बसंत पंचमी पर महादेव को मिथिला के लोग चढ़ाएंगे तिलक, जानें कब होगा बाबा बैद्यनाथ का विवाह
Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी पर कला, बुद्धि और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है. वहीं इस दिन मिथिला के लोग बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
Basant Panchami 2024: बसंत पंचमी का पर्व देशभर में धूमधाम से मनाया जाता है, इस दिन कला, बुद्धि और ज्ञान की देवी मां सरस्वती की पूजा-अर्चना करने का विधान है. लेकिन देवघर के लिए यह दिन और भी खास हो जाता है. क्योंकि बसंत पंचमी के दिन मिथिला के लोग बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. तिलक की इस रस्म को अदा करने के लिए बाबा के ससुराल से बड़ी संख्या में श्रद्धालु अलग तरह का कांवड़ लेकर बाबा धाम पहुंचते हैं और बसंत पंचमी के शुभ दिन बाबा को तिलक चढ़ाते हैं, इसके बाद शिवरात्रि के दिन शिव विवाह में शामिल होने का संकल्प लेकर वापस लौट जाते हैं. आइए जानते हैं तिलकोत्सव की परंपरा और कौन लोग बाबा बैद्यनाथ को तिलक लगाते हैं.
मिथिला के लोग चढ़ाते हैं तिलक
देवघर में तिलकोत्सव मनाने की यह परंपरा सदियों से चली आ रही है. मिथिला के लोग कहते है कि माता पार्वती हिमालय पर्वत की सीमा की थीं और मिथिला हिमालय की सीमा में है. इसलिए माता पार्वती मिथिला की बेटी हैं. मिथिला के लोग लड़की पक्ष की तरफ से देवघर में पहुंचकर बाबा बैद्यनाथ को तिलक चढ़ाते हैं. प्रत्येक वर्ष की भांति इस साल भी कई टोलियों में मिथिलावासी शहर के कई जगहों पर अपना डेरा जमाए हुए हैं. मिथिलावासी बड़ी ही श्रद्धा के साथ पूजा-पाठ, पारंपरिक भजन-कीर्तन कर बसंत पंचमी के दिन का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे हैं.
महादेव को तिलक चढ़ाने की परंपरा प्राचीन
बसंत पंचमी के दिन मिथिलांचल के लोगों के द्वारा देवाधिदेव महादेव को तिलक चढ़ाने की परंपरा प्राचीन है, इस परंपरा की शुरुआत ऋषि-मुनियों ने की थी. इसे मिथिलावासी आज तक निभाते आ रहे हैं. मिथिलावासी खुद को माता पार्वती का भाई और महादेव भोलेनाथ को अपना बहनोई मानते हैं. बसंत पंचमी के दिन बाबा मंदिर के प्रांगण में उनका तिलक कर उन्हें शिवरात्रि के दिन बारात लेकर आने के लिए आमंत्रण देते हैं.
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इस दिन भोलेनाथ के तिलकोत्सव
भोलेनाथ के तिलकोत्सव के लिए माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि निर्धारित होती है. मिथलवासी बसंत पंचमी से पहले ही देवनगरी देवघर में अपना डेरा डाल लेते हैं और माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को तिलकोत्सव मनाते हैं, जिन्हें तिलकहरू कहते हैं. धार्मिक मान्यता है कि माता पार्वती के मायके से आए तिलकहरुवे के बाबा बैधनाथ को तिलक चढ़ा कर वापस लौटते ही बाबाधाम में शिव विवाह यानी शिवरात्रि की तैयारी जोर-शोर से शुरू हो जाती है. तमाम तैयारियों के बाद महाशिवरात्रि के दिन बाबा मंदिर के प्रांगण में माता पार्वती और महादेव शिवशंकर के बीच गठबंधन की रस्म अदायगी की जाती है और फिर बड़े ही धूम-धाम से बाबा की बारात मंदिर प्रांगण पहुंचती है, जहां शिव-पार्वती का विवाह संपन्न होता है.
बाबाधाम के गुलाल से होती है नविवाहितों की पहली होली
बाबाधाम में तिलकोत्सव के दौरान मिथला के लोग भोलेनाथ को गुलाल भी अर्पित करते हैं. परंपरा के मुताबिक यही गुलाल एक-दूसरे को लगाकर फाग गीत भी गाना प्रारम्भ कर देते हैं. बसंत पंचमी पर इस्तेमाल किए गए गुलाल को तिलकहरुवे अपने घर लेकर जाते हैं, जहां इसी गुलाल से नवविवाहितों की पहली होली होती है.