Loading election data...

आध्यात्मिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप संविधानसम्मत नहीं, गंगासागर में बोले शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद

मैं शंकराचार्य हूं. अगर मैं दोने बनाने या भोजन परोसने चला जाऊं, तो उपहास का पात्र हो जाऊंगा. वैसे ही राजनेता अपनी राजनीतिक सीमा में काम करें. सब काम में हाथ लगाने की क्या आवश्यकता है? हर जगह अपना नेतृत्व सिद्ध करना उन्माद की निशानी है.

By Prabhat Khabar News Desk | January 13, 2024 11:18 PM
an image

गंगासागर (पश्चिम बंगाल), शिव कुमार राउत : मकर संक्रांति पर पुण्यस्नान करने सागरद्वीप पहुंचे पुरी के पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने शनिवार को संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि वैश्विक युद्धों के दौर में अपना भारत केंद्रीय नेतृत्व में आर्थिक व सामरिक दृष्टि से सशक्त है. देश की सीमाएं चारों ओर से सुरिक्षत हैं. निःसंदेह यह भारत का उत्कर्ष काल है. परंतु धार्मिक व आध्यात्मिक क्षेत्र में राजनीतिक हस्तक्षेप संविधान सम्मत नहीं हैं. क्योंकि इस धर्म-अध्यात्म का अधिकाधिक राजनीतिकरण से देश अंदर ही अंदर खोखला हो रहा है.


नेतृत्व सिद्ध करना उन्माद की निशानी

स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, “मैं शंकराचार्य हूं. अगर मैं दोने बनाने या भोजन परोसने चला जाऊं, तो उपहास का पात्र हो जाऊंगा. वैसे ही राजनेता अपनी राजनीतिक सीमा में काम करें. सब काम में हाथ लगाने की क्या आवश्यकता है? हर जगह अपना नेतृत्व सिद्ध करना उन्माद की निशानी है. राजनेता उन्माद का परिचय न दें. प्रशासन का काम है धार्मिक स्थलों का विकास करना, न कि धार्मिक और आध्यात्मिक क्रिया-कलापों में हस्तक्षेप करना.

जनता की त्राहि-त्राहि के नाम पर वोट पाना चाहते हैं नेता

शंकाराचार्य ने कहा कि वर्तमान चुनाव तंत्र में विकृति है. राजनेता जनता की त्राहि-त्राहि के नाम पर वोट पाना चाहते हैं. इन सभी विकृतियों पर आलोचना करने की जरूरत नहीं है. आवश्यकता है इन विकृतियों को समझ कर भारत के शासन तंत्र का मार्ग प्रस्तुत करना.

Also Read: PHOTOS: गंगासागर में भव्य सागर आरती, पहली बार त्रिशूल के साथ शामिल हुईं महिलाएं, श्रद्धालुओं ने देखा शिव तांडव
रामलला की हो शास्त्र सम्मत प्राण प्रतिष्ठा

स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि शंकराचार्य का अर्थ है- शासकों पर शासन करने का अधिकारी होना. अतएव हम चारों शंकराचार्यों की बस एक ही मंशा है कि रामलला की शास्त्र सम्मत प्राण प्रतिष्ठा हो. क्योंकि प्रतिमा विग्रह में भगवत तेज का सन्निवेश होता है. विधिवत व शास्त्रसम्मत पूजन के अभाव में यह तिरोहित हो जाता है और मूर्ति में डाकिनी, शाकिनी, भूत-प्रेत, पिशाच का सन्निवेश हो जाता है. इससे चारों दिशाओं में अशांति उत्पन्न हो सकती है. राम का राजनीतिकरण कहीं अपयश न बन जाये. ऐसा करने वाला व्यक्ति हनुमान जी के गदे से बच नहीं सकेगा.

चौकी पर बैठ ताली बजाना पसंद नहीं

स्वामी निश्चलानंद ने कहा कि वह केंद्र से नाराज नहीं हैं. यहां तो सभी उनके परिचित ही हैं. उन्हें मलाल इस बात कहा है कि राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के निमंत्रण में उन्हें अकेले नहीं, बल्कि किसी सहयोगी के साथ पहुंचने को कहा गया. साथ ही धार्मिक व आध्यात्मिक श्रेष्ठता के बाद भी गर्भगृह में उन्हें स्थान न देकर बाहर रहने का निर्देश है, जो उन्हें स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने कहा कि चौकी पर बैठकर राम मंदिर का उद्घाटन देखने और ताली बजाने की भूमिका उन्हें पसंद नहीं.

Also Read: Indian Railways|गंगासागर मेला के लिए सियालदह से नामखाना तक 72 स्पेशल ट्रेन, सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त

Exit mobile version