भारत ने पाकिस्तान में सिख समुदाय पर बढ़ते हमलों पर चिंता जतायी है. विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तानी उच्चायोग के एक वरिष्ठ अधिकारी को तलब कर औपचारिक विरोध प्रकट किया है. पाकिस्तान में पिछले कुछ समय से सिख समुदाय के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है. इस वर्ष अप्रैल से जून के बीच ऐसी चार घटनाएं हुई हैं, जिनमें तीन सिख लोगों की मौत हो गई और एक व्यक्ति घायल हुआ. पिछले सप्ताह पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत की राजधानी पेशावर में एक सिख दुकानदार को मार डाला गया था. इसके एक दिन पहले इसी बाजार के एक अन्य सिख दुकानदार पर गोली चलायी गयी थी. आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट ने एक बयान जारी कर इन दोनों हमलों की जिम्मेदारी कबूल की, और लिखा कि दोनों ही लोग बहुदेववादी सिख धर्म को मानते थे.
पिछले वर्ष भी पेशावर में दो सिख कारोबारियों को मार डाला गया था. वर्ष 2014 के बाद से केवल खैबर पख्तूनख्वा में सिख समुदाय पर एक दर्जन से ज्यादा हमले हो चुके हैं. ये घटनाएं बताती हैं कि पाकिस्तान में सिख समुदाय के लोगों पर हमले की घटनाओं पर रोक नहीं लग पा रही. बीते वर्षों में भी ऐसे हमलों के बाद भारत समेत कनाडा जैसे देश और सिख संगठन, पाकिस्तान सरकार से अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग करते रहे हैं. पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने भी पिछले वर्ष मई में कहा था कि ऐसे हमले के दोषियों की पहचान कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए. लेकिन, पाकिस्तान सरकार की समस्या यह है कि वह एक इस्लामी देश है और वहां संविधान से लेकर सरकार तक, इस्लाम की रक्षा को अपना प्रमुख दायित्व मानती है.
ऐसे में हमलावर जब इस्लाम के नाम पर हिंदू, सिख, ईसाई जैसे अल्पसंख्यकों को या उनके उपासना स्थलों को निशाना बनाते हैं तो वह केवल आपराधिक घटना नहीं, बल्कि मजहबी मुद्दा बन जाता है. ऐसे में पाकिस्तान सरकार पर अल्पसंख्यकों पर हमले की घटनाओं को रोकने के प्रति गंभीर नहीं होने के आरोप लगते हैं. लेकिन, पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा का मुद्दा वहां की एक छोटी सी आबादी को सुरक्षित रखने का मुद्दा भर नहीं है. अल्पसंख्यकों के खिलाफ हर हमले से, पाकिस्तान की इस बारे में पहले से ही कमजोर अंतरराष्ट्रीय साख को और धक्का पहुंचता है. किसी भी जिम्मेदार देश में समाज के कमजोर तबके को सुरक्षा और न्याय की गारंटी देना वहां के नीति निर्धारकों की प्राथमिकताओं में शामिल होना चाहिए.