwaha | October 5, 2023 8:52 AM
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बिहार के भागलपुर में जितिया पर्व आज से शुरू हो गया है. आज सरगही या ओठगन के बाद कल माताएं 6 अक्टूबर दिन शुक्रवार को निर्जला व्रत करेंगी. छठ पर्व के बाद जीवित्पुत्रिका व्रत को भक्ति एवं उपासना का सबसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है. बिहार में इस पर्व को जितिया के नाम से भी जाना जाता है.

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इस दिन माताएं अपने बच्चों की लंबी उम्र एवं स्वस्थ जीवन के लिए व्रत रखती हैं. माताएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं. मिथिला विश्वविद्यालय पंचांग के अनुसार नहाय खाय गुरुवार एवं ओठघन गुरुवार को रात्रि अंत 4.23 सुबह तक है. जिसके बाद निर्जला व्रत शुक्रवार से शुरू होगा एवं पारण शनिवार की सुबह 10.35 के बाद होगा.

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बिहार स्थित सहरसा के ब्रज किशोर ज्योतिष संस्थान संस्थापक ज्योतिषाचार्य पंडित तरुण झा ने बताया कि प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जीवित्पुत्रिका का व्रत मनाया जाता है. व्रत के पीछे की कथा यह है कि महाभारत युद्ध में पिता की मृत्यु के बाद अश्वत्थामा बहुत क्रोधित थे. पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के शिविर गये एवं उसने पांच लोगों की हत्या कर दी.

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अश्वत्थामा को लगा कि उसने पांडवों को मार दिया. लेकिन पांडव जिंदा थे. जब पांडव उसके सामने आए तो उसे पता लगा कि वह द्रौपदी के पांच पुत्रों को मार आया है. यह सब देखकर अर्जुन ने क्रोध में अश्वथामा को बंदी बनाकर दिव्य मणि को छीन लिया. अश्वत्थामा ने इस बात का बदला लेने के लिए अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने की योजना बनायी.

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अश्वत्थामा ने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया. जिससे उत्तरा का गर्भ नष्ट हो गया. लेकिन उस बच्चे का जन्म लेना बहुत जरूरी था. इसलिए भगवान कृष्ण ने उत्तरा की अजन्मी संतान को गर्भ में ही फिर से जीवित कर दिया. गर्भ में मरकर जीवत होने की वजह से इस तरह उत्तरा के पुत्र का नाम जीवितपुत्रिका पड़ गया. तब से ही संतान की लंबी आयु के लिए जितिया व्रत किया जाने लगा.

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