ऐसे हुई थी शून्य की खोज, यहां से जानें जीरो का इतिहास

Zero in hindi: आर्यभट्ट का शून्य के अविष्कार में क्या योगदान हैं?, जीरो के अविष्कार से पहले गणना कैसे होती थी, जीरो की खोज भारत में कब और कैसे हुई?

By Shaurya Punj | November 23, 2022 3:18 PM

जब भी शून्य के अविष्कार की बात आती हैं, तब हमारे दिमाग में ऐसे कई सवाल उठते है. की जीरो का आविष्कार किसने किया?, जीरो का अविष्कार कब हुआ?, जीरो क्या हैं? zero in hindi, आर्यभट्ट का शून्य के अविष्कार में क्या योगदान हैं?, जीरो के अविष्कार से पहले गणना कैसे होती थी, जीरो(zero) की खोज भारत में कब और कैसे हुई?

जानें शून्य की खासियत

शून्य की खासियत है कि इसे किसी संख्या से गुणा करें अथवा भाग दें, परिणाम शून्य ही रहता है.  भारत का ‘शून्य’ अरब जगत में ‘सिफर’ (अर्थ- खाली) नाम से प्रचलित हुआ फिर लैटिन, इटैलियन, फ्रेंच आदि से होते हुए इसे अंग्रेजी में ‘जीरो’ (zero) कहते हैं.

बख्शाली पांडुलिपि और शून्य का इतिहास

बोडेलियन पुस्तकालय (आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय) ने बख्शाली पांडुलिपि की कार्बन डेटिंग के जरिए शून्य के प्रयोग की तिथि को निर्धारित किया है. पहले ये माना जाता रहा है कि आठवीं शताब्दी (800 AD) से शून्य का इस्तेमाल किया जा रहा था. लेकिन बख्शाली पांडुलिपि की कार्बन डेटिंग से पता चलता है कि शून्य का प्रयोग चार सौ साल पहले यानि की 400 AD से ही किया जा रहा था. बोडेलियन पुस्तकालय में ये पांडुलिपि 1902 में रखी गई थी.

‘फाइंडिंग जीरो’ एक मनोरंजक कहानी

‘फाइंडिंग जीरो’ एक मनोरंजक कहानी हो सकती है. यह कोई बौद्घिक खोज नहीं है बल्कि एक व्यक्तिगत खोज है. इसलिए शायद डॉ. एक्जेल को अंकों को लेकर बचपन से जिज्ञासा रही है.
डॉ. एक्जेल ने फ्रेंच आर्कियोलॉजिस्ट जार्ज कोइ‌ड्स से काफी कुछ सीखा. जार्ज कोइड्स ने 683 ईसा पूर्व से 605 ईसा पूर्व के बीच कंबोडिया के मंदिर के खंडहर शिलालेख का अनुवाद किया था. यह एक सराहनीय प्रयास था. पर इसके कुछ तथ्यों को नष्ट भी कर दिया गया था. जिसकी खोज के लिए बाद में डॉ. एक्जेल बाहर ने अपना काम शुरू किया था. इसके लिए उन्होंने थाइलैंड, कंबोडिया, लाओस और वियतनाम तक सुराग ढूंढने की कोशिश की.

इस बुक के क्लाइमेटिक दृश्य में बताया गया है कि कैसे और कहां पर डॉ. एक्जेल ने कितनी मेहनत और घंटों तक भटकने के बाद एक ऐसे शिलालेख के पास पहुंचते हैं, जहां एक शिलालेख के साथ एक बड़ा पत्‍थर आता है. यहीं वह शून्य है जो कहीं खो गया था. माना जाता है कि करीब एक सदी से यह खोया हुआ था.

डॉ एक्जेल की शून्य को खोजने की यात्रा काफी रोचक है. पर इस पर कही सवाल उठते हैं. उनकी कहानी संख्याओं को लेकर उनके जुनून को बताने के साथ-साथ कई आश्चर्य भी पैदा कर देती है. न्यूयॉर्क टाइम्स ने इस पर सवाल उठाए कि जो किताब में लिखा है वह अंतिम सत्य नहीं है. कहानी थोड़ी संदिग्‍ध लगती है.

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