Loading election data...

वाराणसी: उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र का गांव लमही बनेगा म्यूजियम, उनके जीवनी से नई पीढ़ी होगी रूबरू

उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही पर्यटन स्थल है. कुछ साहित्य प्रेमी उनके पैतृक आवास को मंदिर मानते हैं. इसमें पर्यटन विभाग वर्चुअल म्यूजियम बनाएगा. इसके लिये पर्यटन विभाग ने 10 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को स्वीकृति के लिये भेज दिया है.

By Sandeep kumar | November 5, 2023 10:23 AM

भारतीय साहित्य के महान कथकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचन्द्र के वाराणसी स्थित पैतृक गांव लमही को संग्रहालय का रूप दिया जाएगा. इसके लिये पर्यटन विभाग ने 10 करोड़ रुपये का प्रस्ताव तैयार कर शासन को स्वीकृति के लिये भेज दिया है. स्वीकृति मिलते ही संग्रहालय का निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा. इस संग्रहालय के कई भाग होंगे, जिसमें वर्चुअल म्यूजियम के अलावा गृहस्थी के सामान और उनकी स्मृतियों से जुड़ी हुई अन्य सामग्री रखी जाएगी. इस संग्रहालय के माध्यम से उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द्र के प्रशंसकों को उनके जीवन से जुड़ने का अवसर प्राप्त होगा. प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि मुंशी प्रेमचन्द्र ने अपनी लेखनी के माध्यम से भारतीय समाज और मानवता के मुद्दे को अपनी कहानियों और उपन्यासों के माध्यम से उजागर करने का काम किया. उनकी रचनाएं आम आदमी के जीवन की समस्याओं, सामाजिक असमानता, और सामाजिक बदलाव के प्रति उनकी गहरी संवादी दृष्टिकोण को प्रकट करती हैं. ऐसे महान कालजयी लेखक के संपूर्ण जीवन के घटनाक्रम को इस संग्रहालय में स्थान प्राप्त होगा. आज की नई पीढ़ी मुंशी प्रेमचन्द्र को करीब से जान सकेगी.


संग्रहालय में होंगी ये सुविधाएं

पर्यटन मंत्री जयवीर सिंह ने आगे बताया कि वर्तमान समय में उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद का गांव लमही पर्यटन स्थल हैं. कुछ साहित्य प्रेमी तो उनके पैतृक आवास को एक मंदिर मानते हैं. वहां तीन भवन हैं. एक भवन का हाल में ही निर्माण हुआ है. इसमें पर्यटन विभाग वर्चुअल म्यूजियम बनाएगा. यहां लोगों को ऑनलाइन उनकी किताबें, तस्वीर व उनसे जुड़े अन्य संग्रह देखने-पढ़ने के लिए उपलब्ध होंगी. दूसरा भवन वह है जहां मुंशी प्रेमचंद रहते थे. यहां उनकी गृहस्थी से जुड़ी लगभग सभी वस्तुओं का संग्रह किया जाएगा. चाहे वह चारपाई हो या बिस्तर, चूल्हा-चौका हो या बर्तन. इसके लिए शोध भी कराया जाएगा. तीसरा स्थान, जहां स्मारक बना है और लमही महोत्सव का आयोजन होता है. वहां लैंडस्केप आदि बनाए जाएंगे. श्री सिंह ने बताया कि पर्यटन विभाग यहां संग्रहालय के साथ-साथ पर्यटकों के लिए बुनियादी सुविधाएं भी विकसित करेगा. प्रस्ताव के मुताबिक पाथवे, बेंच, लाइटिंग आदि का निर्माण किया जाएगा. उन्होंने बताया कि मुंशी प्रेमचंद्र के गांव में संग्रहालय बनने से युवाओं को प्रेरणा मिलेगी. उनके प्रशंसक एक साधारण शिक्षक से महान साहित्यकार बनने तक की यात्रा को जान सकेंगे.

Also Read: UP News: मेडिकल कॉलेजों में एमबीबीएस की पढ़ाई नए सत्र से हिंदी में होगी, तकनीकी शब्द अंग्रेजी में ही रहेंगे
BHU में आयुर्वेद विशेषज्ञ सम्मेलन में 10 राज्य के 300 डाक्टर हुए शामिल

काशी हिंदू विश्वविद्यालय के विज्ञान संकाय के सेमिनार कॉम्प्लेक्स में अखिल भारतीय आयुर्वेद विशेषज्ञ (स्नातकोत्तर) सम्मेलन एवं द्रव्यगुण विभाग के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन हो गया, जिसमें 10 राज्य के 300 डाक्टरों ने भाग लिया. इस सम्मेलन में 200 शोध पत्रों को पढ़ा गया. मुख्य अतिथि प्रो अरुण कुमार त्रिपाठी ने भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा चलाये जा रहे आयुष हेल्थ एन्ड वैलनेस सेन्टर के बारे में बताया. उत्तराखंड ऐसा पहला राज्य है, जहां आयुष पॉलिसी और योग पालिसी लागू है. आयुर्वेद की शिक्षा ऐसी हो जो छात्रों को मल्टी डायरेक्शनल हो और उनको एक सफल चिकित्सक बनाए. वर्तमान समय में हो रहे भिन्न भिन्न रोगों के रोकथाम पर आयुर्वेद चिकित्सा से आसानी से लाभ हो सकता है. वहीं कार्यक्रम में जय कुमार को आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आयुर्वेद भूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर क्लिनिकल पंचकर्म बुक का विमोचन किया गया.

आयुर्वेदिक किचन सामाग्री से ठीक हो जाएगा रोग- प्रो पीके गोस्वामी

चिकित्सा विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो एसएन शंखवार ने बताया कि आयुर्वेद प्राचीनकाल से ही लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करता रहा है. वर्तमान समय में आयुर्वेद और पंचकर्म जैसी हानि रहित चिकित्सा के अधिक से अधिक प्रयोग करने की सलाह देते हुए बताया कि सबसे प्राचीन शल्य कर्म पथरी के बारे में सुश्रुत संहिता में मिलता है. जो हमारे भारतीय चिकित्सा पद्धति की विद्वता एवं वैज्ञानिकता को पुष्ट करता है. वहीं आयुर्वेद संकाय प्रमुख प्रो पीके गोस्वामी ने आयुर्वेद संकाय में हो रहे आयुर्वेद के नए शोध विधा के बारे में बताते हुए कहा कि शुरुआत में ही यदि रोगी आयुर्वेद की चिकित्सा में आ जाए तो उसे जल्द ही रोगों से मुक्ति मिल सकती है. जो प्राथमिक चिकित्सा हमें किचन सामाग्री में ही उपलब्ध है, बस आवश्यकता है कुशल वैद्य की सलाह की. संगोष्ठी में लगभग 10 राज्यो से 300 लोगो ने भाग लिया और कुल 4 प्लेनरी सेशन और 20 वैज्ञानिक सत्रों में लगभग 200 शोध पत्र पढ़े गए.

Next Article

Exit mobile version