One Friday Night Movie Review: रवीना टंडन स्टारर इस थ्रिलर ड्रामा से रोमांच है गायब, पढ़ें पूरा रिव्यू

One Friday Night Movie Review: निर्देशक मनीष गुप्ता की फिल्म ए फ्राइडे नाईट बीते शुक्रवार से जिओ सिनेमा पर स्ट्रीम हो रही है. यह फिल्म रिश्तों से जुड़े रहस्य और जटिलताओं की पड़ताल करता है.

By कोरी | March 7, 2024 12:28 PM

फ़िल्म- ए फ्राइडे नाईट

निर्माता -ज्योति देशपांडे

निर्देशक – मनीष गुप्ता

कलाकार – रवीना टंडन , मिलिंद सोमेन, विधि चितालिया और अन्य

प्लेटफार्म -जिओ सिनेमा

रेटिंग -दो

डरना ज़रूरी है ,रहस्य और ४२० आईपीसी जैसी फिल्मों के निर्देशक मनीष गुप्ता की फ़िल्म ए फ्राइडे नाईट बीते शुक्रवार से जिओ सिनेमा पर स्ट्रीम हो रही है. यह फिल्म रिश्तों से जुड़े रहस्य और जटिलताओं की पड़ताल करता है. फिल्म शुरुआत में उम्मीद भी जगाती है, लेकिन आगे की कहानी और स्क्रीनप्ले उमीदों पर खरी नहीं उतर पायी है.

विश्वासघात और बदले की है कहानी

फ़िल्म की कहानी लता वर्मा (रवीना टंडन ) की है , जो एक प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ है. फ़िल्म के पहले ही सीन में यह बात स्थापित हो जाती है और दूसरे दृश्य में वह एक केयरिंग वाइफ है. इसे भी पुख्ता कर दिया गया है. वह अपने पति राम (मिलिंद ) से उसके नागपुर ट्रिप के बारे में जानकारी लेती है कि वह कब तक वहां पहुंचेगा क्योंकि महाराष्ट्र में तेज बारिश से सबकुछ अस्त -व्यस्त है. राम बताता है कि वह रास्ते में है और समय पर एयरपोर्ट पहुंच जाएगा. अचानक राम की कार में युवा लड़की नीरू (विधि चितालिया) की एंट्री होती है और ये बात भी साफ़ हो जाती है कि राम का इस महिला के साथ एक्स्ट्रा मेरेटियल है. वह साथ में फार्म हाउस में वीकेंड मनाने जा रहे हैं. फार्म हाउस जाकर नीरू बताती है कि वह मां बनने वाली है. राम की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता है क्योंकि लता और उसकी शादी के बीस साल गुज़रने के बावजूद वह अब तक पिता नहीं बन पाया है. जब राम और नीरू आपस में हंसी-मजाक कर रहे थे, राम का बैलेंस बिगड़ता है और वह बालकनी से सिर के बल नीचे गिर जाता है. तेज बारिश की वजह से कोई मेडिकल मदद मिलता ना पाकर नीरू, राम की डॉक्टर वाइफ लता को कॉल कर मदद लेने का फैसला करती है. उसके बाद कहानी क्या अजीबोगरीब मोड़ लेती है. यही आगे की कहानी है.

स्क्रिप्ट की खूबियां और खामियां

फ़िल्म की खूबियों की बात करें तो इसका रन टाइम है , मात्र ९० मिनट की यह फिल्म है. फ़िल्म शुरुआत में उम्मीद भी जगाती है कि यह प्यार और विश्वासघात की कोई अलग कहानी को सामने ले आएगी , लेकिन यह पर्दे पर वह रोमांच नहीं ले आ पायी है , जिसकी ज़रूरत थी. फ़िल्म पूरी होकर भी अधूरी सी लगती है. जिस तरह से हर चीज़ लता के लिए आसानी से होती चली गयी उसने फ़िल्म के रोमांच और सस्पेंस को काम कर दिया है. कॉफी बनने के समय में लता ने सबकुछ परफेक्ट तरीके से कैसे कर दिया. फ़िल्म की थोड़ी अवधि बढाकर उस पहलू पर थोड़ा काम करने की ज़रूरत थी. जिस बारिश से पूरा महाराष्ट्र परेशान है , उसमें लता को आने – जाने में कोई परेशानी नहीं हुई. कहानी के साथ – साथ किरदारों पर थोड़ा और काम करने की ज़रूरत थी. किरदार अधूरे से लगते हैं. मिलिंद के किरदार को ठीक से लिखा नहीं गया है , तो रवीना के किरदार इतना बड़ा कदम उठाने के लिए क्यों मजबूर हुआ. यह बात भी फ़िल्म में प्रभावी तरीके से सामने नहीं आ पायी है. फ़िल्म के संवाद कहानी को और कमजोर कर गए हैं.

रवीना ने किरदार के साथ किया है न्याय

अभिनय की बात करें तो रवीना टंडन ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है, तो विधि चितलिया की कोशिश अच्छी रही है. मिलिंद सोमेन को फिल्म में करने को कुछ खास नहीं था. बाकी के किरदार अपनी सीमित स्क्रीन स्पेस में ठीक ठाक रहे हैं.

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