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Guruvar Aarti: गुरुवार के दिन पूजा के बाद जरूर करें ये आरती, मिलेगी सभी कष्टों से मुक्ति

Brihaspati ji ki aarti lyrics: बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. भगवान बृहस्पति की आरती नहीं करने पर पूजा अधूरी मानी जाती है.

Brihaspati ji ki aarti lyrics: बृहस्पतिवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित होता है. आज के दिन श्री हरि विष्णु के बृहस्पति रूप का पूजन किया जाता है. इस दिन विधि-विधान के साथ भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है. जिस साधक की कुंडली में बृहस्पति कमजोर स्थिति में है यदि वह आज व्रत रखेगा तो उसके सभी कष्ट दूर होंगे. बृहस्पति देव के पूजन के दौरान हल्दी,गुड़ और चने का भोग लगाना चाहिए. गुरुवार के दिन पीले रंग के वस्त्र पहनना काफी अच्छा माना जाता है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु की सुबह-शाम आरती भी करते हैं. जिससे भक्तों को धन-धान्य की कमी नहीं रहती है. भगवान बृहस्पति की आरती नहीं करने पर पूजा अधूरी मानी जाती है. यहां पढ़ें श्रीहरि और बृहस्पति देव की सम्पूर्ण आरती…

बृहस्पति देव आरती

जय बृहस्पति देवा,

ॐ जय बृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगाऊँ,

कदली फल मेवा ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्वार खड़े ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटाओ,

संतन सुखकारी ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

जो कोई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥

ॐ जय बृहस्पति देवा,

जय बृहस्पति देवा ॥

भगवान विष्णु जी की आरती

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी ! जय जगदीश हरे।

भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करे॥

ॐ जय जगदीश हरे।

जो ध्यावे फल पावे, दुःख विनसे मन का।

स्वामी दुःख विनसे मन का।

सुख सम्पत्ति घर आवे, कष्ट मिटे तन का॥

ॐ जय जगदीश हरे।

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी।

स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी।

तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी।

स्वामी तुम अन्तर्यामी।

पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सबके स्वामी॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम करुणा के सागर, तुम पालन-कर्ता।

स्वामी तुम पालन-कर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥

ॐ जय जगदीश हरे।

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

स्वामी सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूँ दयामय, तुमको मैं कुमति॥

ॐ जय जगदीश हरे।

दीनबन्धु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

स्वामी तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठा‌ओ, द्वार पड़ा तेरे॥

ॐ जय जगदीश हरे।

विषय-विकार मिटा‌ओ, पाप हरो देवा।

स्वमी पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ा‌ओ, सन्तन की सेवा॥

ॐ जय जगदीश हरे।

श्री जगदीशजी की आरती, जो कोई नर गावे।

स्वामी जो कोई नर गावे।

कहत शिवानन्द स्वामी, सुख संपत्ति पावे॥

ॐ जय जगदीश हरे।

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