Pitru Paksha 2021: पितृपक्ष शुरू हो चुका है. श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं, जो बहुत कम लोग जानते हैं. मगर ये बातें श्राद्ध करने से पहले जान लेना बहुत जरूरी है, क्योंकि कई बार विधि पूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं. आइए जानते है ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ संजीत कुमार मिश्रा से श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें…
1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए. यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं. दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए.
2 – श्राद्ध में चांदी के बर्तन का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है. पितरों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है. पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है.
3 – श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए गए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं.
4 – ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए, क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं, जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें.
5 – जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए. इससे वे प्रसन्न होते हैं. श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए. पिंडदान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता.
6 – श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं. ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है.
7 – श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटर सरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है. तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है. वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं. कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं.
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8 – दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए. वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है. अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है.
9 – चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए, क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है.
10 – जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहनी वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते.
11 – श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदरपूर्वक भोजन करवाना चाहिए. जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है.
12 – शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए. धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है. अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए.
13 – श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं. श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है.
14 – रात्रि को राक्षसी समय माना गया है. अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए. दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए. दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है.
15 – श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं. गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल. केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है. सोना, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं. इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है.
16 – तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं. ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं. तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं.
17 – रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं. आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए.
18 – चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं.
19 – भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं-
20 – नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्
संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ
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Posted by: Radheshyam Kushwaha