बीरभूम, मुकेश तिवारी. स्वास्थ्य से जुड़ी विभिन्न सरकारी योजनाओं की घोषणा के बावजूद अब तक शिशु मृत्यु को नहीं रोका जा सका है. प्रसव के दौरान शिशु मृत्यु दर को शून्य से नीचे लाने के प्रयास अक्सर विफल रहा है. हालांकि, गर्भवती महिलाओं, प्रसवोत्तर माताओं और शिशुओं को मुफ्त पौष्टिक भोजन प्रदान करने में आंगनबाड़ी केंद्र प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं, जिन जगहों पर अब तक आंगनबाड़ी केंद्र नहीं है, वहां आंगनबाड़ी केंद्र कहीं पेड़ के नीचे तो कहीं किसी व्यक्ति के द्वारा दिए गए कमरे या फिर किराए के कमरे में चल रहे हैं. यह समय-समय पर विभिन्न समस्याओं का कारण बनता जा रहा है. बीरभूम जिले में भी आंगनबाड़ी केंद्रों की यही स्थिति है.
सूत्रों के अनुसार बीरभूम जिले के 29 फीसदी आंगनबाड़ी केंद्रों के पास अपना भवन नहीं है. वे केंद्र, जिनके अपने भवन नहीं हैं, वे किसी के निजी घर के नीचे या खुले आसमान के नीचे चल रहे हैं. बीरभूम जिले में इस समय संचालित 5 हजार 191 आंगनबाड़ी केन्द्रों में से 3 हजार 728 आंगनबाड़ी केंद्रों के स्वयं के केन्द्र हैं. यानी 1436 आंगनबाड़ी केंद्रों के पास अपना भवन नहीं है.
सरकारी नियम के अनुसार आंगनबाड़ी केंद्र किसी विशेष भूमि, शासकीय भूमि या दान की गई भूमि पर स्थापित किये जाते हैं. बीरभूम जिला इस नियम का शिकार है. जमीन खरीद कर कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं बनाया जाता है. इस नियम के कारण कई आंगनबाड़ी केंद्र निजी घरों के नीचे या खुले आसमान के नीचे चल रहे हैं. जिससे कई जगह आंगनबाड़ी केंद्र बनाना संभव नहीं हो पा रहा है.
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बीरभूम के 1436 आंगनबाड़ी केंद्रों में से मात्र 100 आंगनबाड़ी केंद्रों में आवास के लिये स्थान उपलब्ध कराया गया है. उन जगहों पर 100 नए आंगनबाड़ी केंद्र बनाए जाएंगे. जिससे जिले के 1336 आंगनबाड़ी केंद्र आगामी मानसून में भी निजी घरों के नीचे या खुले आसमान के नीचे चलेंगे. हालांकि, इस बात पर भी शासन स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है कि क्या क्षेत्र के प्राथमिक या उच्च विद्यालयों में बेघर आंगनबाड़ी केंद्र चलाए जा सकते हैं और क्या मानसून के दौरान क्षेत्र में मौजूद सरकारी भवनों को इसतेमाल किया जा सकता है?