शिल्पकारों के लिए है पीएम विश्वकर्मा योजना
इस योजना के अंतर्गत एक परिवार से एक सदस्य को पांच प्रतिशत के रियायती ब्याज दर पर दो लाख रुपये की पूंजी उपलब्ध करायी जायेगी. पहली किश्त में एक लाख दिया जायेगा. इस ऋण की वापसी के बाद दूसरी बार ऋण दिया जायेगा.
पारंपरिक कारीगरों, शिल्पकारों की भूमिका हमारे समाज में महत्वपूर्ण रही है, परंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि विकास की अवधारणा में जितना महत्व इनको दिया जाना चाहिए था वह नहीं दिया गया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश में विकास की मिश्रित अर्थव्यवस्था का जो मॉडल अपनाया गया, उसकी धुरी बड़े-बड़े उद्योग बनते गये जिसमें सार्वजनिक उपक्रमों की भूमिका महत्वपूर्ण होती गयी. मनमोहन सिंह के वित्त मंत्री रहते हुए तत्कालीन अर्थव्यवस्था को 1991 में वैश्वीकरण का एक बड़ा आधार मिला जिसकी वजह से देश की आर्थिक नीतियों, परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया.
यह भी नहीं कहा जा सकता कि विकास के इस दौर में पारंपरिक कारीगर, शिल्पकार बिल्कुल हाशिये पर चले गये, पर उनके सामने आजीविका और पारंपरिक शिल्प को बचाये रखने की चुनौतियां बढ़ती गयीं. इसके कई कारण रहे जिसमें मुख्य रूप से पारंपरिक एवं विरासत शिल्प की तुलना में मशीन द्वारा बड़े पैमाने पर उत्पादित वस्तुओं को कई उपभोक्ता प्राथमिकता देने लगे, हमारी शिक्षा प्रणाली में पारंपरिक और विरासत कौशल की शिक्षा को अधिक महत्व नहीं दिया गया, कई विरासत शिल्प के अद्वितीय होने के बावजूद उन्हें उचित मान्यता नहीं मिली, कॉरपोरेट सेक्टर की तुलना में इस सेक्टर को पर्याप्त सरकारी बजट उपलब्ध नहीं हो पाया.
कोविड महामारी के दौरान प्रधानमंत्री द्वारा उद्योगों के लिए आर्थिक पैकेज घोषित किये गये परंतु कारीगरों, शिल्पकारों के लिए बहुत कुछ नहीं हो पाया. उपर्युक्त बिंदुओं पर ध्यान दिया जाए, तो पारंपरिक एवं विरासत शिल्प की मांग भी आधुनिक डिजाइन के साथ बढ़ सकती है, बशर्ते उनकी पहुंच बाजार तक हो सके और सरकार से उन्हें पर्याप्त आर्थिक और नीतिगत संरक्षण प्राप्त हो.
प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किला से प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना की घोषणा की और अगले ही दिन 16 अगस्त को कैबिनेट ने इसके लिए 13000 करोड़ रुपये की स्वीकृति प्रदान कर दी. इस पांच वर्षीय योजना की औपचारिक घोषणा 17 सितंबर, 2023 को विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर की जायेगी. पहले वर्ष में बढ़ई, नाव बनाने वाले, लोहार, मोची, नाई, राज मिस्त्री, धोबी, दर्जी, खिलौना बनाने वाले आदि कारीगरों, शिल्पियों के छह लाख परिवार इसमें शामिल किये जायेंगे. पांच वर्ष में 30 लाख परिवार इस योजना से जुड़ जायेंगे. इसमें ओबीसी हिंदू और पसमांदा मुसलमान, जो पारंपरिक कौशल आधारित शिल्पी होंगे, को शामिल किया जायेगा.
इस योजना के अंतर्गत एक परिवार से एक सदस्य को पांच प्रतिशत के रियायती ब्याज दर पर दो लाख रुपये की पूंजी उपलब्ध करायी जायेगी. पहली किश्त में एक लाख दिया जायेगा. इस ऋण की वापसी के बाद दूसरी बार ऋण दिया जायेगा. इन लाभार्थियों को पांच दिन का सामान्य और 15 दिन का उच्च प्रशिक्षण प्रदान किया जायेगा जिसके लिए प्रतिदिन 500 स्टाइपेंड मिलेगा. आधुनिक उपकरण खरीदने के लिए केंद्र सरकार प्रति प्रशिक्षार्थी 15000 रुपये की सहायता प्रदान करेगी.
सरकार इन उत्पादों की बिक्री को सुगम बनाने के लिए गुणवत्ता प्रमाण पत्र उपलब्ध करायेगी तथा ऑनलाइन मार्केटिंग में भी सहायता करेगी. इस योजना के अंतर्गत उम्मीदवारों को चयनित करने की प्रक्रिया भी सरल होगी. कौशल विकास और प्रशिक्षण के मामले में हमें यह ध्यान रखना होगा कि भारत में कुल कार्यबल के केवल 4.7 प्रतिशत ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है जबकि अमरीका में 52 प्रतिशत, जापान में 80 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 96 प्रतिशत है.
प्रधानमंत्री विश्वकर्मा योजना को यदि सफलतापूर्वक लागू करना है, तो इससे मिलती-जुलती योजना जैसे ‘प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम’ आदि में जो कमियां नजर आयी हैं उनका ध्यान रखना होगा. पिछली योजना की भांति विश्वकर्मा योजना में भी एक परिवार के एक व्यक्ति का चयन किया जायेगा. अतः लाभार्थी को एक शपथ पत्र देना होगा कि उसके परिवार में किसी और सदस्य ने इससे मिलती-जुलती किसी अन्य सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया है.
परंतु यह देखा गया है कि लाभार्थियों के ऐसे शपथ पत्र प्रायः असत्य होते हैं. एक ही परिवार के कई सदस्य ऐसे अनुदान वाली सरकारी योजना का लाभ लेते हैं और कई परिवार एक भी सरकारी योजना का लाभ नहीं ले पाते हैं. जिसकी वजह से सरकार का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो पाता है. कई लोग पहले से ही ऋण लेकर छोटा-मोटा व्यवसाय कर रहे होते हैं और जब भी ऐसी अनुदान वाली कोई सरकारी योजना आती है, तो बैंक से कम ब्याज दर पर ऋण लेकर वह पैसा पहले से चल रहे निजी व्यवसाय में लगाते हैं.
सरकार जितनी भी ‘संपार्श्विक मुक्त ऋण’ की घोषणा करे, बैंक मैनेजर अपने बचाव का रास्ता निकाल लेते हैं. अभी योजना की घोषणा हुई है. इसका पूरा प्रारूप आने पर विश्वास किया जाना चाहिए कि यह योजना अपने वास्तविक उद्देश्य को पूरा करते हुए हमारे ग्रामीण और शहरी कारीगरों और शिल्पियों को कम ब्याज पर ऋण, नये औजार देने के साथ प्रशिक्षण, रोजगार, और उनके उत्पादों के विपणन में सहायक होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)