Pagglait Movie Review :
फ़िल्म – पगलैट
ओटीटी- नेटफ्लिक्स
निर्देशक- उमेश बिस्ट
कलाकार- सान्या मल्होत्रा, आशुतोष राणा,श्रुति शर्मा,शीबा चड्ढा, सयानी गुप्ता,राजेश तेलंग, रघुबीर यादव,चेतन शर्मा,
रेटिंग- तीन
हम एक बात समझ गए हैं ,अगर हम अपना फैसला खुद नहीं लेंगे ना…तो दूसरे ले लेंगें ,फिर चाहे वो हमें पसंद हो या ना हो” फ़िल्म के क्लाइमेक्स में संध्या के किरदार का संवाद पगलैट फ़िल्म का पूरा सार है. निर्देशक उमेश बिस्ट की यह फ़िल्म पितृसत्तात्मक विचारधारा की गहरी जड़ों पर चोट करती है. यह फ़िल्म महिलाओं को अपनी आज़ादी और अपनी इच्छाओं को अहमियत देने की गहरी सीख बहुत सिंपल तरीके से देती है.
संध्या (सान्या मल्होत्रा) की शादी को अभी पांच ही महीने गुज़रे थे कि पति आस्तिक गुज़र गए. पूरे घर में तेहरवीं के लिए रिश्तेदारों का जमावड़ा हो रहा है लेकिन संध्या की दिक्कत है कि उसे पति नास्तिक की मौत पर रोना ही नहीं आ रहा है. अपनी बिल्ली के मरने पर तीन दिन तक खाना ना खाने वाली संध्या को पति के मौत के बाद जमकर भूख लग रही है और वो चोरी छिपे चिप्स, पेप्सी और गोलगप्पे खा भी रही है. सभी को लग रहा है कि संध्या सदमें में है.
सभी नाते रिश्तेदार संध्या के बारे में फैसला लेना चाहते हैं. संध्या क्या चाहती है किसी को पड़ी नहीं है. संध्या के दिल और दिमाग में बहुत कुछ चल रहा है. संध्या आस्तिक की प्रेमिका (सयानी) से मिलती है. मामला और पेचीदा तब बन जाता है जब आस्तिक के 50 लाख के पालिसी की नॉमिनी संध्या निकलती है लेकिन 13 दिन में यानी आस्तिक की तेहरवीं के दिन सबकुछ बदल जाता है क्या ?इसके लिए आपको यह फ़िल्म देखनी होगी.
महिला आज़ादी की बात करने के साथ साथ यह फ़िल्म कॉमिक अंदाज़ में नाते रिश्तेदारों पर भी कटाक्ष करती है. जिनके लिए पैसे से बड़ा कोई रिश्ता नहीं है. ओपन माइंडेड खुद को कहने वाले लोगों के पांखड पर भी यह फ़िल्म तंज कसती है. मुस्लिम के लिए अलग चाय का कप, लड़की के पीरियड पर बात करने वाला दृश्य सभी अपने तरह से एक संदेश देते हैं. फ़िल्म मार्मिक है लेकिन इसका ट्रीटमेंट हल्का फुल्का कॉमिक है.
फ़िल्म की एडिटिंग चुस्त है.अवधि कम होने की वजह से यह शुरू से अंत तक बांधे रखती है. फ़िल्म का क्लाइमेक्स चौंकाता नहीं है जिस तरह से फ़िल्म आगे बढ़ती है अंत समझना मुश्किल नहीं था लेकिन यह हल्की फुल्की फ़िल्म दिल को छू जाती है. इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है.
अभिनय की बात करें तो इस फ़िल्म में मंझे हुए कलाकारों की पूरी जमात है. सभी अपने अपने किरदारों में पूरी शिद्दत से निभाया हैं लेकिन इनमें सान्या मल्होत्रा,शीबा चड्ढा,आशुतोष राणा और चेतन शर्मा विशेष याद रह जाते हैं.
फ़िल्म की सिनेमेटोग्राफी प्रभावी है। परिवार और रिश्तेदारों से भरपूर शांति कुंज आवास हो या शहर की तंग गालियां, रास्ते या फिर गंगाघाट ये सभी कहानी में किरदार की तरह नज़र आते हैं.
फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो इस फ़िल्म से सिंगर अरिजीत सिंह ने बतौर कंपोजर अपनी शुरुआत की है. फ़िल्म का गीत संगीत भले ही यादगार नहीं है लेकिन कहानी को आगे बढ़ाते है।ये इनका अच्छा पहलू है. फ़िल्म के संवाद कहानी को प्रभावी बनाते हैं।कुलमिलाकर उम्दा अदाकारी से सजी यह संदेशप्रद फ़िल्म सभी को देखनी चाहिए.