खामोश आवाजों को शब्द देते जॉन फॉसे
एक धार्मिक आध्यात्मिक वातावरण में पलने वाले जॉन फॉसे अक्सर यह कहते हैं कि मैंने जिंदगी के कई रंग देखे हैं, परंतु उसमें सबसे ज्यादा रंग जो मुझे आकर्षित करता रहा है, वह है खामोशी की आहट, खामोशी के साथ जीना तथा खामोशी के साथ अभिव्यक्ति की अभिव्यंजना.
नॉर्वे के लेखक जॉन फॉसे को इस वर्ष का साहित्य का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा ने फिर चेताया है कि साहित्य में वही भाषा तथा वही व्यक्तित्व लेखक की मानवीय अभिव्यक्ति के साथ जिंदा रह सकता है, जो लोगों की आवाज बन सके. जॉन फॉसे एक ऐसे लेखक के रूप में हमारे सामने हैं, जो बेआवाजों की आवाज बन कर अपने नाटकों के पत्रों तथा उपन्यासों के पात्रों द्वारा दुनिया की रचना करते हैं. स्वीडिश अकादमी ने नोबेल साहित्य पुरस्कार की घोषणा करते हुए कहा कि जॉन फॉसे के सारे पात्र उस आवाज तथा उस लोक की नुमाइंदगी करते हैं, जो आज समूचे विश्व में भयभीत तथा अभिव्यक्ति की आजादी के लिए संघर्षरत है. दुनिया में कहीं तो वह बहुत खामोश तथा डरा हुआ है, कहीं मुखर होकर आंदोलनरत है. नॉर्वेजियन भाषा के यह लेखक बहुत कम चर्चित रहे हैं, परंतु दुनिया में 40 देशों में उनकी किताबों का अनुवाद तथा प्रचार प्रसार हुआ है तथा वह करोड़ों पाठकों तक पहुंचे हैं. उनके नाटकों का मंचन पूरी दुनिया में हुआ है. उन्होंने बच्चों की किताबें लिखी हैं तथा अनुवाद कार्य भी किया है. नाटक, कविता एवं गद्य साहित्य के साथ उन्होंने यात्रा वृत्तांत भी लिखा है. उन्होंने 1983 में राइट स्पॉट रेड ब्लैक लिखा था, तो वह प्रसिद्धि के उस किनारे पर पहुंच चुके थे, जहां नये लेखकों को अक्सर इतनी प्रसिद्धि मिलती नहीं है. अपने रचनाकर्म के दूसरे सोपान में उनका दूसरा उपन्यास क्लोज्ड गिटार उनकी विशिष्ट शैली में एक मानवीय चिड़चिड़ेपन की गंभीर कहानी है, जिसमें एक महिला अपने घर में बच्चों के साथ कैद है. दूसरी ओर उनका एक नाटक साइन सॉन्ग में एक महिला को अपने वर्तमान को त्यागने के बाद यकीन है और नाटक दर्शाता है कि एक नया संसार खामोशी से जीवन व्यतीत कर रहा है. डेथ वेरिएशन एक लड़की के बारे में ऐसा नाटक है, जो आत्महत्या कर लेती है और फिर फ्लैश में विभिन्न पीढ़ियों के पात्रों के जरिये मौत की कहानी बताये जाने का वर्णन है. अपनी एक अन्य कृति उपन्यास ड्रीम का ऑटोम और एलिस 2004 एलिस एट द फायर एक सीमा पर 200 प्रश्नों की चर्चा है. उनका सबसे उल्लेखनीय उपन्यास सेप्टोलॉजी 2021 में पूरा हुआ था और 1200 से अधिक पन्नों पर फैले हुए कथानक की तकनीक में लिखे गये उपन्यास में एक बुजुर्ग कलाकार सात दिनों तक अपने आप से दूसरे व्यक्ति के रूप में बात करता है .
जॉन फॉसे का पूरा नाम जॉन ओलिव फॉसे है. उनका जन्म 29 सितंबर, 1959 को होगसूंड में हुआ था. एक धार्मिक आध्यात्मिक वातावरण में पलने वाले फॉसे अक्सर यह कहते हैं कि मैंने जिंदगी के कई रंग देखे हैं, परंतु उसमें सबसे ज्यादा रंग जो मुझे आकर्षित करता रहा है, वह है खामोशी की आहट, खामोशी के साथ जीना, और खामोशी के साथ अभिव्यक्ति की अभिव्यंजना. मैंने अपने शब्दों में तथा अपनी मातृभाषा नॉर्वेजियन भाषा में वह सब डाला है, जो मुझे और कहीं भी नहीं मिला है. उनको ऐसे लेखक के रूप में देखा जाता है तथा प्रतिष्ठा मिली है, जो उनकी आवाज हैं, जिनकी आवाज को पूरी दुनिया में प्रतिनिधित्व तथा मंच नहीं मिला है. वह ऐसे पहले पश्चिमी लेखक हैं जिनके नाटकों को ईरान में भी स्टेज पर किया गया है और अमेरिकन इंग्लिश में उनके जिन नाटकों का अंग्रेजी में अनुवाद हुआ है उन्होंने पूरी दुनिया की स्टेज पर एक धमाका किया है. उनके रचनाक्रम पर नजर डालें, तो वह कई रंगों में रंगे हुए हर विधा पर हाथ आजमाने वाले लेखक नजर आते हैं.
उनके कविता संग्रह में वह हर बार कविता की नयी दुनिया तथा नये विषय के साथ मिलते हैं. जॉन फॉसे का घरेलू फ्रंट अच्छा नहीं रहा है. अलबत्ता, वह अकेले जीवन वृतांत में जिन शब्दों की खोज में हैं, वह अद्भुत है. उन्होंने तीन शादियां कीं, पर कोई शादी लंबे समय तक नहीं चल सकी. उन्होंने अपनी डायरियों तथा कई आलेखों में अपनी इस उदासीनता तथा मन और तन के प्रताड़ित होने का वर्णन किया है. उनके नाटकों के पात्र दर्शकों-पाठकों से सीधा संवाद करते हैं, जिसमें जागरण का आह्वान होता है. जॉन फॉसे हमारे समय के बेहद महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं, जिनके शब्द अनुवाद के जरिये दुनिया के सभी देशों में पहुंचने चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)