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पूर्व मंत्री पार्थ चटर्जी ने पहनी अंगूठी, जेल सुप्रिटेंडेंट के खिलाफ FIR दर्ज

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में प्रेसीडेंसी संशोधनागार के सुप्रिटेंडेंट देवाशीष चक्रवर्ती के खिलाफ राज्य के संशोधनागार विभाग ने हेस्टिंग्स थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी है.

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला मामले में गिरफ्तार पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के जेल में अंगूठी पहनने वाले मामले में बैंकशाल कोर्ट स्थित इडी की विशेष अदालत ने जांच का आदेश दिया था. साथ ही जांच की रिपोर्ट हर 15 दिनों के अंतराल में अदालत में सौंपने का भी निर्देश दिया गया है. सूत्रों के अनुसार, इस निर्देश के मद्देनजर प्रेसीडेंसी संशोधनागार के सुप्रिटेंडेंट देवाशीष चक्रवर्ती के खिलाफ राज्य के संशोधनागार विभाग ने हेस्टिंग्स थाने में प्राथमिकी दर्ज करायी है. शिकायत में अधीक्षक पर कर्तव्य में लापरवाही बरतने का आरोप लगाया गया है.

एक साल से अधिक समय से जेल में है पार्थ

पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी भ्रष्टाचार के मामले में लगभग एक साल तक प्रेसीडेंसी जेल में न्यायिक हिरासत की अवधि काट रहे हैं. अप्रैल में उन्हें जेल में भी उंगली में अंगूठी पहनने को लेकर विवाद का सामना करना पड़ा था. इस मामले को लेकर बैंकशाल कोर्ट में इडी की विशेष अदालत ने प्रेसीडेंसी संशोधनागार के अधीक्षक देवाशीष चक्रवर्ती को कड़ी फटकार लगायी थी, साथ ही उन्हें अदालत में तलब भी किया गया था.

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इडी की तरफ से संशोधनागार अधीक्षक पर लगाये गये थे कई आरोप

इसी दौरान इडी की तरफ से भी अदालत में संशोधनागार अधीक्षक पर कई गंभीर आरोप लगाये गये थे. इडी के वकीलों की ओर से आरोप लगाया गया था कि इस घटना से इस आशंका को खारिज नहीं किया जा सकता है कि मवेशी से लेकर कोयला तस्करी व शिक्षक भर्ती घोटाले में लिप्त मामलों के आरोपियों को जेल में संरक्षण नहीं मिलता हो. इससे पहले भी उन्हें कलकत्ता हाइकोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने पर संशोधनागार अधीक्षक जुर्माना भरना पड़ा था.

अदालत ने मामले की जांच का दिया आदेश

संशोधनागार अधीक्षक के अपने पद पर अबतक बने हुए रहने पर भी सवाल उठाया गया था. मामले की सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने अधीक्षक से जब जानना चाहा था कि पार्थ चटर्जी की अंगूठी क्यों नहीं निकाली गयी? उसके जवाब में अधीक्षक ने कहा कि पार्थ की अंगुली सूज गयी है. इस कारण अंगूठी नहीं निकाली जा सकी थी. पार्थ ने इसके लिए जेल प्रबंधन के नाम पत्र भी दिया था. यह सुनने के बाद न्यायाधीश ने जानना चाहा था कि क्या जेल कोड में ऐसा कोई कानूनी प्रावधान है? इसपर जेल अधीक्षक ने कहा था कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है. अदालत ने संशोधनागार अधीक्षक के जवाब पर असंतोष जताते हुए, इस मामले की जांच का आदेश दिया था.

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