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Pitru Paksha 2023: आज इस विधि से करें पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म, जानें कब होगा प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध

Pitru Paksha 2023: पितृ पक्ष में दोपहर के समय ध्यान करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार, सुबह और शाम को देवी-देवताओं के लिए पूजा-पाठ की जाती है. दोपहर का समय पितरों को समर्पित है.

By Radheshyam Kushwaha | September 29, 2023 9:44 AM

Pitru Paksha 2023: आज से पितृ पक्ष आरंभ हो गया है. आज भाद्रपद मास की पूर्णिमा है और पूर्णिमा व्रत को कई धार्मिक संस्कृतियों में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. इस व्रत को करने से शरीर को शुद्धि मिलती है. इससे शारीरिक व मानसिक रूप से अच्छी सेहत प्राप्त होती है. मान्यता है कि इस दिन नियमित मात्र पिंडदान करें तो पितर के आत्मा को मुक्ति मिलती है. पूर्णिमा का व्रत सुख-शांति व संपन्नता प्रदान करता है. व्रत को परिवार के साथ करने से परिवार में एकता और प्रेम बढ़ता है. इतना ही नहीं इसे करने से मां लक्ष्मी की कृपा और जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है. शास्त्रों में ऐसा वर्णित है की जो व्यक्ति विधिपूर्वक शांत चित्त होकर श्रद्धा के साथ पिंडदान करते हैं, तो उनके पितर सर्व पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त हो जाते हैं, उनका संसार में आवागमन के चक्र से छूटकारा मिल जाती है. “श्राद्धकल्पता” अनुसार, पितरों के उद्देश्य से श्रद्धा एवं आस्तिकतापूर्वक पदार्थ-त्याग का दूसरा नाम ही श्राद्ध है. ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि ‘देशे काले च पात्रे च श्राद्धया विधिना चयेत. पितृनुद्दश्य विप्रेभ्यो दत्रं श्राद्धमुद्राहृतम.’


श्राद्ध कर्म को पितृकर्म भी कहा गया है

सनातन धर्म में मृत पूर्वजों को पितृ कहा गया है. शास्त्रानुसार, पितृ अत्यंत दयालु तथा कृपालु होते हैं, वह अपने पुत्र-पौत्रों से पिण्डदान तथा तर्पण की आकांक्षा रखते हैं. वह इस प्रतीक्षा में रहते है कि कब पितृ पक्ष का दिन आये और उनके संतान प्रेत योनी से मुक्ति के लिए श्राद्ध तर्पण एवं पिंडदान करें. इस तरह पिंडदान करने से पितृगण प्रसन्न होकर दीर्घ आयु, संतान सुख, धन-धान्य, विद्या, राजसुख, यश-कीर्ति, पुष्टि, शक्ति, स्वर्ग एवं मोक्ष तक प्रदान करते हैं. भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में पितृ ऋण से मुक्त होने के लिए अपने माता-पिता व परिवार के मृतकों के निमित श्राद्ध करने की अनिवार्यता प्रतिपादित की गई है. कहा गया है कि जिसके पुत्र नहीं होते है. वह अपनी पुत्री से भी पिंडदान कर सकते है. श्राद्ध कर्म को पितृकर्म भी कहा गया है व पितृकर्म से तात्पर्य पितृ पूजा भी है.

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आज ऐसे करें पूर्णिमा का श्राद्ध कर्म

आज पूर्णिमा तिथि है. ऐसे में आप सबसे पहले स्नान आदि कर लें. उसके बाद दूध में पकाए हुए चावल में शक्कर एवं सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची, केसर और शहद मिलाकर खीर तैयार कर लें. गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित कर लें. उक्त प्रज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दें. भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें. इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएं फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें. पश्चात ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें. गाय, काला कुत्ता, कौआ, यह सब करते हुआ याद रखे आप का मुख दक्षिण दिशा की तरफ होना चाहिए. आप किसी गरीब, जरूरतमंद की सहायता भी आप कर सकें तो बहुत पुण्य मिलता है.

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आज होगा प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध

भाद्रपद की प्रतिपदा आज दोपहर 03 बजकर 26 मिनट से 30 सितंबर दोपहर 12 बजकर 21 मिनट तक रहेगी. पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध दोपहर के समय किया जाता है. यही वजह है कि आज प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध मान्य होगा. पूर्णिमा का श्राद्ध पितृ पक्ष के आखिरी दिन सर्व पितृ अमावस्या पर किया जाता है. इस साल सर्व पिृत अमावस्या 14 अक्टूबर 2023 को है.

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इस समय करें श्राद्ध, पितृ होंगे तृप्त

पितृ पक्ष में दोपहर के समय ध्यान करना चाहिए. शास्त्रों के अनुसार, सुबह और शाम को देवी-देवताओं के लिए पूजा-पाठ की जाती है. दोपहर का समय पितरों को समर्पित है. इस दौरान ही कौवे, चींटी, गाय, देव, कुत्ते को पंचबलि भोग देना चाहिए, ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए. दोपहर में करीब 12 बजे पितरों को याद करते हुए श्राद्ध कर्म करें. श्राद्ध संपन्न करने के लिए कुतुप, रौहिण मुहूर्त अच्छे माने गए हैं.

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आज करें ये 3 काम

पितृ पक्ष में पवित्र नदी में स्नान करने का विधान है. नदी किनारे ही तर्पण की विधि संपन्न करें. हाथ में कुशा लेकर पूर्वजों को जल दें. इस विधि से ही पूर्वज स्वीकार करते हैं. पितरों के नाम पर जरूरतमंद लोगों को अनाज, जूते-चप्पल, धन और कपड़ों का दान करें. किसी गोशाला में हरी घास दान करें. मंदिर या किसी सावर्जनिक स्थान पर छायादार पेड़ों के पौधे लगाएं और उसके संरक्षण का संकल्प लें. ऐसा करने से पितर प्रसन्न हो जाते है.

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श्राद्ध पक्ष का ज्योतिष महत्व

हर वर्ष भाद्रपद मास के पूर्णिमा तिथि से आश्विन माह की अमावस्या तिथि तक 15 दिन श्राद्ध कर्म किए जाते हैं. आज पूर्णिमा का श्राद्ध है. अतः पूर्णिमा का श्राद्ध ठीक मध्यान के समय करना उचित है. पितृ पक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है. अगर किसी मृत व्यक्ति की तिथि ज्ञात न हो तो ऐसी स्थिति में अमावस्या तिथि पर श्राद्ध कर सकते है. इस दिन सर्वपितृ श्राद्ध योग माना जाता है. इसके साथ ही कहा जाता है कि पितृ पक्ष में पितर संबंधित कार्य करने से व्यक्ति का जीवन खुशियों से भर जाता है.

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