Explainer: ममता बनर्जी के सबसे करीबी नेता रहे अणुव्रत के करियर पर मंडराया संकट
Prabhat Khabar Explainer: अपने बयानों के लिए सुर्खियों में रहने वाले मंडल का जन्म 1960 में बीरभूम जिले में एक किसान परिवार में हुआ था. उन्हें ‘केस्टो' के नाम से जाना जाता है. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. उन्होंने सूरी में एक मछली व्यापारी के रूप में अपना करियर शुरू किया था.
Prabhat Khabar Explainer: पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) के भरोसेमंद माने जाने वाले अणुव्रत मंडल की मवेशी तस्करी मामले में गिरफ्तारी के बाद उनके तीन दशक लंबे राजनीतिक करियर पर खतरा मंडराने लगा है. तृणमूल (TMC) की बीरभूम जिला (Birbhum District) इकाई के अध्यक्ष व पार्टी की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य मंडल (62) पश्चिम बंगाल में तृणमूल के 11 वर्षों के शासन के दौरान तेजी से आगे बढ़े.
विवादित बयानों के लिए सुर्खियों में रहे अणुव्रत मंडल
अपने बयानों के लिए सुर्खियों में रहने वाले मंडल का जन्म 1960 में बीरभूम जिले में एक किसान परिवार में हुआ था. उन्हें ‘केस्टो’ के नाम से जाना जाता है. पांच भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं. उन्होंने सूरी में एक मछली व्यापारी के रूप में अपना करियर शुरू किया था. उनकी नेतृत्व और संगठनात्मक क्षमताओं को पहली बार 90 के दशक की शुरुआत में बीरभूम के एक स्थानीय युवा कांग्रेस के नेता ने पहचाना.
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और ममता बनर्जी के पास पहुंचे केस्टो
वही नेता उन्हें ममता बनर्जी के पास ले गये. इसके बाद बंगाल की राजनीति का अहम चेहरा बन गये अणुव्रत मंडल उर्फ केस्टो. वह उन मुट्ठी भर कांग्रेस नेताओं में थे, जिन्होंने 1998 में तृणमूल कांग्रेस बनाने के लिए ममता बनर्जी के नेतृत्व में पुरानी पार्टी यानी कांग्रेस को छोड़ दिया था. वर्ष 2000 में उन्हें तृणमूल की बीरभूम जिला इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. उन्होंने तत्कालीन वामपंथी गढ़ में पार्टी के आधार के विस्तार में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी.
टीएमसी के सत्ता में आने के बाद बढ़ा अणुव्रत का कद
तृणमूल के 2011 में सत्ता में आने के बाद, एक राजनीतिज्ञ और एक आयोजक के रूप में मंडल का कद पार्टी और जिले में बढ़ गया. अणुव्रत मंडल वर्ष 2013 के पंचायत चुनाव अभियान के दौरान पहली बार सुर्खियों में आये थे, जब उन्होंने एक जनसभा के दौरान अपने समर्थकों से राजनीतिक विरोधियों और असंतुष्टों के घरों को जलाने और पुलिस पर बम फेंकने के लिए कहा था. उनकी इन टिप्पणियों पर विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी.
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चुनावी हिंसा में भी आया था अणुव्रत मंडल का नाम
वर्ष 2014 के लोकसभा और 2016 के विधानसभा चुनावों के दौरान अणुव्रत मंडल की मजबूत रणनीति पूरी तरह से प्रदर्शित हुई थी. पार्टी ने कदाचार के आरोपों के बीच जिले में दोनों चुनावों में जीत हासिल की थी. पिछले साल चुनाव बाद हुई हिंसा में भी अणुव्रत मंडल का नाम आया था, जिसकी जांच फिलहाल केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) कर रहा है. उनका नाम इस साल मार्च में बागटुई में हुई हत्याओं की जांच के दौरान सामने आया था, जब बीरभूम जिले में दो समूहों के बीच प्रतिद्वंद्विता में 8 लोगों को जिंदा जला दिया गया था.
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विवादित बयानों के हमेशा सुर्खियों में रहे अणुव्रत मंडल
अणुव्रत मंडल हमेशा ही अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहे हैं. पंचायत चुनाव हो या विधानसभा चुनाव या लोकसभा चुनाव. हर मौके पर अणुव्रत मंडल ने विपक्षी पार्टियों पर तीखे हमले किये.
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निर्दलीय उम्मीदवारों के घर जला दो, बम मारो: पंचायत चुनाव के समय बीरभूम जिले में एक सभा के दौरान अणुव्रत मंडल ने कहा था कि पंचायत चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा नहीं होने देंगे. अगर कोई निर्दलीय उम्मीदवार खड़ा होता है, तो उसका घर जला दो, बम मार दो.
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विरोधियों पर बम फेंकने की दी थी धमकी: वर्ष 2016 में विधानसभा चुनाव के पहले नारद स्टिंग का मामला गरमाया हुआ था. उस समय अणुव्रत मंडल ने ढाक बजाने की बात कही थी. उन्होंने कहा था कि विरोधियों के लिए ‘चड़ाम चड़ाम’ कर ढाक बजेगा. यही नहीं, विरोधियों पर बम फेंकने की भी उन्होंने धमकी दी थी.
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गांजा केस में अंदर करवा देंगे: अणुव्रत मंडल ने पार्टी कार्यकर्ताओं की बैठक के दौरान कहा था कि विपक्षी पार्टी का अगर कोई नेता ज्यादा आगे बढ़ रहा है, तो उसे गांजा केस में अंदर करवा देंगे. उनके इस बयान की काफी निंदा हुई थी.
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केंद्रीय बल अंदर रहेंगे, बाहर हम खेला करेंगे: वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव में अणुव्रत मंडल ने केंद्रीय बलों को चुनौती दे डाली थी. कहा था कि वे मतदान केंद्र के अंदर में रहेंगे. बाहर हम खेला करेंगे. कोई नहीं रोक पायेगा.