Paush Putrada Ekadashi 2023: पौष पुत्रदा एकादशी 2 जनवरी, 2023, सोमवार को है. यह इस साल की पहली एकादशी है. हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी तिथि आती है. वहीं पुत्रदा एकादशी की बात करें तो यह एक मात्र एकादशी है, जो साल में दो बार आती है. पहली पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. वहीं दूसरी पुत्रदा एकादशी का व्रत सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है. जानें इस बार पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कब रखा जा रहा है, पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि क्या है.
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पौष पुत्रदा एकादशी सोमवार, 2 जनवरी 2023 को
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3 जनवरी को पारण का समय – 07:14 सुबह से 09:19 सुबह
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पारण के दिन द्वादशी समाप्ति मुहूर्त – रात्रि 10:01 बजे
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एकादशी तिथि प्रारंभ – 01 जनवरी 2023 को शाम 07:11 बजे
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एकादशी तिथि समाप्त – 02 जनवरी 2023 को रात्रि 08:23 बजे
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उदया तिथि के अनुसार 2 जनवरी को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
हिंदू पंचांग के अनुसार, 02 जनवरी 2023 को पौष पुत्रदा एकादशी पर तीन शुभ योग बन रहे हैं. ये शुभ योग हैं- सिद्ध, साध्य, रवि योग. धार्मिक मान्यता है कि इन योग में की गई पूजा से कई गुना अधिक फल मिलता है.
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पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने वाले लोग इस दिन सुबह उठकर व्रत का संकल्प लें.
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स्वच्छ जल से स्नान करें.
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धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह सामग्री से भगवान विष्णु का पूजन करें.
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रात को दीपदान जरूर करें.
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संभव हो तो एकादशी की पूरी रात भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन, ध्यान करें.
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भगवान विष्णु से अनजाने में हुई भूल या पाप के लिए क्षमा मांगें.
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अगली सुबह स्नान करके पुनः भगवान विष्णु की पूजा करें.
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सामार्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करायें, दान दें.
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उसके बाद अपने एकादशी व्रत का पारण करें.
पुत्रदा एकादशी समेत सभी एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं. ऐसी मान्यता है कि पौष पुत्रदा एकादशी व्रत करने से वाजपेय यज्ञ के बराबर पुण्यफल की प्राप्ति होती है. धर्म शास्त्रों के अनुसार, जिन लोगों की संतान नहीं है उन लोगों के लिए ये व्रत विशेष शुभ फलदायी है. इस दिन व्रत रखने और पूजा करने से भगवान विष्णु की कृपा मिलती है. पौष माह की पुत्रदा एकादशी की तिथि, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि नोट कर लें.
पुत्रदा एकादशी व्रत में इस कथा को अवश्य सुनना चाहिए. मान्यता है कि कथा को ध्यान पूर्वक सुनने से ही इस व्रत का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है. पुत्रदा एकादशी की कथा द्वापर युग के महिष्मती नाम के राज्य और उसके राजा से जुड़ी हुई है. महिष्मती नाम के राज्य पर महाजित नाम का एक राजा शासन करता था. इस राजा के पास वैभव की कोई कमी नहीं थी, किंतु कोई संतान नहीं थी. जिस कारण राजा परेशान रहता था. राजा अपनी प्रजा का भी पूर्ण ध्यान रखता था. संतान न होने के कारण राजा को निराशा घेरने लगी. तब राजा ने ऋषि मुनियों की शरण ली. इसके बाद राजा को एकादशी व्रत के बारे में बताया गया है. राजा ने विधि पूर्वक एकादशी का व्रत पूर्ण किया और नियम से व्रत का पारण किया. इसके बाद रानी ने कुछ दिनों गर्भ धारण किया और नौ माह के बाद एक सुंदर से पुत्र को जन्म दिया. आगे चलकर राजा का पुत्र श्रेष्ठ राजा बना.