Loading election data...

कोरोना काल में माता-पिता का हुआ निधन, बेसहारा 6 बच्चों का सहारा बना चक्रधरपुर का चाइल्ड लाइन

कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने से माता-पिता के देहांत के बाद पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत चक्रधरपुर के गुईबेड़ा गांव के 6 बच्चे अनाथ हो गये. इन अनाथ बच्चों को अब सहारा मिला गया है. चाइल्ड लाइन ने इन अनाथ बच्चों को सहारा दिया है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 13, 2021 6:05 PM

Jharkhand News (शीन अनवर, चक्रधरपुर) : कोरोना काल में माता-पिता का देहांत हो जाने के बाद बेसहारा हो चुके 6 बच्चों को सहारा पश्चिमी सिंहभूम जिला अंतर्गत चक्रधरपुर का सृजन महिला विकास मंच द्वारा संचालित चाइल्ड लाइन ने दिया. 6 बच्चों में 3 पुत्र और 3 पुत्रियां हैं. नमक, भात और जंगल के पत्तियों को खाकर पेट भर रहा था.

जानकारी के मुताबिक, चक्रधरपुर प्रखंड के बाईपी पंचायत अंतर्गत गुईबेड़ा गांव में रहने वाले मछुआ पूर्ति का देहांत कोरोना संक्रमण की चपेट में आने से हुआ. उसके कुछ महीनों बाद उसकी पत्नी सुखमती पूर्ति भी कोविड का शिकार हो गयी. पहले पिता की मौत हो जाने से बच्चों को सहारा मां ने दिया और जंगल में पड़े जमीन पर बड़े बेटे के साथ मिलकर खेती की. लेकिन, ईश्वर को यह मंजूर नहीं था कि खेती के अनाज मां खा सके. मां भी कोरोना का शिकार हो गयी और मौत के गाल में समा गयी.

कुछ ही महीनों के अंतराल में माता-पिता दोनों का देहांत हो जाने के बाद उसके 6 बच्चे यतीम और बेसहारा हो गये. जिनमें 3 पुत्र और 3 पुत्रियां थी. इन बच्चों में 2 साल की शांति पूर्ति, 3 साल का सुखलाल पूर्ति, 5 साल की नंदी पूर्ति, 7 साल का चरण पूर्ति, 12 साल की पुत्री सोमबारी पूर्ति और 14 साल का गोमिया पूर्ति है.

Also Read: जमशेदपुर में बुजुर्गों को निशाने पर ले रहा साइबर क्रिमिनल्स, बैंक हॉलिडे के दिन आसानी से करता ट्रांजेक्शन

ये बच्चे बिना किसी सहारा और मदद के गांव में ही जंगली लकड़ियों को जोड़-जोड़ कर बनाई गई झोपड़ी में रह रहे थे. खाने को केवल चावल उपलब्ध था, जो सरकारी स्तर से प्राप्त हुआ था. उनके घर पर सब्जी नाम की कोई चीज नहीं थी. जंगल में जो भी पत्ती मिलती उन पत्तियों को सब्जी बनाकर बच्चे खाते थे. नमक भात और जंगल के पत्ते ही उनके भोजन बन कर रह गया था. 15 दिनों पहले पकाया गया चावल खाते पाये गये.

इन बच्चों की परेशानी को देखकर किसी शुभचिंतक ने चाइल्ड लाइन को फोन पर सूचना दिया. सृजन महिला विकास मंच की सचिव सह चाइल्ड लाइन की संचालिका नरगिस खातून मामले की गंभीरता को समझते हुए पहले अपनी टीम के सदस्यों को गांव वस्तुस्थिति जानने के लिए भेजा.

अनंत प्रधान, करमू बोदरा और मंजुलता बच्चों का निवास स्थान वाले नक्सल प्रभावित गांव पहुंचे. सेविका सविता गुंडुवा एवं सहायिका लक्ष्मी दिग्गी और गांव के अन्य लोगों से मिलकर बच्चों को अपने शरण में लिया. 12 अगस्त को 4 बच्चों को वाहन के माध्यम से चाइल्ड लाइन लाया गया. बड़े बेटे ने घर और मां द्वारा बोये गये अनाज की रखवाली करने तक गांव में रहने की इच्छा जाहिर किया. बड़ी बेटी को उसके एक परिजन ने अपने घर नरसंडा ले गये हैं, जिसे वापस लाने का प्रयास किया जा रहा है. इन अनाथ बच्चों का माता-पिता के कब्र घर के बाहर ही है, जिसे देख-देख कर वे सब्र करते थे.

Also Read: प्रभात खबर इंपैक्ट : शहीद तेलंगा खड़िया के घाघरा गांव पहुंचा गुमला प्रशासन, सरकारी लाभ देने की प्रक्रिया शुरू

इस संबंध में सचिव नरगिस खातून ने कहा कि नंग-धड़ंग बच्चे झोपड़ी में रहते थे. उनके पास पहनने के कपड़े तक नहीं है. घर में बर्तन, बिस्तर कुछ भी नहीं था. एक टूटा-फूटा बक्सा है, जिसमें केवल उनके आधार कार्ड रखे हुए थे. राशन दुकान से चावल मिल जाता था. जंगल से पत्तियां तोड़कर सब्जी बनाते और जीवन गुजार रहे थे.

बच्चों को नये कपड़े दिये गये हैं. खाने-पीने के सामान दिये गये हैं और उन्हें बाल कल्याण समिति, चाईबासा को सौंपने के बाद वापस चिल्ड्रेन होम में रखा गया है. इन बच्चों को हम परवरिश देंगे. लावारिस बच्चे हैं इन्हें शिक्षा देंगे. पढ़कर जब यह बड़े हो जायेंगे, तो फिर इन्हें उनके गांव में आबाद किया जायेगा. आवास योजना के तहत इनके घर बनाने की कोशिश सरकारी स्तर से की जायेगी.

Posted By : Samir Ranjan.

Next Article

Exit mobile version