पितृपक्ष 2023: पितरों को तर्पण देने साहिबगंज गंगा घाट पहुंच रहे लोग, पितर कौए के रूप में आते हैं धरतीलोक
पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं व आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई रुकावटें दूर होती हैं. ऐसे में झारखंड के एकमात्र जिला साहिबगंज से प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के घाट पर लोग अपने पितरों को तर्पण दे रहे हैं. आइए जानते हैं इनसे जुड़ी मान्यताएं-
साहिबगंज/राजमहल, दीप सिंह : पितृपक्ष शुरू होते ही झारखंड के एकमात्र जिला साहिबगंज से प्रवाहित होने वाली गंगा नदी के घाट पर लोग अपने-अपने पितरों को तर्पण दे रहे हैं. साहिबगंज के नर्मदेश्वर सीढ़ी घाट पर पुरोहितों के माध्यम से पितृ तर्पण कार्य कराया जा रहा है. वहीं राजमहल उत्तर वाहिनी गंगाघाट सुर्यदेवघाट में पुरोहितों के माध्यम से पितरों का तर्पण किया जा रहा है. पुरोहितों के मुताबिक हिंदू धर्म में गंगा नदी के तट पर पितृ पक्ष करने का विशेष महत्व है. साहिबगंज जिला के अलावा संथाल परगना के विभिन्न जिला सहित अन्य इलाकों के लोग भी पितृ तर्पण के लिए गंगा घाट पर पहुंचते हैं. इस अवधि में प्रतिदिन पितरों को पानी देकर अंतिम दिन कर्मकांड के साथ पिंडदान किया जाता है. कुछ लोग अपने पूर्वज के तिथि की मृत्यु के अनुसार भी पितृ तर्पण करते हैं. पहले सुबह से ही गंगा तट पर लोग पहुंचने लगते हैं.
पितरों का तर्पण कर लोगों ने मांगा आशीष
मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण करने से पितर प्रसन्न होते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं. उनकी कृपा से जीवन में आने वाली कई प्रकार की रुकावटें दूर होती हैं. पितृपक्ष के पहले दिन लोगों ने अगस्त मुनि का तर्पण किया. कुछ साधकों ने अपने पितरों का तर्पण कर उन्हें नमन किया. पितृ पक्ष का समापन 14 अक्तूबर को होगा. उस दिन महालया है, इस दिन से देवी पक्ष प्रारंभ हो जायेगा. कहते हैं कि श्राद्ध पक्ष में पितृ धरती पर आकर अपने परिवार को आशीर्वाद देते हैं. ऐसे में उन्हें प्रसन्न करने के लिए 15 दिन तक तर्पण, पिंडदान और दान किये जाने की अदभुत परंपरा रही है.
दोपहर में तर्पण से मिलता है अद्भुत परिणाम
मान्यता है जो पितरों को उनकी मृत्यु तिथि पर श्राद्ध कर्म करता है, उसकी जीवन की समस्त समस्या खत्म हो जाती है. पूर्वजों के आशीष से परिवार पर कोई आंच नहीं आती है. पंडित सुधाकर झा ने बताया कि पितरों के निमित्त तर्पण और श्राद्ध के लिए कुतुप मुहूर्त उत्तम माना जाता है. कुतुप काल दिन का आठवां मुहूर्त होता है. दोपहर के समय किया गया तर्पण अद्भुत परिणाम देता है. इससे पितृ देव जल्द प्रसन्न होते हैं और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. पंडितों ने बताया कि कुतुप मुहुर्त सुबह 11:59 से दोपहर 12:49, अवधि 50 मिनट का होता है.
तर्पण व पिंडदान से पितरों को मोक्ष प्राप्ति
श्राद्ध में पिंडदान का विशेष महत्व है. चावल को गलाकर उसमें दूध, घी, गुड़ और शहद को मिलाकर पिंड बनाए जाते हैं. दक्षिण दिशा में मुंह करके ये पिंड पितरों को अर्पित किए जाते हैं. फिर इन्हें जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. मान्यता है कि पितृ पक्ष में पिंडदान करने से सात पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है. इससे पितरों को मोक्ष प्राप्ति होती है. मान्यता है कि पितृपक्ष में कौए को भरपेट भोजन कराने से पितृ तृप्त होते हैं. इसलिए बिना कौए को भोजन कराए श्राद्ध कर्म पूरा नहीं माना जाता है. जिन लोगों की कुंडली में पितृ दोष होता है, उन लोगों को संतान सुख आसानी से नहीं मिलता है. या फिर संतान बुरी संगत में पड़ जाता है. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर कौए के रूप में धरतीलोक पर आते हैं. वहीं वर्ष के किसी भी पक्ष में जिस तिथि को घर के पूर्वज का देहांत हुआ हो, उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिए.
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