Pitru Paksha 2023: भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि से पितृपक्ष का शुभारंभ हो जाता है. पितृपक्ष का समापन आश्विन मास की अमावस्या तिथि को होता है. इस साल 29 सितंबर से पितृपक्ष का शुभारंभ हो रहा है. ज्योतिष अनुसंधान केंद्र लखनऊ के संस्थापक वेद प्रकाश शास्त्री ने बताया कि पितृपक्ष की अवधि में पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म करने का विधान है. इस दौरान पितर अपने परिवारजनों से मिलने के लिए धरती लोक पर आते हैं. मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान श्राद्ध करने पर मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति मिलती है. इसके साथ ही पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष के कृष्णपक्ष को महालय श्राद्ध किया जाता है. आइए जानते हैं, पितृपक्ष में किन-किन तिथियों को महत्वपूर्ण माना जाता है.
पितरों के लिए श्राद्ध नहीं करने पर उनकी अतृप्त इच्छाओं के रहने से परिवार वालों को कष्ट हो सकता है. श्राद्ध से पितरों का रक्षण होता है, उनको आगे की गति मिलती है और अपना जीवन भी सहज होता है. पितृपक्ष में पितरों का महालय श्राद्ध करने से वे वर्षभर तृप्त रहते हैं.
पितृपक्ष में वातावरण में तिर्यक तरंगों की (रज-तमात्मक तरंगों की) तथा यमतरंगों की अधिकता होती है. इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध करने से रज-तमात्मक कोषों से संबंधित पितरों के लिए पृथ्वी की वातावरण-कक्षा में आना सरल होता है. इसलिए हिन्दू धर्म में बताए गए विधि कर्म उस विशिष्ट काल में करना अधिक श्रेयस्कर है. हिन्दू धर्मशास्त्र कहता है कि पितृपक्ष व्रत है. इसकी अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से आमावस्या तक रहती है. इस काल में प्रतिदिन महालय श्राद्ध करना चाहिए. मान्यता है कि पितृपक्ष में पितर यमलोक से धरती पर अपने वंशजों के घर रहने आते हैं. इस काल में एक दिन श्राद्ध करने पर पितर वर्षभर तृप्त रहते हैं. शास्त्र में यह भी कहा गया है कि पितृपक्ष में अपने सब पितरों के लिए श्राद्ध करने से उनकी वासना, इच्छा शांत होती है और आगे जाने के लिए ऊर्जा मिलती है.
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शास्त्र के अनुसार भाद्रपद प्रतिपदा से अमावस तक प्रतिदिन महालय श्राद्ध करना चाहिए, यदि यह संभव न हो, तो जिस तिथि पर अपने पिता का देहांत हुआ हो, उस दिन इस पक्ष में सर्व पितरों को उद्देशित कर महालय श्राद्ध करने का परिपाठ है. यह श्राद्ध पितृत्रयी-पिता, पितामह (दादा), प्रपितामह (परदादा), मातृत्रयी – माता, पितामही, प्रपितामही, सापत्नमाता, मातामह (नाना), मातृपितामह, मातृप्रपितामह, मातामही (नानी), मातृपितामही, मातृप्रपितामही, पत्नी, पुत्र, कन्या, पितृव्य (चाचा), मातुल (मामा), बंधु, बूआ, मौसी, बहन, पितृव्यपुत्र, जंवाई, बहनका बेटा, ससुर-सास, आचार्य, उपाध्याय, गुरु, मित्र, शिष्य इन सबके प्रीत्यर्थ करना होता है. जो कोई जीवित हैं, उन्हें छोड़कर अन्य सभी का नाम लेकर इसे करते हैं.
संभव हो, तो भगवान के लिए दो, चार पार्वण (मातृत्रयी, पितृत्रयी, मातामहत्रयी एवं मातामहीत्रयी) हेतु प्रत्येक के लिए तीन एवं पत्नी इत्यादि एकोद्दिष्ट गण हेतु, प्रत्येक के लिए एक ब्राह्मण बुलाएं. इतना संभव न हो, तो देवता के लिए एक, चार पार्वणों के लिए चार और सर्व एकोद्दिष्ट गण के लिए एक, ऐसे पांच ब्राह्मण बुलाएं. अगर योग्य तिथि पर महालयश्राद्ध करना संभव न हो, तो ‘यावद्वृश्चिकदर्शनम्’ अर्थात सूर्य के वृश्चिक राशि में जाने तक किसी भी योग्य तिथि पर करें. पितृपक्ष की विविध तिथियों पर विशिष्ट व्यक्तियों के लिए आवश्यक श्राद्ध आगे दी गई सारणी अनुसार हैं.
शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष की अवधि में पितर के देहांत की तिथि के अनुसार, श्राद्ध, तर्पण एवं पिंडदान कर्म किया जाता है. लेकिन पितृपक्ष के दौरान भरणी श्राद्ध, नवमी श्राद्ध और सर्वपितृ अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है.
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इस वर्ष भरणी श्राद्ध कर्म 2 अक्टूबर को चतुर्थी श्रद्धा के साथ किया जाएगा. पंचांग के अनुसार, भरणी नक्षत्र सुबह से शाम 06 बजकर 24 मिनट तक रहेगा. इस दौरान तर्पण अथवा श्राद्ध कर्म को श्रेष्ठ माना जाता है. पितृपक्ष के भरणी नक्षत्र के दिन श्राद्ध करने से गया जाकर श्राद्ध करने पर प्राप्त होनेवाला फल मिलता है. शास्त्रानुसार भरणी श्राद्ध वर्षश्राद्ध के उपरांत करें. वर्षश्राद्ध से पूर्व सपिंडीकरण किया जाता है. तत्पश्चात भरणी श्राद्ध करने से मृत व्यक्ति की आत्मा को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है. यह श्राद्ध प्रत्येक पितृपक्ष में करें.
नवमी श्राद्ध को मातृ श्रद्ध के नाम से भी जाना जाता है. इस साल नवमी श्राद्ध सात अक्टूबर के दिन किया जाएगा. इस तिथि पर परिवार में मातृ पितर अर्थात मां, दादी, नानी को समर्पित पिंडदान व श्राद्ध कर्म किया जाता है. इस दिन श्राद्ध कर्म करने से साधक को विशेष लाभ मिलता है.
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पंचांग के अनुसार सर्व पितृ अमावस्या इस वर्ष 14 अक्टूबर को है. इस विशेष दिन पर जो लोग अपने पितरों के निधन की तिथि नहीं जानते हैं, वह इस दिन श्राद्ध कर्म, पिंडदान व तर्पण इत्यादि कर सकते हैं. सर्व पितृ अमावस्या के दिन स्नान-दान को भी विशेष महत्व दिया गया है.