धनबाद : जात-जमात के चक्कर में नहीं मिल रहा मकान, आश्रयगृह में रहकर पढ़ने को मजबूर हैं पारा मेडिकल छात्र
मेडिकल कॉलेज के आसपास किराया का मकान नहीं मिला, तो विवश होकर सरायढेला के आश्रयगृह को ही अपना ठिकाना बना लिया. यहीं रहकर पारा मेडिकल के छात्र पढ़ाई करते हैं
जात-जमात के चक्कर में पारा मेडिकल के लगभग आधा दर्जन छात्रों को धनबाद में किराया का मकान नहीं मिल पा रहा है. सभी छात्र शहीद निर्मल महतो मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एसएनएमएमसीएच) में पारा मेडिकल की पढ़ाई कर रहे हैं. इनमें से कुछ जिले के बाहर के हैं. मेडिकल कॉलेज के आसपास किराया का मकान नहीं मिला, तो विवश होकर सरायढेला के आश्रयगृह को ही अपना ठिकाना बना लिया. यहीं रहकर पारा मेडिकल के छात्र पढ़ाई करते हैं. वहीं कुछ छात्र-छात्राएं ऐसे भी हैं, जिनको मेडिकल कॉलेज के पास जगह नहीं मिली, तो रोजाना लगभग 30 से 40 किलोमीटर का सफर तय कर आना-जाना करते हैं. बता दें कि पारा मेडिकल छात्रों के लिए हॉस्टल नहीं होने के कारण कई छात्र मेडिकल कॉलेज के आस-पास ही किराया के मकान में रहकर पढ़ाई करते हैं. इनमें से कुछ छात्रों को जात-जमात के चक्कर में कोई किराए का मकान नहीं दे रहे है.
कुछ छात्र रोजाना 30 किलोमीटर सफर कर पहुंचते है मेडिकल कॉलेज
पारा मेडिकल के कुछ छात्र साहेबगंज व अन्य जिलों के रहने वाले हैं. मेडिकल कॉलेज के आसपास उन्हें किराए का मकान नहीं मिला. थक हार कर उन्होंने सरायढेला के स्टीलगेट स्थित आश्रयगृह को अपने रहने का ठिकाना बना लिया. यहीं रहकर पढ़ाई करते हैं और क्लास भी. इसी तरह कई छात्र हैं, जो राजगंज, तोपचांची, पारसनाथ व गिरिडीह से रोजाना आना-जाना करते हैं.
लापरवाह व्यवस्था : हॉस्टल बनकर तैयार, पर अब तक टेकओवर नहीं
एसएनएमएमसीएच के पीजी ब्लॉक कैंपस में पारा मेडिकल छात्र-छात्राओं के लिए लगभग 32 करोड़ रुपये की लागत से हॉस्टल बना हुआ है. बावजूद इसके लगभग डेढ़ साल से बनकर तैयार हॉस्टल पारा मेडिकल के छात्र-छात्राओं को आवंटित नहीं किया गया. मेडिकल कॉलेज प्रबंधन सुरक्षा सहित अन्य मुद्दों का हवाला देते हुए हॉस्टल टेकओवर नहीं ले रहा है.
मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग की फेंका-फेंकी में नहीं हो रही मशीन की मरम्मत
धनबाद. एसएनएमएमसीएच के माइक्रोबायलॉजी विभाग में डेंगू की जांच के लिए लगायी गयी एलाइजा मशीन को ठीक कराने के लिए स्वास्थ्य विभाग टेक्नीशियन उपलब्ध कराने को तैयार है. हालांकि, मेडिकल कॉलेज प्रबंधन इसके लिए तैयार नहीं है. मेडिकल कॉलेज के प्रचार्य डॉ ज्योति रंजन प्रसाद के अनुसार स्वास्थ्य विभाग द्वारा एलाइजा रीडर मशीन लगायी गयी है. इसकी मरम्मत की जिम्मेवारी भी स्वास्थ्य विभाग की है. वहीं स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बताया कि माइक्रोबायलॉजी विभाग मेडिकल कॉलेज के अधीन है. ऐसे में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ ज्योति रंजन प्रसाद अगर चाहें तो स्वास्थ्य विभाग उन्हें मशीन की मरम्मति के लिए टेक्नीशियन उपलब्ध करा देगा. सिविल सर्जन डॉ आलोक विश्वकर्मा की ओर से भी जिला मलेरिया विभाग को यही निर्देश दिया गया है. बता दें कि मेडिकल कॉलेज के माइक्रोबायलॉजी विभाग में डेंगू जांच के लिए लगा एकमात्र एलाइजा रीडर मशीन पिछले छह माह से खराब पड़ा हुआ है. मेडिकल कॉलेज प्रबंधन और स्वास्थ्य विभाग की फेंका-फेंकी में मशीन की मरम्मत नहीं हो पा रही है. ऐसे में जिले में डेंगू के संभावित मरीजों की जांच पूरी तरह बंद है.
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