30.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Pitru Paksha 2023: श्राद्ध पिंडदान का महातीर्थ है गया

Pitru Paksha 2023: गया में पितृपक्ष का नजारा देखने लायक होता है, जब दिन दशहरा और रात दिवाली की भांति रोशन हुआ करती है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या का यह समय पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है.

Pitru Paksha 2023, Pitru Paksha 2023 in Gaya: भारतवर्ष के सभी सांस्कृतिक परिक्षेत्रों के साथ-साथ विदेश में रहने वाले हिंदुओं के आगमन से गया पितृपक्ष के दिनों में ‘मिनी हिंदुस्तान’ बन जाता है. सचमुच गया में पितृपक्ष का नजारा देखने लायक होता है, जब दिन दशहरा और रात दिवाली की भांति रोशन हुआ करती है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या का यह समय पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है.

पितरण मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का शास्त्रोंक्त विधान है

रत्नगर्भा धरती बिहार की राजधानी व ऐतिहासिक नगरी पटना से तकरीबन 100 किलोमीटर दूरी और मोक्ष माया अंत: सलिला फल्गु के पार्श्व में विराजमान गया भारतवर्ष का प्राचीन, ऐतिहासिक और धार्मिक नगरों में अद्वितीय है. भारतवर्ष का पांचवाधाम, त्रिस्थली, गयासुर की धरती, पितरेश्वरों का तीर्थ, पिंडदान भूमि, श्रीविष्णु तीर्थ, स्वर्गारोहण का द्वार, शिव और शक्ति की आराध्य भूमि, श्रीभैरव का अष्टप्रधान तीर्थ आदि कितने ही नामों से सुशोभित गया एक युग युगीन नगर है, जहां पुरातन काल से आज तक तरनतारन के नाम पर व पितरण मुक्ति के लिए श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण का शास्त्रोंक्त विधान है.

संपूर्ण पिंडदान के उपरांत यहीं सुफल दिया जाता है

गया नगर की जीवन रेखा फल्गु प्राचीन सरस्वती के समकालीन मानी जाती है और इस नदी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें जलधारा आंशिक रूप से भरी रहती है. अब गर्मी के दिनों में ही नहीं, बल्कि साल के 7-8 महीने यह नदी सूखी रहती है, लेकिन अंदर ही अंदर प्रवाहमान रहती है. गया के अक्षयवट को संसार का सबसे पुराने वृक्षों में एक कहा जाता है. अग्नि पुराण, गरुड़ पुराण, महाभारत, आनंद रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों में इस बात के उल्लेख मिलते हैं कि पितरों के कल्याण के लिए इसका रोपण और उद्धार ब्रह्मा जी ने किया. गया श्राद्ध की पूर्णाहुति यही होती है और संपूर्ण पिंडदान के उपरांत यहीं सुफल दिया जाता है.

गया की प्राचीनता के स्पष्ट प्रमाण यहां के तीन प्रधान देवस्थल हैं. श्री विष्णु पद में चरण की पूजा, शक्तिपीठ माता मंगला गौरी में मां के पंच पयोधन (स्तन द्वय) और भैरव स्थान (रूद्कपाल) मंदिर में भैरव नाथ जी के कपाल की पूजा की जाती है. गया में प्रतीक पूजा का यह चर्चित केंद्र आदिकाल से उपास्य क्षेत्र में गण्य हैं.

गयाजी तीर्थ अनुष्ठान के जानकार और संवाहक साथ ही गया तीर्थ के मूलनिवासी गयापालों अथवा गयावालों को ब्रह्म कल्पित बताया जाता है, जो प्रजापति ब्रह्मा के मानस पुत्र के रूप में चौदह गौत्रों के साथ उपस्थित हुए हैं. सामान्य बोलचाल की भाषा में इन्हें पंडा जी कहा जाता है. भैरवी चक्र पर अवस्थित गया को प्राचीन काल में आदि गया कहा गया है, जो इसके प्राचीनता का स्पष्ट प्रमाण है.

पंचकोशी तीर्थ को गया कहा जाता है

गया असुर प्रवर ‘गय’ की धरती है. जिस प्रकार महिषासुर के नाम से मैसूर, भद्रासुर से भद्रेश्वर, तंजासुर के नाम से तंजाबूर, जलंधर के नाम से जालंधर प्रकाशित है, ठीक उसी प्रकार गयासुर से गया सूत्र संबंध है. विवरण है गया असुर देव प्रवृत्ति से महिमामंडित देव श्रीविष्णु का परम भक्त था. असुर वंश में उत्पन्न गया जाति से भले ही असुर था, पर स्वभाव से देवताओं जैसा था. माना जाता है कि इसमें राक्षसी भाव के तत्व पूर्णत: गौण हो गये थे. धर्मग्रंथों के अनुसार, गयासुर सवा सौ योजन लंबा और साठ योजन चौड़ा था. इसके पिता त्रिपुरासुर और माता प्रभावती थीं. इसी के नाम पर इस पंचकोशी तीर्थ को गया कहा जाता है.

जहां धर्मानुष्ठान संपन्न किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहते हैं

इसे गया पितृपक्ष मेले की खासियत कहिए कि यहां देश-विदेश के राजा महाराजा और चर्चित व्यक्तित्व ही नहीं वरन् श्राद्ध पिंडदान के वास्ते देवी-देवताओं का भी आगमन हुआ है. आज भी गया में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के गया आगमन के गवाह कितने ही स्थल बने हुए हैं. गया में श्राद्ध पिंडदान के क्रम में जहां-जहां धर्मानुष्ठान संपन्न किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहते हैं. कभी यहां इन वेदियों की संख्या 365 थी, पर समय के साज पर अब 50 के करीब ही शेष बची हैं, जिनमें श्री विष्णुपद, फल्गुजी और अक्षयवट का विशेष मान है.

तीर्थों में श्राद्ध पिंडदान जैसे अनुष्ठान किये जाते हैं

ऐसे तो श्रद्धालु अपने समय और सुविधा के अनुसार गया सालों भर आते रहते हैं, लेकिन साल का 15 दिन का समय पितृपक्ष कहा जाता है, जिसका विशेष महत्व होता है. भाद्रपद पूर्णिमा से लेकर आश्विन अमावस्या का यह समय पितरण कार्य के लिए सर्वथा उपयुक्त माना जाता है. इस बार गया पितृपक्ष मेले की शुभ शुरुआत 28 सितंबर से हो रही है, जिसकी तैयारी सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर तीव्र गति से चल रही है. कई अर्थों में गया के आर्थिक व्यवस्था पर भी इस मेले का काफी कुछ प्रभाव पड़ता है, जिसे संसार के पुरातन मेलों में एक बताया जाता है. राजकीय मेले के रूप में घोषणा होने के बाद गया पितृपक्ष मेले में काफी कुछ बदलाव हुआ है. ज्ञातव्य है कि भारतवर्ष के कितने ही तीर्थों में श्राद्ध पिंडदान जैसे अनुष्ठान किये जाते हैं, पर पितृपक्ष के दिनों में वृहद् जन समागम से मेला का दृश्य जहां सहज उपस्थित जाता है, उसका सौभाग्य सिर्फ गया को ही प्राप्त है.

कैसे पहुंचें

आप अपनी सुविधा के अनुसार रेल मार्ग, सड़क मार्ग और हवाई मार्ग- तीनों से गया जा सकते हैं. अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बोधगया से दिल्ली सहित भारतवर्ष के ही नहीं, विदेशी नगरों के लिए भी उड़ान उपलब्ध हैं. नयी दिल्ली-हावड़ा ग्रैंड कोड लाइन पर अवस्थित गया रेल यातायात से पूरे देश से जुड़ा है.

डॉ राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’

इतिहासकार, गया

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें